चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट का दखल, अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल की तलब

गौरतलब है कि अरुण गोयल को 19 नवंबर को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर नियुक्ति कानूनी तौर पर की गई तो घबराने की जरूरत नहीं है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के चयन और नियुक्ति को लेकर कानून की बात कही गई है, लेकिन 7 दशक बाद भी कोई कानून नहीं बना। यह संविधान की ‘चुप्पी’ के शोषण की तरह है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दरअसल, याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने संविधान पीठ को बताया था कि गुरुवार को उन्होंने ये मुद्दा उठाया था। इसके बाद सरकार ने एक सरकारी अफसर को वीआरएस देकर चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। हमने इसे लेकर अर्जी दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अधिकारी की नियुक्ति से संबंधित फाइलें पेश करें, ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि कोई हंकी पैंकी नहीं हुआ। अगर ये नियुक्ति कानूनी है तो फिर घबराने की क्या जरूरत है। उचित होता अगर अदालत की सुनवाई के दौरान नियुक्ति ना होती। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
6 साल का कार्यकाल, लेकिन 2004 से ऐसा नहीं हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के बाद मुख्य चुनाव आयुक्तों के छोटे कार्यकाल को लेकर भी सवाल किए। संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस केएम जोसफ ने कहा कि साल 2004 से देखें तो किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। यूपीए सरकार के 10 साल के शासन में 6 मुख्य चुनाव आयुक्त हुए। एनडीए सरकार के 8 वर्षों में 8 मुख्य चुनाव आयुक्त हो चुके हैं। यह चिंताजनक है। चूंकि संविधान इस बारे में चुप है तो उसकी चुप्पी का फायदा उठाया जा रहा है। कोई कानून नहीं है, इसलिए वे (केंद्र) कानूनन सही भी हैं। कानून के अभाव में कुछ किया भी नहीं जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इससे पहले जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त को ऐसे चरित्र का होना चाहिए, जो खुद पर बुलडोजर नहीं चलने देता। इस दौरान संविधान पीठ ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त दिवंगत टी एन शेषन (T N Seshan) का भी जिक्र किया। पीठ ने कहा कि टी एन शेषन जैसा व्यक्ति कभी-कभी होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रणाली में सुधार की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी टी रविकुमार की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि संविधान ने सीईसी और चुनाव आयुक्त के “नाजुक कंधों” पर विशाल शक्तियां डाल रखी हैं।
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि योग्यता के अलावा, जो महत्वपूर्ण है, वह यह है कि आपको चरित्र वाले किसी व्यक्ति की आवश्यकता है। कोई ऐसा व्यक्ति जो खुद को बुलडोजर से चलने न दे। ऐसे में सवाल यह है कि इस व्यक्ति की नियुक्ति कौन करेगा? नियुक्ति समिति में मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति होने पर कम से कम दखल देने वाली व्यवस्था होगी। हमें लगता है कि उनकी मौजूदगी से ही संदेश जाएगा कि कोई गड़बड़ नहीं होगी। हमें सबसे अच्छा आदमी चाहिए और इस पर कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि क्या कभी किसी पीएम पर आरोप लगे, तो क्या चुनाव आयुक्त ने एक्शन लिया। हमें ऐसा चुनाव आयुक्त चाहिए, जो पीएम पर भी कार्रवाई कर सकता हो।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।