भाषा के कुशल जुलाहे थे शैलेश मटियानी, इनके साहित्य से हुआ आंचलिक साहित्य का जन्म (पुण्य तिथि पर विशेष)
उत्तराखंड के महान साहित्यकार शैलेश मटियानी के साहित्य से ही आंचलिक साहित्य का जन्म और विकास हुआ। मटियानी, भाषा के कुशल जुलाहे थे। हिंदी के प्रति उनका लगाव ऐसा था कि उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी। उत्तराखंड सरकार उनके नाम पर मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार प्रदान करती है। इसके तहत सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। आज मटियानी जी की पुण्य तिथि है। उनके जीवन पर इतिहासकार देवकी नंदन पांडे प्राकश डाल रहे हैं।
जीवन परिचय
अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछिना में 14 अक्टूबर 1931 को शैलेश मटियानी का जन्म हुआ था। इस महान साहित्यकार ने पचास वर्षो तक साहित्य साधना की। आंचलिक साहित्य का जन्म व विकास इनके साहित्य से हुआ। आंचलिकता में जिस संकुचित वातावरण का बोध होता है, वह मटियानी जी के साहित्य में देखने को नहीं मिलता। इनकी आंचलिकता में विविधता है। अपने जीवन की तरुण अवस्था में इतने सफल उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित हो जाने का कारण उपन्यासों के कथा शिल्प के साथ इनका गरिमामय व्यक्तित्व भी था।
बारीकी से बुनते थे शब्दों का ताना बाना
मटियानी, भाषा के कुशल जुलाहे थे। शब्दों का ताना-बाना इतनी बारीकी से बुनते थे कि पाठक को उसकी गूढ़ता में कोई अदृश्यभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। उनके आंचलिकता एवं वातावरण का चित्रण करने की कला इन्हें गोर्की के समकक्ष ला देती है। गोर्की जैसी भाषा की जादूगरी, भाषा के भंवर मटियानी की साहित्य कला की विशेषता है।
कुमाऊंनी परिवेश को समझने के लिए उनकी कहानियां श्रेष्ठ माध्यम
कुमाऊँनी परिवेश को समझने और जानने के लिए इनकी कहानियाँ श्रेष्ठ माध्यम हैं। समाचार पत्रों में समय-समय पर प्रकाशित हुए उनके लेख उत्तराखण्ड के विकास स्वप्न को दर्शाते हैं। सन् 1994 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने मटियानी जी को डी. लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, लोहिया सम्मान तथा साधना सम्मान आदि ने भी समय-समय पर इनकी साहित्य साधना को प्रोत्साहित किया है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने के लिए मटियानी जी ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली।
पुत्र की मृत्यु से टूट चुके थे ये साहित्यकार
प्रख्यात साहित्यकार व लेखक शैलेश मटियानी जीवन के अन्तिम वर्षों में मानसिक यंत्रणा, आर्थिक विपन्नता, अकेलेपन की पीड़ा व पुत्र की मृत्यु से टूट चुके थे। इन्हीं निराशाओं के कंटकों ने उन्हें उत्तरांचलवासियों से सदैव के लिए 24 अप्रैल 2001 को छीन लिया।
24 उपन्यास तथा 15 कथा संग्रह
शैलेश मटियानी जी का पहला उपन्यास ‘बोरीबली से बोरीबंदर’ है। इसमें उन्होंने बम्बई प्रवास में जिस जीवन संघर्ष को अनुभव किया, उसी का चित्रण किया है। ‘कबूतरखाना’ बम्बई जैसी महानगरी में पलने वाले साधनविहीन समाज का सजीव चित्रण है। बम्बई की ही पृष्ठभूमि में लिखा उनका ‘किस्सा नर्मदाबेन गंगूबाई’ उपन्यास अत्याधिक लोकप्रिय है। मटियानी जी को सबसे अधिक प्रसिद्धि होलदार’ उपन्यास से मिली। यह उपन्यास कुमाऊँ के कौटुम्बिक जीवन का यर्थात चित्रण है। उनके लगभग 24 उपन्यास तथा 15 कथा संग्रह हिन्दी साहित्य की अनुपम धरोहर हैं।
पाठ्यक्रम में शामिल हुआ उपन्यास
2000 में नए राज्य का गठन होने के बाद उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने अपना अलग पाठ्यक्रम निर्मित किया। पाठ्यक्रम में ऐसे उपन्यास को शामिल करने की जरूरत समझी गई जो जो उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ा हो। ऐसे में शैलेश मटियानी का लोकगाथा परक उपन्यास ‘मुख सरोवर के हंस’ पाठ्यक्रम में रख दिया गया।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।