विश्व सामाजिक न्याय दिवस, लोगों को अधिकारों के प्रति जागरूक करने की जरूरतः मनीष गर्ग
वर्त्तमान परिवेश में समाज में फैली असमानता और भेदभाव में सामाजिक न्याय की मांग अब और भी तेज हो गई है। सामाजिक न्याय के लिए न्याय की मांग तो वर्षों से होती रही है, जिसका विवरण हमें अपने इतिहास में भी मिलता है।

समाज में फैली इसी असमानता और भेदभाव को ध्यान में रखते हुए सयुक्त राष्ट्र ने 20 फरवरी 2009 को विश्व सामाजिक न्याय दिवस की शुरुवात की, लेकिन भारत में 20 फरवरी को ही इसका प्रचार होता है। वो भी शुभकामनाओं के साथ। आज हमारे देश में धर्म, संस्कृति, भेदभाव, नस्ल, वर्ग, लिंग, आर्थिक, गरीबी, और महंगाई की असमानता इतनी अधिक बढ़ गई है की संभाले नहीं संभल सकती। जब तक इसका नकारात्मक प्रचार ख़तम नहीं होगा।
क्या हमारे समाज में फैली इस असमानता को कभी कम या ख़त्म किया जा सकेगा ? क्या कभी समाज के ठेकेदार समाज को सामाजिक न्याय के बारे में जानकारी दे पाएंगे ? शायद नहीं, कभी नहीं हो पायेगा। क्योंकि आज भी हम पत्थर की लकीर पर चलने वाले, धर्म के नाम पर एक दुसरे पर कटाक्ष करने वाले, अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देने वाले, फ्री के प्रलोभन में पड़ने वाले आदि तथ्यों से इस कदर जुड़ चुके हैं कि हम और हमारे आगे की कई पीडियां इससे बाहर नहीं आ सकते।
मेरा अनुरोध है समाज के प्रतिष्ठित औहदेकारों से की वो अपनी प्रतिष्ठा को और अधिक बढ़ाने के लिए सामाजिक न्याय का खुलकर प्रचार – प्रसार करें और असल सामजिक ठेकेदार बन कर सामजिक न्याय कौन से और किस परिस्तिथिति में उसका इस्तेमाल किया जा सकता है, आदि जानकारी आम आदमी को दें। कोई प्रलोभन न दें। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति न्याय की किताब पढ़ नहीं सकता। वो सिर्फ संविधान निर्माताओं को नमन कर सकता है। विश्व सामाजिक न्याय दिवस की सबको शुभकामनाएं।
मनीष गर्ग
समाज सेवक, देहरादून, उत्तराखंड।