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March 10, 2025

दूसरों की थाली देखकर होने लगती है परेशानी, दरार पड़ी तो नहीं भरेगी खाई

मानव प्रवृति की ऐसी है। उसे अपनी नहीं, दूसरे की थाली में ज्यादा घी नजर आता है। अब घी को ही देखें। सेहत तो बनाता ही है, लेकिन ज्यादा खाने से बिगाड़ता भी है। ज्यादा खाओ तो कलोस्ट्रोल बढ़ जाता है।

मानव प्रवृति की ऐसी है। उसे अपनी नहीं, दूसरे की थाली में ज्यादा घी नजर आता है। अब घी को ही देखें। सेहत तो बनाता ही है, लेकिन ज्यादा खाने से बिगाड़ता भी है। ज्यादा खाओ तो कलोस्ट्रोल बढ़ जाता है। फिर लोग घी से तौबा करने लगते हैं। दूसरे की थाली में देखने की आदत व्यक्ति को बचपन से ही पड़ जाती है। छोटे बच्चे हमेशा यही देखते हैं कि उनकी मनपंसद खाने की चीज कहीं दूसरे भाई या बहन को उससे ज्यादा तो नहीं दी गई। बड़े होने पर व्यक्ति अपने दोस्तों व सहयोगियों पर नजर रखता है। कहीं वह उससे कुछ ज्यादा तो नहीं प्राप्त कर रहा है। नौकरी पेशे वालों के साथ ही आस- पड़ोस के लोगों में भी यही प्रवृति देखी जा सकती है।
कुछ तो ऐसे होते हैं, जो थाली के चक्कर में ही नहीं पड़ते और अपनी थाली खुद ही सजा लेते हैं। यानि अपनी व्यवस्था अपने आप। करीब तीस साल पहले एक मोहल्ले के कुछ युवक सर्दियों में बर्फ देखने देहरादून के राजपुर से मसूरी को पैदल टूर पर निकल पड़े। सबके कंधे में छोटे बैग लटके थे और उसमें जरूरत का सामान था। इनमें सभी लोग अपने अपने बैग से खानपान का सामान निकालकर एक दूसरे को बांट रहे थे। मौज मस्ती में सफर आगे बढ़ रहा था।
इसी ग्रुप में एक युवक ऐसा था, जो बार बार जानबूझकर पीछे रह जाता। फिर आगे निकले साथियों को उसका इंतजार करना पड़ता। एक साथी को शक हुआ। उसने जैसे ही साथी पीछे छूटा तो वह कुछ आगे जाकर एक पेड़ की आड़ में छिप गया। उसने देखा कि युवक ने बैग खोला और झटपट एक उबला अंडा निकाला और उसके छिक्कल उतारकर पूरा अंडा मुंह में घुसा दिया। फिर फटाफट चलने लगा। उसे साथियों ने पकड़ लिया। पूछा बता मुंह में क्या है। वह बोल नहीं पाया। मुंह में तो अंडा था। खैर ये कहानी दोस्तों के लिए मनोरंजन का साधन बनी रही।
नौकरी पेशा वालों में तो चाहे काम का कंप्टीशन कम रहे, लेकिन इंक्रीमेंट के समय दूसरे की सेलरी स्लीप वह अपने से पहले खंगालने का प्रयास करते हैं। उसका ज्यादा क्यों लग गया, मैरा कम क्यूं लगा, उन्हें यही चिंता खाए जाती है। ये थाली ही ऐसी चीज है, जो कई बार दोस्तों में भी दरार पैदा कर देती है। कई बार तो जिगरी दोस्तों को थाली से उठे झगड़े को संभालने में पापड़ तक बेलने पड़ जाते हैं।
काफी पुरानी बात है। देहरादन के राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति आशिया में प्रेजीडेंट बाडीगार्ड दिल्ली से हर साल गरमियों में घोड़े लाए जाते थे। देहरादून घोड़े लाने के पीछे दो कारण होते थे। एक कारण तो यह था कि घोड़ों को दिल्ली की ज्यादा गरमी से बचाया जाए। दूसरा, घोड़ों के साथ आने वाले रंगरूट (सिपाही) से देहरादून के राष्ट्रपति आशियां की देखभाल भी हो जाती थी। परिक्षेत्र में उगी घास की सफाई आदि भी वही करते थे।
इन रंगरूटों में दो जिगरी दोस्त लखवीर व सतवीर थे। दोनों जाट थे और उनकी दोस्ती बचपन से थी। दोनों साथ-साथ फौज में भर्ती हुए। देहारादून आने पर दोनों ने सलाह बनाई कि फैमली भी क्यों न दो माह के लिए साथ लाई जाए। फिर दोनों अपनी बीबी व बच्चों को साथ ले आए। दोनों दोस्तों की पत्नी ने घर का कामकाज आपस में बांटा था। एक समय का एक खाना बनाती, तो दूसरी बार दूसरी का नंबर होता। दोस्ती सही चल रही थी, लेकिन थाली ने बात बिगाड़ दी।
लखवीर (लक्खी) की पत्नी ने एक दिन सतवीर की पत्नी से इस बात पर झगड़ा कर दिया कि वह अपने पति की थाली में ज्यादा घी डालती है। फिर यही आरोप सतवीर की पत्नी ने दूसरे दिन लक्खी की पत्नी पर लगाया। अब यह झगड़ा हर दिन का हो गया। बात बड़ी तो दोस्तों ने तय किया कि क्यों न हम रसोई को ही अलग-अलग कर दें। रसोई अलग होने पर रोज का झगड़ा थम गया, लेकिन थाली ने दोनों के बीच जो दरार बनाई, उसे वे कभी पाट नहीं पाए।

भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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