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September 25, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा-किसानों से बातचीत के दौरान कृषि कानूनों को होल्ड करने को तैयार हो

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किसान आंदोलन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वो किसानों के प्रदर्शन करने के अधिकार को स्वीकार करती है और वो किसानों के ‘राइट टू प्रोटेस्ट’ के अधिकार में कटौती नहीं कर सकती है। कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या वो किसानों से बातचीत के दौरान कृषि कानूनों को होल्ड करने को तैयार है। इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि वो सरकार से इसपर निर्देश लेंगे।
गुरुवार को सुनवाई शुरू होने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वो आज वैधता पर फैसला नहीं देगी। आज बस किसानों के प्रदर्शन पर सुनवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि पहले हम किसानों के आंदोलन के जरिये रोकी गई रोड और उससे नागरिकों के अधिकारों पर होने वाले प्रभाव पर सुनवाई करेंगे। वैधता के मामले को इंतजार करना होगा।
सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि किसान अपना प्रदर्शन भी करें और लोगों के अधिकारों का उलंघन भी न हो। कोर्ट ने कहा कि हम किसानों की दुर्दशा और उसके कारण सहानुभूति के साथ हैं। साथ ही उन्हें भी तरीके को बदलना होगा और सरकार को इसका हल निकालना होगा।
केंद्र का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील ने दलील रखी कि प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली आने वाले रास्तों को ब्लॉक कर रखा है। इससे दूध, फल और सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं। इससे अपूरणीय क्षति हो सकती है। साल्वे ने कहा कि आप शहर को बंदी बनाकर अपनी मांग नही मनवा सकते। उन्होंने कहा कि -विरोध करने का मौलिक अधिकार है लेकिन यह दूसरे मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित होना चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि-हम प्रदर्शन के अधिकार को मानते हैं। इसको हम इसको बाधित नही करेंगे। हम स्पष्ट करते हैं कि हम कानून के विरोध में मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हैं। इस पर रोक लगाने का कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन इससे किसी की जान को नुकसान नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन का एक गोल होता है, जो बिना हिंसा के अपने लक्ष्य को पाया जा सकता है। आजादी के समय से देश इस बात का साक्षी रहा है। सरकार और किसानों के बीच बातचीत होनी चाहिए। विरोध प्रदर्शन को रोकना नहीं चाहिए और संपत्तियों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके लिए हम कमिटी के गठन के बारे में सोच रहे हैं। हम वार्ता को सुविधाजनक बनाना चाहते हैं। हम स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति के बारे में सोच रहे हैं। दोनों पक्ष बात कर सकते हैं और विरोध प्रदर्शन जारी रख सकते हैं। पैनल अपने सुझाव दे सकता है। इस मामले में कमिटी, एग्रीकल्चर एक्सपर्ट जैसे पी साईनाथ जैसे लोग शामिल हों।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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