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November 10, 2024

वीडियो में देखें, जीभ से लोहे की दहकती सब्बल चाटते देवता के पश्वा, आग में नृत्य करती देवता की डोली, जानिए चमत्कार की कहानी

धर्म, अध्यात्म, विश्वास और विज्ञान। सब कुछ तो है इन पहाड़ों में। जहां देवता हैं तो विज्ञान भी है। जिस बात को सदियों से ग्रामीण जानते हैं, वो धर्म और विश्वास है। आज के युग में उसे विज्ञान कहा जा सकता है। विज्ञान शायद बाद में आया हो, लेकिन विश्वास और आस्था पहले से थी। हर आस्था पर्वों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण भी होता है। इन कारणों के चलते ही हमारे त्योहार हैं। किस त्योहार में क्या पकवान बनना चाहिए। मौसम के अनुकूल। ये सब आस्था हैं, लेकिन इसके पीछे विज्ञान भी है। यहां बात हो रही है मां गंगा के मायके मुखवा गांव की। यहां गंगोत्री के कपाट बंद होने के बाद मां शीतकालीन प्रवास के लिए पहुंच गई। गंगा माता को मायके लाने के लिए खुद सोमेश्वर देवता गंगोत्री तक गए थे। फिर माता गंगा को मुखवा स्थित मां गंगा के मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया गया।

https://youtu.be/kZ44bYdVTm0


कपाटबंदी से साथ शुरू हो जाता है पलायन
मां गंगा के साथ ही ऐसे गांव जहां अब ज्यादा बर्फबारी के चलते रहना दूभर हो जाता है, वहां के ग्रामीण भी नीचले इलाकों की तरफ पलायन कर चुके हैं। इन गांवों में उपला टकनौर क्षेत्र के मुखवा, हर्षिल, बंगौरी, जाला, जसपुर, पुराली, धराली आदि गांव हैं। इन गांवों में अत्यधिक बर्फ पड़ती है और रास्ते तक बंद हो जाते हैं। ऐसे में अधिकांश परिवार निचले इलाकों की ओर पलायन कर जाते हैं। ये लोग उत्तरकाशी, भटवाडी, गोरसाली, गणेशपुर, मातली, नेताला आदि गांवों में रहते हैं। ये लोग अपने मवेशियों को भी साथ ले आते हैं। फिर अगले साल अप्रैल माह से गांव को ओर रुख करते हैं।
मनाया जाता है उत्सव
मां गंगा को मुखवा में प्रतिष्ठित करने के बाद ही मुखवा में उत्सव होता है। पलायन करने वाले ग्रामीण अपनी चल व अचल संपत्ति भगवान के भरोसे छोड़ देते हैं। साथ ही सुखमय भविष्य की कामना करते हैं। मुखवा में मां गंगा के मंदिर के साथ ही सोमेश्वर देवता, नृसिंह देवता, भगवती दुर्गा माता मंदिर है। यहीं प्रांगण में रात को आयोजन होता है पांडव नृत्य का।


नृत्य में दिखाए जाते हैं रोमांचकारी करतब
पांडव नृत्य में रोमांचकारी करतब नजर आते हैं। सोमेश्वर देवता की डोली को आग से नहलाया जाता है। मजाल है कि आग डोली में लिपटे कपड़े को कोई नुकसान पहुंचा सके। यही नहीं, देवता का पश्वा लाल दहकते सब्बल को जीभ से चाटता है। सोमेश्वर देवता के पश्वा लोहे के धारदार तलवार पर भी चलता है। पांडव नृत्य के आयोजन को देखने के लिए आसपास के गांवों को लोग जुटते हैं। इन दिनों मुखवा में लोग पांडव नृत्य को देखने का आनंद उठाते हैं।


विल्सन भी हुए दंग, ये है कहानी
ग्रामीणों के मुताबिक विदेशी नागरिक विल्सन जब हर्षिल में आकर बसे तो उन्होंने मुखवा गांव में इस नृत्य और सोमेश्वर देवता के पश्वा को धारदार हथियार के ऊपर चलते हुए देखा। वह सन हो गया। उसने भी एक लोहार से धारदार लोहे का तलवार बनाकर देवता के पास रखा और कहा कि अगर तो सच्चा देवता है तो इस पर चल कर देख। देवता सोमेश्वर (पश्वा) ने उसी के सामने नंगे पांव चलना शुरू किया। इस पर वह भी हैरत में पड़ गया। इसके बाद जब वह दोबारा अपने देश से लौटे तो देवता को भेंट करने के लिए एक शॉल लेकर आए। देवता ने उन्हें शॉल भेंट करने से पहले ही बता दिया कि तुम मेरे लिए शॉल लाए और और तुम्हारे संदूक में रखा है। आज भी जब मुखबा में कोई आयोजन होता है तो देवता को विल्सन की ओर से भेंट की गई शाल को ओढ़ाया जाता है। हर्षिल में विल्सन का बंगला विल्सन हाउस नाम से प्रसिद्ध है। हर्षिल में यह स्थान मुखवा के निकट है। विल्सन हाउस सरकारी नियंत्रण में है। इसमें आज भी देश-विदेश और शासन प्रशासन के वीआईपी लोग रात्रि निवास करते हैं।
मुखवा से सत्येंद्र सेमवाल की रिपोर्ट।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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