नोटा से जुड़े नियमों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब
लोकसभा चुनाव 2024 के बीच नोटा का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है। इस नोटिस में कहा गया है कि नोटा से जुड़े नियमों को लेकर चुनाव आयोग को जांच करनी चाहिए। मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शुक्रवार 26 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में वोटिंग से जुड़े एक अहम मुद्दे पर सुनवाई हुई। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी प्रत्याशी से ज्यादा वोट NOTA को मिलने पर दोबारा चुनाव की मांग पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेड़ा की ओर से दाखिल की गई इस याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस याचिका में कहा गया था कि अगर किसी सीट पर सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिलते हैं तो वहां चुनाव अमान्य करार दिया जाना चाहिए और दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए। फिलहाल ये व्यवस्था है कि प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले को विजेता माना जाता है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इसी व्यवस्था के चलते सूरत से एक प्रत्याशी को निर्विरोध निर्वाचित किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याचिकाकर्ता ने रखी हैं ये मांगें
शिव खेड़ा की ओर से दायर इस याचिका में यह नियम बनाने की भी मांग की गई है कि NOTA से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को 5 साल के लिए किसी भी तरह के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। इसके अलावा नोटा को एक काल्पनिक उम्मीदवार के तौर पर देखा जाए। मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सूरत के मामले पर चर्चा
याचिकाकर्ता के वकील ने सूरत के मामले का हवाला दिया, जिसमें विपक्ष में कोई उम्मीदवार नहीं होने की वजह से एक प्रत्याशी को विजेता घोषित कर दिया गया। वकील का कहना था कि इस स्थिति में भी चुनाव होने चाहिए और लोगों के पास नोटा का विकल्प होना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि अगर किसी उम्मीदवार को नोटा से कम वोट मिलते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर पांच साल का बैन भी लगाया जाना चाहिए। इससे उसके पास अपनी छवि सुधारने और जनाधार बनाने का मौका रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नोटा के बारे में
भारत में नोटा का विकल्प 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आया था। नन ऑफ द अबव यानी NOTA एक वोटिंग ऑप्शन है, जिसके तहत मतदाता किसी भी प्रत्याशी के पसंद न आने पर इस विकल्प को चुन सकता है। इसे भारत में शुरू कराने के पीछे पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने काफी लंबी लड़ाई लड़ी थी। यहां यह समझना जरूरी है कि भारत में नोटा राइट टु रिजेक्ट के लिए नहीं है। मौजूदा कानून के मुताबिक NOTA को ज्यादा वोट मिलते हैं तो इसका कोई कानूनी नतीजा नहीं होता है। ऐसी स्थिति में अगले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा।
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