ऐसी दीपावली देख राम भी रो उठते, राम थे पर्यावरण प्रेमी-हम कर रहे हैं उलट, राक्षसों का नाश करने को की थी पदयात्रा

मेरी नजर में राम अन्य राजाओं की भांति एक राजा थे, लेकिन उनके अच्छे गुण ने उन्हें देवता या भगवान की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया। उनके दौर में आजकल की ही तरह तीन किस्म के लोग इस समाज में थे। उनमें से एक वे थे, जो साधारण मनुष्य थे। ऐसे लोगों में आम नागरिक थे। दूसरी किस्म के लोग वे थे, जो संगठित थे, ताकतवर थे, लेकिन लुटेरे थे। ये लोग कभी किसी राजा को लूटते या फिर किसी किसान की फसल, व्यापारी का धन इत्यादि लूटकर ले जाते। किसी को लूटने के लिए वे संगठित होकर हमला करते थे। ऐसे लोगों को राक्षसी प्रवृति का कहा गया। या फिर राक्षस कहा जाता था। या यूं हम कह सकते हैं कि ऐसे लोग आज भी समाज में चारों दिशा में मिल जाएंगे। कोई बड़ी लूट कर रहा है तो कोई छोटी लूट। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तीसरे किस्म के लोग वे थे, जो राम की तरह थे। ऐसे लोग भी लूटने वालों के खिलाफ लोगों को सचेत करते थे। उनके खिलाफ मोर्चा खोलते थे। राक्षस रूपी लुटेरों को हराने के लिए संघर्ष करते रहते थे। ये संघर्ष आज भी जारी है। लूटने की प्रवृत्ति आज भी है और उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले भी हैं। हांलांकि, पहले मीडिया नारद मुनि के रूप मे सत्ता से जुड़ा था, उनकी ही खबरें देता था। आज भी मीडिया यही कर रहा है। सत्ता की कमियां भी छिपाता है और आवाज उठाने वालों की आवाज दबाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राम ने इस धरती को ऐसे राक्षसों से मुक्ति का बीड़ा उठाया। बाल अवस्था में उन्होंने ऋषियों को राक्षसों के अत्याचार से मुक्त कराया। बाद में जब उन्हें 14 साल के वनवास में भेजा गया तो उन्होंने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर लोगों को राक्षसों के अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए संगठित किया। यानि उस समय भी राम ने लोगों को अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए पदयात्रा की थी। लोगों को संगठित कर उनमें राक्षसों से लड़ने का साहस पैदा किया। आज ये काम राजनीतिक दल कर रहे हैं, लेकिन दलों के निजी स्वार्थों की पूर्ति के चलते उन्हें ऐसे कार्यों में सफलता नहीं मिल पाती है। हालांकि, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी जी भी लोगों को जागरूक करने के लिए पदयात्राएं कर चुके हैं। ऐसी पदयात्राएं समय समय पर अलग अलग लोगों की ओर से होती रही हैं। आज भी राक्षस रूपी समस्याएं देश में खड़ी होती जा रही हैं। चाहे इसे बेरोजगारी का नाम दें, या फिर गरीबी का। या फिर सांप्रदायिकता का, या क्राइम की घटनाओं का। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राक्षसों से लड़ने वाले राम की तरह के लोगों को तब दैवीय प्रवृति का कहा जाता था। तब विज्ञान था। इसका उपयोग राक्षस करते तो कहा जाता कि उनके पास मयावी शक्ति है। राक्षसों से लड़ने वाला व्यक्ति यदि विज्ञान का सहारा लेता तो उसे दैवीय शक्ति का ज्ञाता माना जाता। तब मीडिया के लोगों को नारद कहा जाता। वह देवीय प्रवृति व राक्षसी प्रवृति दोनों के लिए ही प्रचार का काम करता था, लेकिन उसकी निष्ठा दैवीय शक्ति वालों से ज्यादा थी। आम जनमानस तक जब कोई घटना नारद के माध्यम से पहुंचती तो वह काफी बढ़ा चढ़ाकर पहुंचती। एक गांव से दूसरे गांव के लोगों को राक्षसों से खिलाफ संगठित करना राम का उद्देश्य था। भोले-भाले ग्रामीण आदिवासियों को उन्होंने रावण के खिलाफ जागरूक किया और एक फौज बनाई। इन ग्रामीणों को ही बंदर कहा जाता था। क्योंकि वे काफी पिछड़े हुए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जब राम ने इस धरती से राक्षसी प्रवृति के लोगों का सफाया किया तो वह अपने घर लौटे। उनके लौटने पर अयोध्या में खुशी मनाई गई। घर-घर में लोगों ने दीप जलाकर दीपावली मनाई। दीपावली यानी दीपक से घर रोशन करने का त्योहार। यानी राम के अच्छे गुणों को ग्रहण कर अपने मन के भीतर के बुराइयों के अंधकार को भगाकर हम अच्छे गुणों से मन को रोशन करें। राम की तरह दूसरों की भलाई करें। अत्याचार के खिलाफ लोगों को लड़ना सिखाएं। यही कुछ होना चाहिए था इस त्योहार में। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसके विपरीत हमने आज यह त्योहार विकृत बना दिया है। भगवान राम तो वनवास के दौरान जंगल में रहे, लेकिन वर्तमान में तो हम इस दीपावली के त्योहार की आड़ पर्यावरण को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। जब पर्यावरण ही सुरक्षित नहीं रहेगा तो जंगल भी कैसे बचे रहेंगे। भगवान राम तो पर्यावरण प्रेमी थे। उनके भाई भरत भी पर्यावरण के प्रति सचेत थे। राम के वनवास जाने के बाद उनके भाई भरत उन्हें वापस बुलाने के लिए घर से वन की तरफ चल पड़ते हैं। उनके साथ प्रजा भी चल पड़ती है। साथ में सैनिक भी चलते हैं। रास्ते में हर गांव, घर पड़ने पर भरत को जो भी मिलता वह राम का पता पूछते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक स्थान पर किसी ऋषि का आश्रम पड़ता है। कुछ दूरी पर वह प्रजा व सैनिकों को रोक कर खुद ही आश्रम तक जाते हैं। ऋषि से भगवान राम का पता पूछने के बाद भरत वापस लौटते हुए बड़ी विनम्रता से ऋषि से पूछते हैं कि उनके व उनके साथियों के आश्रम तक आने में यदि क्षेत्र के पशु-पक्षी, वृक्ष, लताओं को कोई नुकसान पहुंचा हो तो वह स्वयं इसकी भरपाई के लिए तैयार हैं। तब भी कितना ख्याल था भरत को पर्यावरण का। उन्होंने प्रजा को आश्रम से दूर इसलिए रखा कि कहीं प्रजा के आश्रम क्षेत्र में जाने से पेड़, पौधों को कोई नुकसान न हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसा ही किस्सा महाभारतकाल में मिलता है। द्रोपदी ने भीम को लकड़ी लाने को कहा तो वह निकट ही एक पेड़ की डाल को काटने को तैयार हो गए। इस पर युधिष्ठर ने भीम को टोका। उन्होंने कहा कि जिस पेड़ की छाया से शीतलता मिलती है, उस पर कुल्हाड़ी मत चलाओ। यदि लकड़ी चाहिए तो सूखी डाल काटो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब वर्तमान में जो दीपावली मनाई जा रही है, उस पर नजर डालो। एक छोटे से शहर में कई करोड़ों की राशि को हम आतिशबाजी में फूंक देते हैं। साथ ही हवा को विषैला भी बना रहे हैं। इस राशि से शहर के एक मोहल्ले की कायापलट हो सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुख-समृद्धि व खुशहाली के इस त्योहार को कुछ लोग कर्ज लेकर मना रहे हैं कि शायद लक्ष्मी कृपा बरसाएगी। कई दीपवली से कुछ दिन पहले से ही जुए की चौकड़ी में जमने लगते हैं। यह दौर दीपावली के बाद त्योहार की खुमारी उताने तक चलेगा। यदि दीपावली के मनाने के अंदाज के प्रति हम अभी से जागरूक नहीं हुए तो हम पर्यावरण को इतना विषैला बना देंगे कि इसकी भरपाई भी जल्द नहीं होने वाली। साथ ही आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक समाचार पत्र में एक ज्योतिष के विचार पढ़ रहा था कि दीपावली के दिन झाड़ू जरूर खरीदें। सच ही तो कहा था उसने। इस त्योहार को मनाने से पहले घर की साफ सफाई, रंग रोगन इत्यादि भी किया जाने का प्रचलन है। घर साफ सुथरा रहेगा तो मन भी प्रसन्न रहेगा। मेरा कहना है कि आप भी झाड़ू मारो। यह झाड़ू अपने मन में बैठी बुराइयों पर फेरना होगा, जिससे हम ऐसी दीपावली मनाएं, जो फिजूलखर्ची की बजाय साफ सुथरी हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तो तन व मन दोनों ही शुद्ध, व मजबूत रहेंगे। साथ ही आप सभी को इस संकल्प के साथ दीपावली की शुभकामनाएं कि इस बार कुछ अलग हटके दीपावली मनाएंगे। अपने भीतर की कम से कम एक बुराई को छोड़े का संकल्प लेंगे और इसे पूरा कर दिखाएंगे। पर्यावरण और आस्था आदि तो ठीक हैं, लेकिन अब धार्मिक त्योहारों में सांप्रदायिकता विद्वेष की भी खबरें आने लगी हैं। धर्म के आधार पर हम बंटते जा रहे हैं। हर त्योहार में ऐसी घटनाएं भी देखने को मिल जाएगी, जिसमें एक धर्म के लोग दूसरे धर्म से लोगों से भिड़ गए। राम के साथ तो हर जाति, धर्म, बोली, भाषा, गरीब, अमीर आदि सभी जुड़े हुए थे। अब यदि राम होते तो वह भी ऐसी नफरत भरी दीपावली देख कर तो रो उठते। क्योंकि राम ने जो भी किया, हम उसका उलट कर रहे हैं।
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।