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March 10, 2025

कई बार नाम भी बिगाड़ देते हैं काम, हर बार आंदोलनकारी महिला का नाम समाचार पत्र से हो जाता था गायब

नाम कुछ और काम कुछ। कई बार तो ऐसे लोग होते हैं जो नाम के विपरीत काम करते हैं। वहीं, कई ऐसे होते हैं जो नाम के अनुरूप स्वभाव वाले होते हैं।

नाम कुछ और काम कुछ। कई बार तो ऐसे लोग होते हैं जो नाम के विपरीत काम करते हैं। वहीं, कई ऐसे होते हैं जो नाम के अनुरूप स्वभाव वाले होते हैं। माता पिता कुछ सोच समझकर औलाद का नाम रखते हैं और बाद में कई बार बच्चों को अपना नाम ही अच्छा नहीं लगता। ऐसे में वे अपना नाम तक बदल डालते हैं।
अपने नाम को लेकर कई लोग परेशान रहते हैं और नाम बदल देते हैं। इसके बाद बी नाम बदलने पर भी कई खुश नहीं हो पाते। इस पर कई कहानियां भी हैं। जैसे छेदी लाल को उसके नाम से लोग परेशान करने लगे तो उसने नाम बदलने का उसने इरादा कर लिया। हिंदू धर्म में पंडित जी ने कहा कि नामकरण संस्कार एक बार होता है। ऐसे में वह नाम नहीं बदल सकते। नाम तो बदलना ही था। भले ही धर्म परिवर्तन क्यों न करना पड़े। इस पर छेदीलाल मुसलमान बन गया और मौलवी ने उसका नाम सुराख अली रख दिया।
छेदीलाल से सुराख अली बनने पर भी उसका लोगों से पीछा नहीं छूटा। इस पर भी लोगों ने उसे चिढ़ाया। इस पर वह फिर नाम बदलने मौलवी के पास गया। मौलवी ने कहा कि अब वह दूसरा धर्म अपनाकर ही नाम बदल सकता है। ऐसे में वह ईसाई बन गया। पादरी ने उसका नाम मिस्टर होल रख दिया। छेदी लाल को लोगों ने फिर चिढ़ाया कि नाम बदलने से भी उससे पिछला नाम ही लिपट रहा है। ऐसे में वह दोबारा पंडितजी के पास गया और बोला अब तो हिंदू बनाकर मेरा नाम बदल दो, लेकिन छेदीलाल मत रखना। पंडितजी ने फिर संस्कार किए और उसका नाम छलनी प्रसाद रख दिया।
ये तो है एक कहानी। अब नाम को लेकर असली परेशानी देखिए। कई बार नाम के कारण अजीबोगरीब बात हो जाती है। बात है उत्तराखंड आंदोलन की। तब सड़कों पर आंदोलनकारी निकलते थे। पत्रकार भी उनके पीछे- पीछे दौड़ते थे। अक्सर बंद का आह्वान होने पर देहरादून में महिलाएं ही बंद की कमान संभालती थी। तब एक करीब सत्तर वर्षीय महिला को मैं काफी पहले से जानता था। वह देहरादून के हाथीबड़कला क्षेत्र में मुझे आंदोलनकारी महिलाओं के साथ दिखती थी। उन्हें मैं राणा आंटी के रूप में जानता था। नाम मुझे भी नहीं पता था। उनकी जिम्मेदारी सर्वे ऑफ इंडिया के गेट पर तालाबंदी की रहती थी।
हर बार आंदोलन से संबंधित समाचारों में राणा आंटी का नाम समाचार पत्र में छपने से छूट जाता था। वह मुझसे खफा भी रहती थी। एक दिन मैने उनसे पूछा आंटी अपना नाम बताओ, मैं आज जरूर अखबार में लिखूंगा। उन्होंने बताया श्रीमती राणा। मैने आंटी से कहा कि समाचार पत्रों में सर नेम नहीं चलता। अपना पूरा नाम बताओ- इस पर उन्होंने फिर वही दोहराया श्रीमती राणा। मैने कहा कि आंटी पूरा नाम बताओ- जैसे कमला राणा, बिमला राणा, या आपका जो नाम हो वह। इस पर वह मुझसे झुंझला गई। और बोली- भानु मेरा नाम ही श्रीमती है, तो फिर कहां से और कुछ जोड़ूं। लिखना है तो लिख- श्रीमती राणा। तब मुझे समझ आया कि उनका नाम क्यों समाचार पत्रों में छूटता है। प्रेस रिपोर्टर भी श्रीमती राणा नाम लिखने से छोड़ देता था। यदि किसी ने नाम लिखकर भेजा तो डेस्क से कैंची चल जाती थी। क्योंकि समाचार पत्रों में श्रीमान, श्री, श्रीमती लिखने का चलन नहीं था। ऐसे में मुझे समाचार के बाद एक नोट लिखना पड़ा। इसमें लिखा कि-इस महिला का नाम ही श्रीमती राणा है। ऐसे में उनका नाम ना काटा जाए।
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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