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November 7, 2024

मंगल ग्रह में इंसान को बसाने की उम्मीद को झटका, नासा ने बताया इस वजह से लाल ग्रह में जिंदा नहीं रह पाते इंसान

दुनिया भर के वैज्ञानिक लंबे समय से लाल ग्रह मंगल में जीवन की संभावना को लेकर अध्ययन कर रहे हैं। वैज्ञानिकों को ऐसे वातावरण के संभावनाओं की तलाश है, जिससे दूसरे ग्रहों में भी इंसान को बसाया जा सके। ऐसे ग्रहों में मंगल ग्रह भी शामिल है। वैज्ञानिक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्‍या मंगल ग्रह का वायुमंडल और वातावरण इंसानों के रहने लायक है। क्‍या धरती के बाहर किसी ग्रह पर जीवन हो सकता है। मंगल ग्रह पर जीवन की अरसे से चल रही अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तलाश को बड़ा झटका मिला है। नासा ने मंगल ग्रह पर तीन साल पहले इनसाइट लैंडर को भेजा था। नासा ने इससे मिले डाटा के आधार पर कहा है कि मंगल ग्रह पर ना तो इंसान रह सकता है और ना ही वहां जा सकता है। हालांकि, नासा मंगल ग्रह में इंसान को भेजने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए अभी कई तरह के चरण पूरे किए जाने हैं। गर सब कुछ सही रहा तो 2030 तक वहां पर इंसानों को भेजा जाएगा। वहां पर वो कैसे सर्वाइव करेंगे, इसको लेकर ट्रायल शुरू होने जा रहा। नासा ने अभी चार लोगों को इस प्रोजेक्ट के लिए चुना है, जिसमें कनाडाई जीवविज्ञानी केली हेस्टन भी हैं। वो जल्द ही उस घर में रहने जा रहीं, जिसको मंगल ग्रह के हालात जैसा बनाया गया है। वो वहां पर ट्रेनिंग लेंगी और करीब एक साल तक उसमें रहेंगी। इस दौरान वो ना बाहर आ पाएंगी और ना ही कोई उस घर में जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मंगल के केंद्र में भूकंपीय तरंगे
नासा के मुताबिक, मंगल ग्रह के केंद्र में भूकंपीय तरंगे मौजूद हैं। नासा को इनसाइट लैंडर से मिले डाटा के विश्‍लेषण से ये भी पता चला कि मंगल ग्रह के केंद्र पिघला हुआ लोहा और लोहे से बनने वाली कई धातुएं मौजूद हैं। इन धातुओं में सबसे ज्‍यादा सल्‍फर और ऑक्‍सीजन पाया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, डाटा से पता चला कि करीब साढ़े चार अरब साल पहले मंगल ग्रह का निर्माण कैसे हुआ? इसी डाटा से वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि मंगल और धरती में क्‍या अलग है। वहीं, दोनों के बीच समानताओं के बाद भी धरती पर जीवन होने और लाल ग्रह पर इंसानों के जीवित नहीं रह पाने के कारण भी स्‍पष्‍ट हो गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस कारण पिघला हुआ है मंगल ग्रह का केंद्र
अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में असिस्‍टेंट प्रोफेसर और शोधकर्ता वेदर्न लेकिक की टीम ने लाल ग्रह पर दो भूकंपीय घटनाओं पर नजर रखी। इनमें पहली घटना, मंगल ग्रह पर आने वाले भूकंप और दूसरी अंतरिक्ष से किसी चीज को भेजने पर हुई टक्‍कर से मंगल ग्रह के केंद्र में पैदा होने वाली भूकंपीय तरंगे शामिल थीं। भूकंप विज्ञानियों ने जानकारी जुटाई कि भूकंपीय तरंगों को लाल ग्रह की सतह पर मौजूद दूसरी तरंगों के साथ मंगल की कोर से गुजरने में कितना वक्‍त लगता है। फिर मिले डाटा का लाल ग्रह की दूसरी भूकंपीय घटना और पृथ्‍वी के डाटा से तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया। इससे वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर मौजूद पदार्थ के घनत्‍व और दबाव की क्षमता का पता चला। इसी से पता चला कि मंगल का केंद्र पिघला हुआ है। इसके उलट धरती के केंद्र की बाहरी परत ठोस, सख्‍त और अंदर से पिघली हुई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इसलिए संभव नहीं है मंगल ग्रह में जीवन
नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, सल्फर और ऑक्सीजन मिलने का मतलब है कि मंगल का केंद्र धरती के केंद्र से कम घना है। इससे ये भी साफ होता है कि मंगल और धरती के बनने के हालात अलग थे। शोधकर्ता एस. निकोलस के मुताबिक, किसी भी ग्रह के केंद्र से ही उसके बनने और फिर विस्तार की जानकारी मिलती है। इस प्रक्रिया से पता चलता है कि ग्रह पर जीवन की उम्‍मीद है या नहीं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारे ग्रह पृथ्‍वी के केंद्र में एक चुंबकीय क्षेत्र है. ये चुबकीय क्षेत्र ही हमें सूर्य पर आने वाले सौर तूफानों के असर से बचाते है। इसके उलट मंगल ग्रह के केंद्र में चुबकीय क्षेत्र नहीं होने के कारण वहां जीवन संभव नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

10 से ज्‍यादा देशों के वैज्ञानिक शामिल
नासा की इस परियोजना के मुख्‍य वैज्ञानिक ब्रूस बैनर्ट के मुताबिक, मंगल ग्रह पर भेजी गई 358 किग्रा वजनी इंटीरियर एक्‍सप्‍लोरेशन यूजिंग सेस्मिक इंवेस्टिगेशंस मशीन ने अभियान शुरू होने से पहले कहा था कि ये मशीन साढ़े चार अरब साल पहले पृथ्‍वी और चंद्रमा जैसे पथरीले ग्रहों के बनने की प्रक्रिया का पता लगाएगी। इनसाइट सौर ऊर्जा बैटरी से चलने वाली मशीन थी। इसे 26 महीने लगातार काम करने के लिए बनाया गया था। अमेरिका, यूरोप और जर्मनी समेत 10 से ज्‍यादा देशों के वैज्ञानिक इस अभियान में शामिल थे। इस मिशन पर 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए। अब इस मशीन से मिले डाटा ने मंगल ग्रह पर जीवन तलाश रहे वैज्ञानिकों के शोध को बड़ा झटका दे दिया है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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