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April 18, 2025

वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के प्लेनेटरी सेशन में विषय विशेषज्ञों ने साझा किए बहुमूल्य अनुभव

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में 10 वें आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो में दूसरे दिन देश-विदेश के आयुर्वेद विशेषज्ञों ने अलग-अलग थीम और टॉपिक पर अपने-अपने अनुभव साझा किये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्लेनेटरी सेशन में न्यू एज संहिता विषय पर पैनलिस्ट उपेंद्र दीक्षित (गोवा) अभिजीत सराफ (नासिक) और प्रसाद बावडेकर (पुणे) ने अपने विचार रखे। उन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में अधिक लोगों को कैसे जोड़ा जाए। इसमें अधिक शोध और अनुसंधान को कैसे बढ़ावा मिले। आयुष चिकित्सा को आम जनमानस के बीच कैसे लोकप्रिय बनाया जाए। इस संबंध में विस्तार से चर्चा की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के क्षेत्र में जितने भी नए रिसर्च हो रहे हैं और नई रचनाएं लिखी जा रही हैं, उसकी भाषा बहुत ही सरल हो। साथ ही डिजिटल App (कोड) के अंतर्गत अधिक से अधिक स्थानीय भाषा में उसकी उपलब्धता हो। ताकि देश-विदेश का हर एक नागरिक अपनी सुगम भाषा में उसकी आसानी से स्टडी कर सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

आयुर्वेद आहार विषय पर केंद्रित व्याख्यान में पैनलिस्ट ने बताया कि शरीर की प्रकृति (कफ, वात, पित) के अनुरूप आहार होना चाहिए। फूड इज मेडिसिन, बट मेडिसिन इज नॉट फूड के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। इसमें सुझाव आया किभारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSI) खाद्य पदार्थों के सर्टिफिकेशन में आयुर्वेद आहार के मानक को भी सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया में शामिल करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एविडेंस बेस्ड आयुर्वेद थीम पर आधारित व्याख्यान में पैनलिस्ट ने बताया कि आयुर्वेद के क्षेत्र में नित्य होने वाले नए शोध,अनुसंधान एवं व्यवहारिक ज्ञान को प्यूरिफाई करने के लिए एक मानक संस्था होनी चाहिए। इससे जनमानस तक पहुंचने से पूर्व ज्ञान,जानकारी व तकनीक को कई चरणों में जांचा परखा जा सकेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आयुर्वेद की परंपरागत जानकारी रखने वाले वैद्य की गोष्ठी में देशभर से आए वैद्य ने उनके सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं और सुझावों को साझा किया। उन्होंने कहा कि जड़ी बूटी उत्पादन से लेकर उसकी फूड प्रोसेसिंग, मार्केटिंग और विक्रय तक लागत बहुत आती है जबकि उसके अनुरूप मुनाफा नहीं मिल पाता। उन्होंने सुझाव दिया कि परंपरागत वैध की जानकारी रखने वाले लोगों को प्रमाण पत्र देकर उनका प्रमाणीकरण किया जाए। साथ ही परंपरागत ज्ञान को हर एक नागरिक तक पहुंचाने के लिए गांव-गांव तक आयुर्वेद स्कूलों की स्थापना की जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग (NCIMS) कॉन्क्लेव में देश भर के लगभग 200 से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने प्रतिभा किया। इसमें आयुर्वेदिक चिकित्सकों के सेवा के अवसरों, दायित्व और अधिकारों पर विस्तृत चर्चा की गई। आयुष चिकित्सा लाभ के लिए आने वाले विदेशी पर्यटकों को कैसे बेहतर सुविधा दी जा सकती है। इस संबंध में प्रधानमंत्री द्वारा लांच की गई आयुष वीजा सेवा से संबंधित जानकारी भी साझा की गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ. जेएन नौटियाल ने बताया कि आयुर्वेद चिकित्सकों को हेल्थकेयर प्रोफेशनल रजिस्ट्री (HPR) पर पंजीकृत करना चाहिए। आयुष अस्पताल को नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स (NABH)में पंजीकृत करना चाहिए। ताकि विदेश से आयुष चिकित्सा का लाभ लेने के लिए आने वाले विदेशी पर्यटकों को सुगमता से स्वास्थ्य लाभ मिल सके। इससे मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में भी वृद्धि की संभावना बढ़ेगी।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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