जनकवि बाबा नागार्जुन की पुण्य तिथि पर स्मृति विशेष, जब वह हमारे घर रहे तो लगा पूरा युग आ गया
महान जनकवि बाबा नागार्जुन हिन्दी साहित्य के अग्रणी कवि के रुप मे जाने जाते हैं। वे संघर्ष के कवि के रुप मे हमारे सम्मुख रहे हैं । कवि नागार्जुन का जन्म 11जून 1911 को दरभंगा बिहार मे हुआ था और निधन 5नवम्बर 1998को हुआ। उन्होंने राहुल सांकृत्यायन के साथ तिब्बत यात्रा की । साथ ही श्रीलंका और सोवियत संघ की भी यात्राएं की थी ।
उनका नाम वैद्यनाथ मिश्र यात्री था पर हिन्दी साहित्य मे उन्हे नागार्जुन के नाम से जाना और माना जाता है । वे किसान आंदोलन मे जेल गये और आपातकाल के दौरान भी जेल मे यातना झेलीं। कविताओ मे और जीवन मे वे एक से रहे। निर्भीक और सार्थक।
उनसे मेरी मुलाकात देहरादून और पौड़ी के जयहरिखाल के अलावा कई बार दिल्ली मे हुई थीं। उनके कविता संग्रह मे सतरंगे पंखों वाली, पत्थराई प्यासी आंखे, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, तुमने कहा था, हजार हजार बाहों वाली, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैने आदि। उनका उपन्यास बाबा बटेसर नाथ पुरस्कृत हुआ था । मैथिली काव्य संग्रह पत्रहीन नग्न गाछ पर उन्हे साहित्य अकादमी सम्मान प्रदान किया गया था ।
बाबा और देहरादून
देश के महाविद्यालयों मे उनकी रचनाए पाठ्यक्रम में शामिल हैं । देहरादून मे छात्रसंघ सप्ताह के दौरान वे डीएवी पीजी कॉलेज मे आमंत्रित किये गए थे। उस समय छात्र संघ अध्यक्ष वेदिका वेद ने उन्हे आमंत्रित किया। लाइब्रेरी के बड़े हाल मे खचाखच भीड़ थी। साहित्यकार लेखक छात्र छात्राओं ने जनकवि बाबा नागार्जुन की कविता सुनी थी। चर्चा भी हुई थी। यह एक महत्वपूर्ण आयोजन था। इसका संचालन मैने किया था।
घर में जब आए बाबा
इसके बाद बाबा मेरे घर पर रहे। हमे लगा कि पूरा युग हमारे घर आ गया है। घर पर हमारी बहनो रेखा, रंजना, रीता और अम्मा जी के साथ गहन चर्चा के साथ काव्य पाठ भी हुआ । वहां उनसे मिलने बहुत से लोग आये। देहरादून मे वे बहुत से लोगों के मन मे बस गये। अगले दिन वे मेरे साथ एमकेपी पीजी कॉलेज मे मे गये थे । वहां भी गोष्ठी हुई थीं।
पहली मुलाकात
बाबा नागार्जुन से मेरी पहले साक्षात मुलाकात जयहरिखाल (लैंस्डाउन) मे तब हुई जब उनका 75 वां जन्म दिवस मनाया गया था। वहां मेरे अलावा डॉ. शेखर पाठक, राजीव लोचन शाह, गिरीश तिवारी गिर्दा, बल्ली सिह चीमा, योगेश पांथरी, जगतराम मिश्र के साथ दिल्ली से वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी भी आये थे। वाणी प्रकाशन से बाबा नागार्जुन की पुस्तक ऐसा क्या कह दिया मैने, का वहीं विमोचन भी हुआ और कवि गोष्ठी भी हुई। सादा और साहित्य की गरिमामयी आयोजन । वे हर साल वहां भाई वाचस्पति के घर आते थे। आयोजन मे मैं उस समय गढवाल विश्व विद्यालय श्रीनगर के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. हरिमोहन के साथ गया था। मेरी बाबा से निकटता बढ गई ।
बाबा नागार्जुन को जब भी देखा तो सत्य के लिए आवाज उठाने वाले कछ रूप मे ही देखा। साहित्य और निजी जीवन मे वे एक ही रहे। उनसे बहुत कुछ सीखा। यह मेरा सौभाग्य ही है। खरा बोलनेवाले और घुमक्कड़ बाबा नागार्जुन की कविता अमूल्य निधि हैं ।
उनकी एक कविता है_
बहुत दिनो तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास
बहुत दिनो तक कांनी कुतिया सोई उनके पास
बहुत दिनो तक वही भीत पर छिपकलियो की गश्त
क ई दिनो तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त
दाने आये घर के अन्दर क ई दिनो के बाद
कौवे ने पांखे खुजलाईं क ई दिनो के बाद ।
प्रसिद्ध कविताओं में बालल को घिरते देखा है, कालिदास, बहुत दिनो बाद आदि जनप्रिय हैं। बहुत सी कविताएं लोगो को याद हैं। आज बाबा नागार्जुन की पुण्य तिथि पर उन्हें याद करते हुए बहुत से संस्मरण याद आ रहे हैं। जनकवि बाबा नागार्जुन साहित्य को नया मुहावरा दे गये । वह ड्राइंगरुम मे बैठकर आखिरी आदमी की बात नही करते थे। वे संघर्षो मे ंरह कर लिखते रहे। वे कालजयी हैं। उन्हे नमन ।
लेखक का परिचय
डॉ. अतुल शर्मा (जनकवि)
बंजारावाला देहरादून, उत्तराखंड
डॉ. अतुल शर्मा उत्तराखंड के जाने माने जनकवि एवं लेखक हैं। उनकी कई कविता संग्रह, उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके जनगीत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की जुबां पर रहते थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।