चार अप्रैल को शीतला अष्टमी, जानिए क्यों लगाते हैं बासी भोजन का भोग, बता रहे हैं आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को प्रकृति पर्व शक्ति पूजा शीतला माता का विशेष अनुष्ठान किया जाता है। इसे संतान अष्टमी व भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत बसंत ऋतु के समय प्रकृति में बदलाव के कारण स्वस्थ आरोग्य, दीर्घायु का प्रतीक है। इस व्रत की पूजा, अर्चना, बंदना, यज्ञ व माता शीतला को बासी भोग लगाने का उद्देश्य पूर्णतयाः आरोग्यता को अर्थात स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने से है। इस बार शीतला अष्टमी रविवार चार अप्रैल को है। यहां आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी इस दिन का महत्व, मुहूर्त और पूजा की विधि बता रहे हैं।
शीतला अष्टमी को बासौड़ा और शीतलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। इसलिए इस दिन बासी खाना खाया जाता है और शीतला माता को भी बासी खाने का भोग लगाया जाता है। साथ ही ये अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। साथ ही इस दिन महिलाएं परिवार के निरोग रहने की कामना को लेकर इस दिन व्रत रखती हैं।
ये है मुहूर्त
शीतला अष्टमी रविवार 4 अप्रैल को
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06:08 से शाम 06:41 तक
अवधि – 12 घंटे 33 मिनट
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को सुबह 04:12 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को देर रात 02:59 बजे
रोगमुक्त की कामना को लेकर की जाती है पूजा
देखा जाए तो यह व्रत पूरी तरह जो दस वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं, होली त्योहार के बाद अधिकांशतः खानपान, रहन सहन की वजह से भी बीमार पड़ते हैं। यही वो काल है जिस समय बहुत सारी बीमारियां भी प्रवेश करती हैं। लिहाजा यह देखते हुए प्राचीन काल की भारतीय संस्कृति के अनुसार शक्ति पर्व यानी माता दुर्गा की पूजा ऊर्जा का द्योतक होती थी। इसमें बच्चों, परिवार को किसी भी प्रकार की बीमारियों का प्रभाव न पड़े। प्रायः यह देखने को मिल रहा है, अमूमन लोग अपनी संस्कृति व परंपराओं को भूलकर इस प्रकार के पर्व को न मना रहे हैं ना ही शीतला माता के बारे में जानकारी रख रहे हैं।
रोग निवारण की है देवी
पहले बच्चों के ऊपर से उतारा गया श्रद्धापूर्वक यह प्रसाद माता के चरणों में भोग के रूप में लगता था। इसमें बच्चा किसी प्रकार के रोग, छल कपट से सुरक्षित हो जाता था। प्रत्येक व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार माता शीतला को तेल की कढ़ाई में उबला हुआ गुलगुले (मीठा प्रसाद), हलवा आदि का प्रसाद लेकर शीतला माता का मंदिर जहां होता था, वहां प्रत्येक परिवार के लोग जाकर चढ़ाते थे। और घर परिवार में खुशहाली, रोग निवृत्ति और बच्चे स्वस्थ रहते थे। शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी भी माना जाता है। यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।
चढ़ाया जाता है बासी खाना
शीतला अष्टमी के दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया है। इस कारण होली के बाद लोग अपने घरों में शीतला माता के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। दो तीन दिन पुराना प्रसाद चढ़ाते आ रहे हैं। इसमें मीठे चावल, गुलगुले, हल्दी आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
बासी भोजन के लाभ
इसके भौतिक कारण पर जाएं तो यदि भोजन पवित्रता, शुद्धता और सुरक्षा के साथ रखा गया तो बासी भोजन पेट के लिए सुपाच्य का काम भी करता है। ऐसा देखा गया है। ये भी कहा जाता है कि सुबह नाश्ते में बासी रोटी खाने से पाचन के साथ ही ब्लड प्रेशर कंट्रोल रहता है।
ऐसे करें पूजा
मिट्टी का नहीं आटे का दिया जलाएं।
श्रृंगार वस्तु के साथ थाली सजाएं।
हल्दी के टीके के साथ रौली और मौली रखें।
थाली में पीले, सफेद और लाल फूल रखें।
घर के सभी सदस्यों को पीली हल्दी का टीका लगाएं।
जिस स्थान पर जल रखते हैं, उस स्थान की पूजा करें।
गाय माता साथ ही ब्राह्रमण की पूजा करें और इन सभी को भी बनाया हुआ प्रसाद दें।
व्रत रखकर यह सब कार्य करें।
शीतला माता मंदिर जाने का प्रयास अवश्य करें।
जिस स्थान पर होलिका दहन किया गया था, अपने घर से एक मुट्ठी चावल पूरे परिवार के ऊपर सात बार घुमाने के बाद उस स्थान पर छोड़ कर आएं। वहां पर पूजा, तिलक व कुछ प्रसाद छोड़कर आएं।
आचार्य का परिचय
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
(धर्मज्ञ, ज्योतिष विभूषण, वास्तु, कथा प्रवक्ता)
चंद्रविहार कारगी चौक, देहरादून, उत्तराखंड।
फोन-9760690069
-9410743100
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।