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December 12, 2024

उत्तराखंड की द्वारिका है सेममुखेम श्री कृष्ण नागराजा मंदिर, भव्यता के बावजूद सरकार का उदासीन रवैया, जानिए खासियतः भूपत सिंह बिष्ट

सेममुखेम, हमारी प्राचीन परम्परा का अन्य हिमालयी राज्यों की तरह सबसे प्रमुख नाग मंदिर हैं। यह टिहरी जनपद की प्रतापनगर तहसील में स्थित है।

उत्तराखंड में नागराजा देवता को पूजने की प्राचीन परम्परा है। परिवार में या दुधारू पशुओं में होने वाली बीमारियों के लिए सबसे पहले नागदेवता के दोष का निवारण किया जाता है। सेममुखेम, हमारी प्राचीन परम्परा का अन्य हिमालयी राज्यों की तरह सबसे प्रमुख नाग मंदिर हैं। यह टिहरी जनपद की प्रतापनगर तहसील में स्थित है।
मनुहार करने का पुण्य तीर्थ
सेममुखेम के मुख्य पुजारी बताते हैं कि नागराजा का यह मंदिर पौड़ी जनपदवासियों के लिए अपने कुल देवता की पूजा अर्चना ओर मनुहार करने का पुण्य तीर्थ है। दूर दराज क्षेत्रों से लोग अपना संकल्प पूरा करने सेम मुखेम पहुंचते हैं। उत्तराखंड ही नहीं, अब गुजरात, पंजाब और हिमाचल के तीर्थयात्री भी नागपूजा के लिए यहां पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि सर्प काल दोष निवारण की पूजा के लिए श्रद्धालु अब इसे देवभूमि में पांचवा धाम की संज्ञा दे रहे हैं।


श्रीकृष्ण के रूप में शिला की होती है पूजा
सेममुखेम मंदिर में एक शीला को श्री कृष्ण के रूप में दूध, घी, मक्खन, चंदन आदि का लेप लगाकर पूजा जाता है। कुछ भक्तों ने श्री कृष्ण और नागराजा की प्रतिमायें भेंट की है। मंदिर में इस पट्टी के अधिपति गंगू रमोला की परिवार सहित प्रतिमा का भी पूजन स्थानीय लोग करते हैं। मंदिर परिसर से हिमालय के बर्फीले शिखर और जंगलात के नैसर्गिक नज़ारे उपलब्ध हैं।


आलौकिक कहानियां
सेममुखेम मंदिर और समीप के शतरंजसौड़ से तमाम अलौकिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। यह कहानियां द्वापर युग से लेकर रैंका रमोली की लोक कथाओं को जागर में आज भी सजीव रखे हुए है। श्री कृष्ण ने यहां एक वृद्ध पंडित का रूप धारण कर चमत्कार किए, विषैले नाग केलि को शाप मुक्त कर इस सुंदर वन में पूजा के लिए स्थापित किया। लोक जागरों में वीर भड़ गंगू रमोला और श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन एक अनूठी गाथा है।
करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं मिला स्थान
नवंबर 2017 की मीडिया रिपोर्ट अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सेममुखेम क्षेत्र विकास के लिए 76 करोड़ राशि जारी की और बहुचर्चित डोबरा – चांठी पुल जैसे तमाम विकास कार्य तेजी से पूरा कराने के लिए 42 करोड़ के अन्य शिलान्यास किए। इस दौरान सेममुखेम में एक मेले का आयोजन भी हुआ।
अजीब बात तो यह है कि करोड़ों खर्च के बाद अभी तक सूचना विभाग ने टिहरी जनपद के इस प्रमुख धाम को धार्मि तीर्थस्थल की सूची में स्थान नहीं दिया है और जनप्रतिनिधि और अधिकारी सब बेखबर बने हुए हैं। सरकारी डायरी में उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों में अभी तक दर्ज नही हुआ है। शायद टिहरी बांध में प्रतापनगर तहसील के मार्ग जल मग्न हो जाने से यह इलाका सूचना संसार से कटा रहा और अब डोबरा चांठी पुल ने इस इलाके की सांस्कृतिक रौनक फिर से बढ़ायी है।


पहले होती थी पदयात्रा, अब मोटर मार्ग
पहले कभी सेममुखेम की पदयात्रा जीवन का एक अध्याय होती थी। लंबगांव से मोटर मार्ग अब नागदेवता मंदिर से 2 किमी दूर तक बन चुका है। सेममुखेम पहुंचने के लिए लंबगांव मुख्य पड़ाव है। लंबगांव आने के लिए ऋषिकेश – चंबा होते हुए से डोबरा चांठी पुल से या चिन्याली सौड़ या उत्तरकाशी की ओर से अब मोटर मार्ग का जाल बिछ गया है। लंबगांव के तंग बाजार से होकर सेममुखेम मार्ग खेतों की हरियाली और भरपूर प्राकृतिक छटा से होकर मुखेम गांव पहुंचता है।
सेमवाल हैं नाग मंदिर के पुजारी
मुखेम के सेमवाल लोग, इस नाग मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। हर तीसरे साल सेममुखेम में दस – ग्यारह गते मंगसीर यानि नवंबर माह के अंतिम सप्ताह में उत्तराखंड का एक बहुचर्चित मेला धूमधाम से आयोजित होता है।
मुखेम गांव के बीच से मुख्य रास्ता मंदिर की ओर मेला मैदान तक जाता है। इस मेला मैदान से सेममुखेम की दूरी 2 किमी के आसपास है। मेला मैदान में पर्यटन विभाग ने करोड़ों की लागत से टूरिस्टों के लिए भवन तैयार कर लिया है लेकिन इसका लोकार्पण अब भगवान भरोसे है। लगता है नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के हाथों ही इसका उदघाटन होना लिखा है। उत्तराखंड संस्कृति के इतने बड़े प्रोजेक्ट पर अधिकारियों और नेताओं की लापरवाही क्षम्य नहीं है।


नव निर्मित झील पर लग रहा पलीता
सेममुखेम मेला मैदान के निकट जीएमवीएन की एक नवनिर्मित झील बतायी गई है। जिसमें जल की भरपायी बारिश के जलसंरक्षण से होनी है, लेकिन देखरेख के अभाव में सरकारी योजना को यहां भी पलीता लगा दिखता है। इस झील के किनारे बहुत मंहगें खर्च के प्रसाधन गृह बने हैं और हाल फिलहाल यहां गाय, भैंस गोबर करती घूमती हैं। यहां हैलीपेड के साथ ही सरकारी जड़ी बूटी विकास संस्थान की चारदीवारी मुंह चिढ़ा रही है। पता नहीं, कब स्थानीय लोग अतिरिक्त जीविका के लिए जड़ी बूटी उत्पादन करना सीख पाते हैं।


9521 फीट पर हिमालय और घने जंगलों से घिरे समतल मेला मैदान की खूबसूरती देखते ही बनती है, लेकिन इस मैदान में टाइलों का रोपण नकली सोच का परिचायक है। कुछ युवा इस मैदान में क्रिकेट और अन्य खेल के आयोजन का सपना पाले हुए हैं। एशियन डेवल्पमेंट बैंक के सहयोग से भारत के चार राज्यों में टूरिज्म विकास के लिए आधार भूत संरचना विकास के लिए हिमाचल, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तराखंड का चयन हुआ है। टूरिज्म इंफ्रास्ट्रकचर के विकास हेतु सेममुखेम चयनित है। जौली ग्रांट एयरपोर्ट से सेममुखेम की दूरी 197 किमी और ऋषिकेश से 184 किमी है।

लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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