बॉम्बे हाई कोर्ट से केंद्र सरकार को झटका, फैक्ट चेक यूनिट बताया असंवैधानिक, किया रद्द
फैक्ट चेक यूनिट मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट से केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने वाली केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने का अहम फ़ैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने आईटी एक्ट में संशोधन को असंवैधानिक करार दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट में संशोधन जनता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। हाई कोर्ट में कुणाल कामरा समेत कुछ मीडिया कंपनियों द्वारा आईटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिका में आईटी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन को असंवैधानिक घोषित करने और केंद्र सरकार को नए नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने का आदेश देने की मांग की गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कई महीनों की लंबी सुनवाई के बाद जस्टिस अतुल चांदुरकर ने माना कि एफसीयू संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), 19 (बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी), 191-जी (पेशे के अधिकार) और 21 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। आईटी नियमों में फ़र्ज़ी, भ्रामक और झूठ जैसे शब्दों की व्याख्या पूरी तरह से अस्पष्ट है, जो तार्किकता की कसौटी पर ख़री नहीं उतरती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जनवरी, 2024 में हाई कोर्ट की जस्टिस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने एफसीयू पर खंडित फैसला सुनाया था। लिहाजा मामले को तीसरे जज के पास सुनवाई के लिए रेफर किया गया था। जस्टिस पटेल ने एफसीयू को अभिव्यक्ति की आजादी के ख़िलाफ़ माना था। जस्टिस पटेल के मुताबिक, एफसीयू ऑनलाइन सूचनाओं पर एक सेंसरशिप का काम करेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वहीं, जस्टिस गोखले ने एफसीयू का समर्थन किया था। जस्टिस गोखले के अनुसार, एफसीयू दुर्भावना से भरी सूचनाओं को फ़ैलने से रोकेगा। केवल एफसीयू के दुरुपयोग की संभावना के आधार पर इसे अमान्य नहीं किया जा सकता है। एफसीयू से अधिकारों के उल्लंघन पर लोगों को अदालत आने की छूट देता है। दो जजों की मतभिन्नता को देखते हुए चीफ जस्टिस डी़ के़ उपाध्याय ने केस को तीसरे जज चांदूरकर के पास रेफर किया था। अब जस्टिस चांदुरकर ने इस विषय पर जस्टिस पटेल के विचारों से सहमति ज़ाहिर की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मामले में जस्टिस अतुल चंदूरकर ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम 2023, जो केंद्र सरकार को ऑनलाइन फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट बनाने का अधिकार देता है, संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के खिलाफ है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कुणाल कामरा का पक्ष रखने वाले सीनियर ऐडवोकेट नवरोज सिरवई ने जस्टिस चांदुरकर के सामने स्पष्ट किया कि एफसीयू का उद्देश्य उन चर्चाओं पर सेंसरशिप लगाना है, जिन्हें सरकार दबाना चाहती है। यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। वहीं, केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया था कि एफसीयू केवल सरकार से संबंधित सामग्री पर केंद्रित है। यह आलोचना और व्यंग्य पर अंकुश नहीं लगाता है। भ्रामक सूचनाओं से नागरिकों को सर्तक करने के उद्देश्य से एफसीयू को लाया गया है। सटीक सूचना पाना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। कामरा के अलावा एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी आईटी नियमों में बदलाव का विरोध किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एफसीयू के बारे में
केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया के फोरम फेसबुक, ट्विटर यूट्यूब पर फ़र्ज़ी, भ्रामक, झूठी ख़बरों पर शिकंजा कसने के उद्देश्य से फैक्ट चेक यूनिट की व्यवस्था बनाई थी। ताकि सरकार के कामकाज की सही और सटीक सूचनाएं नागरिकों तक पहुंचे। यदि सोशल मीडिया में कोई झूठी ख़बर डाली जाती है, तो एफसीयू उसे चिह्नित करेगा, फिर उसे वहां से हटाया जाएगा। पिछले काफी समय से सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक में केंद्र सरकार और बीजेपी की आलोचना वाली खबरों को हटाने में जरा सी भी देरी नहीं लग रही है। ऐसी खबरों को फेसबुक कम्युनिटी के खिलाफ बताता है। वहीं, जाति और धर्म के नाम पर समाज में जहर घोलने वाली और लोगों को भड़काने वाली पोस्ट फेसबुक को नजर नहीं आ रही हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।