सुप्रीम कोर्ट से सीएम धामी को फटकार, कहा- ये सामंती युग नहीं कि जैसा राजा बोले वैसा ही हो, कृषि मंत्री गणेश जोशी की बढ़ी मुसीबत, कांग्रेस ने लपका मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को फटकार लगाई है। कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि हम सामंती युग में नहीं हैं, जैसा राजाजी बोलें वैसा ही होगा। सार्वजनिक विश्वास का सिद्धांत भी होता है। जब मंत्री और मुख्य सचिव से मतभेद हो तो कम से कम लिखित में कारण के साथ विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था। मामला जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध पेड़ काटने के आरोपी IFS अफसर राहुल की राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक के तौर पर नियुक्ति पर को लेकर है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उतराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खरी- खरी सुनाई है। वहीं, इस मामले को कांग्रेस ने राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए लपक लिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ भी कर सकते हैं? चाहे तो उस अधिकारी को बरी कर दें या विभागीय कार्यवाही बंद कर दें? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में मुख्यमंत्री से ही हलफनामा मांगेंगे। हालांकि राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया कि IFS अफसर को पद से हटा दिया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्यमंत्री के कार्यों पर कड़ी आपत्ति
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मुख्यमंत्री के कार्यों पर कड़ी आपत्ति जताई और सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत के महत्व पर जोर दिया। इस अधिकारी को पहले अवैध पेड़ काटने के आरोप में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से हटा दिया गया था। पीठ ने सरकार की मनमानी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को निलंबित करने के बजाय उसका स्थानांतरण कर देना कतई उचित कदम नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहले भी एससी लगा चुका है फटकार
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के कोर एरिया में अवैध और मनमाने निर्माण के साथ पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले भी राज्य सरकार के वन मंत्री और आरोपी वन अधिकारियों को फटकार लगा चुका है। उस दौरान अदालत ने कहा था कि आप लोगों ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को कूड़ेदान में फेंक दिया है। कोर्ट ने तब टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार के इस कदम से यह बात तो साफ है कि तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ ने खुद को कानून मान लिया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सरकार के मनमाने कदम से एससी सख्त
उन्होंने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर इमारतों के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की अवैध कटाई की। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के डायरेक्टर रहे राहुल के खिलाफ सीबीआई जांच जारी रहने और सिविल सर्विसेज बोर्ड की आपत्तियों के बावजूद उत्तराखंड सरकार ने राहुल को पद से हटाने की बजाय राजाजी नेशनल पार्क में तैनात कर दिया। कोर्ट ने सरकार के इन मनमाने कदम पर सरकार को जम कर फटकार लगाई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये था प्रकरण
जिम कॉर्बेट पार्क में बाघों के पर्यवास के कोर एरिया में नियमों को ताक पर रखकर किए अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई में निदेशक राहुल, डीएफओ मोहन चंद सहित कई अधिकारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति, एनटीसीए, भारतीय वन्यजीव संस्थान और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्रतिनिधियों वाली एक समिति के गठन का निर्देश दिया था। समिति स्थानीय पर्यावरण की क्षतिपूर्ति और बहाली के उपायों की सिफारिश करेगी। यानी क्षति होने से पहले की मूल स्थिति में पहुंचा जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुई पर्यावरणीय क्षति का आकलन करेगा और बहाली के लिए लागत का आकलन करेगा. और ऐसी क्षति के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों/अधिकारियों की पहचान करेगा .राज्य में पर्यावरण और जानवरों के पर्यवास को हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार लोगों और दोषी अधिकारियों से निर्धारित लागत वसूलनी होगी. समिति को पारिस्थितिकी क्षति की सक्रिय बहाली के लिए जमा धन के उपयोग को निर्दिष्ट करने का भी काम सौंपा गया था. समिति इस पर भी सिफारिशें देगी कि क्या वनों के सीमांत क्षेत्रों में बाघ सफारी की अनुमति दी जा सकती है? उन्हें स्थापित करने के लिए क्या नियम कायदे और दिशानिर्देश होने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आय से अधिक संपत्ति मामले में कृषि मंत्री गणेश जोशी की बढ़ी मुसीबत
आय से अधिक संपत्ति के मामले में उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी की मुसीबत बढ़ने वाली है। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दर्ज होगा या नहीं, इसके लिए कोर्ट ने 19 अक्तूबर की तिथि नियत की है। कोर्ट को मामले में मंत्री परिषद के फैसले का इंतजार है। गौरतलब है कि अधिवक्ता विकेश नेगी ने कृषि मंत्री गणेश जोशी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नेगी ने इस संबंध में कोर्ट को (सीआरपीसी 156(3) के तहत) प्रार्थनापत्र देकर विजिलेंस में मुकदमा दर्ज कराने की मांग की थी। इस पर स्पेशल विजिलेंस जज मनीष मिश्रा की कोर्ट ने विजिलेंस से आख्या मांगी थी। इस मामले में मंगलवार को सुनवाई हुई। विजिलेंस ने अपनी आख्या के साथ एक पत्र भी कोर्ट में प्रस्तुत किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तीन महीने का समय आठ अक्तूबर को हो रहा समाप्त
आठ जुलाई 2024 का यह पत्र कार्मिक एवं सतर्कता विभाग की ओर से विजिलेंस को भेजा गया है। इस पत्र में सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) को शिकायत का अपने स्तर से परीक्षण कर यथोचित कार्रवाई करने को कहा गया है।
कोर्ट में कहा गया कि भारतीय संविधान के अनुसार मंत्री परिषद कार्यपालिका की निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च संस्था है। इस पत्र से साफ होता है कि यह मामला पहले ही मंत्री परिषद को भेजा जा चुका है। कोर्ट में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के नियमानुसार ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने के आदेश से पहले कैबिनेट के फैसले का तीन महीने तक इंतजार किया जाता है। पत्र सात जुलाई को भेजा गया था। इसके अनुसार तीन महीने का समय आठ अक्तूबर को समाप्त हो रहा है। लिहाजा इसके बाद ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। लिहाजा कोर्ट ने इस मामले में अब 19 अक्तूबर की तिथि नियत की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया गलत साबितः करन माहरा
उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि आखिरकार उत्तराखंड सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी गलत साबित कर दिया है। उन्होंने कहा कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुए भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने धामी सरकार की मनमानी पर कड़ी टिप्पणी की। कहा कि यह राजशाही का दौर नहीं है। भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को निलंबित करने के बजाय उसका स्थानांतरण कर देना कतई उचित कदम नहीं है। जिम कॉर्बेट में मनमाने निर्माण और पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले भी राज्य सरकार पर टिप्पणी करते हुए कह चुका है कि आप लोगों ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को कूड़ेदान में फेंक दिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करन माहरा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड की भ्रष्ट सरकार द्वारा राहुल को राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक पद पर नियुक्त किए जाने के फैसले को गलत साबित किया है। मैं सुप्रीम कोर्ट का तहेदिल से आभारी हूं। जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार के गलत फैसलों को रोकने का काम कर रहा है, वह लोकतंत्र व पुरानी परंपराओं को बरकरार रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रदेश सरकार को सत्ता में रहने का नैतिक अधिकार नहींः सूर्यकांत धस्माना
उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की मुख्यमंत्री पर टिप्पणी व एक कैबिनेट मंत्री पर आय से अधिक संपत्ति का मुकद्दमा कायम करने के लिए न्यायालय की ओर से राज्य मंत्री परिषद को मामला संस्तुति के लिए भेजा जाना, उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार का हाल बयां कर रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
धस्माना ने कहा कि प्रदेश में ध्वस्त पड़ी कानून व्यवस्था, महिलाओं के विरुद्ध रोज आना घट रही हिंसा बलात्कार जैसी जघन्य घटनाएं, चेन व मोबाइल स्नेचिंग, दिन दहाड़े हो रही लूट और डकैती की घटनाओं के बाद अब देश का सर्वोच्च न्यायालय भी अगर सरकार के मुखिया के खिलाफ इतनी नकारात्मक टिप्पणी कर रहा है, तो इससे यह पता चल रहा है कि राज्य में लोकशाही नही, बल्कि राजशाही या तानाशाही चल रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि विजिलेंस कोर्ट एक कैबिनेट मंत्री के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए कैबिनेट की संस्तुति का इंतजार कर रहा है। ऐसे में प्रदेश की सरकार को एक मिनट भी सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है। धस्माना ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने राजा जी नैशनल पार्क के निदेशक पद पर आई एफ एस राहुल की नियुक्ति पर जिस प्रकार की टिप्पणी की है, वह अपने आप में प्रदेश में चल रही सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न चिह्न है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि राज्य के हर मामलों में मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी होती है और अगर सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ रहा है कि राज्य में मुख्यमंत्री कोई राजा नहीं है, इसका मतलब सरकार में निर्णय किस तरह हो रहे हैं, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। धस्माना ने कहा कि मुख्यमंत्री राज्य के गृहमंत्री भी हैं और राज्य में जिस तरह से अपराधी बेखौफ हो गए हैं, उसके एक नहीं एक हजार उदाहरण हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से रिलाइंस शो रूम में डकैती, अंकिता भंडारी हत्याकांड, हरिद्वार में डकैती, पत्रकार योगेश डिमरी पर हमला कुछ हाई लाइटर्स हैं। लगातार दो बार राज्य विधानसभा चुनावों व तीन बार लोकसभा चुनाव जीत कर भाजपा अपने आप को अजेय समझने लगी है। उसके नेताओं ने राज्य को अपनी जागीर समझ लिया हैय़ इसलिए अब वो लोकतांत्रिक मूल्यों को त्याग कर तानाशाही रवैया अपना कर मन मर्जी के जनविरोधी निर्णय ले रही है, जिसको अब जनता सहन नहीं करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले से लेना चाहिए सबकः गरिमा मेहरा दसौनी
उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने इस पूरे प्रकरण पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि आखिर इसकी नौबत क्यों आई? नौबत इसलिए आई क्योंकि मुख्यमंत्री के सलाहकार उन्हें गलत राह दिखा रहे हैं। या फिर दो बार प्रचंड बहुमत की सरकार बन जाने से भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने निर्णय लेने का विवेक खो दिया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दसौनी ने कहा कि न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने मुख्यमंत्री के कार्यों पर कड़ी आपत्ति जताई और सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत के महत्व पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय वन सेवा के अधिकारी राहुल को राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक के रूप में नियुक्त करने के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के फैसले पर सवाल उठाया, वह अपने आप में उत्तराखंड में मनमानी को बयां करता है। क्योंकि उसी अधिकारी को पहले अवैध पेड़ काटने के आरोप में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से हटा दिया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दसौनी ने कहा की और तो और राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नाडकर्णी ने मुख्यमंत्री के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया कि मुख्यमंत्री के पास ऐसी नियुक्तियाँ करने का विवेकाधिकार था। दसौनी ने कहा कि देश की सबसे बड़ी अदालत से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को इस तरह की फटकार और इतनी तल्ख टिप्पणी किया जाना कोई छोटी बात नहीं है। यह प्रदेश और देश के सभी नेताओं के लिए एक सबक है कि लोकतंत्र में जनता के विश्वास के तहत काम किया जाना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री होने का मतलब खुद को राजा समझना या तानाशाही करना और अपनी मनमर्जी करना नहीं होता। गरिमा ने यह भी कहा की सरकारों को यह भी ध्यान रखना चाहिए की जनता अब जागरुक हो चुकी है। उसे सब पता है सरकार में क्या चल रहा है। किस अधिकारी पर किस अपराध के लिए जांच चल रही है। अगर जांच के घेरे में आए हुए अधिकारी को ही महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति दे दी जाएगी, तो उससे कहीं ना कहीं शक की सुई सरकार और मुख्या पर उठना तो लाजिमी है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।