बगैर गरजे ही वापस लौटे एसडीएमसी के बुलडोजर, भवन निर्माण के लिए बनाई पैड़ खुलवाई, सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत
दिल्ली के जिस शाहीन बाग में नागरिकता कानून (सीएए) का विरोध हुआ था, वहां अतिक्रमण हटाने के लिए दक्षिण दिल्ली नगर निगम (SDMC) की टीम के बुलडोजर बगैर गरजे ही वापस लौट गए।
हाई वोल्टेज ड्रामे के बीच राजनीतिक दलों के लोग भी मौके पर जमा हो गए थे। महिलाओं सहित कई लोग जेसीबी मशीन के पंजे पर खड़े हो गए। इसे देखते हुए वहां भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी। इससे पहले, जब पुलिस के अधिकारी स्थानीय दुकानदारों से बात कर रहे थे, तभी अतिक्रमण हटाने की मुहिम को रोक दिया गया था।
अतिक्रमण हटाने पहुंचे MCD के कर्मचारियों के हाथों में लाल रंग का रिबन बांधा गया था, ताकि उनकी आसानी से पहचान हो सके। मौके पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी अतिक्रमण हटाए जाने का विरोध किया। हालांकि, प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पुलिस ने वहां से हटा दिया था।
अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई का विरोध करने आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान भी दल बल के साथ वहां पहुंचे. इनके अलावा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के भी कई कार्यकर्ता वहां जमा हो गए थे। अमानतुल्ला खान ने आरोप लगाया कि अतिक्रमण हटाने के बहाने बीजेपी राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा कि शाहीन बाग में कहीं भी अवैध अतिक्रमण नहीं है. उन्होंने कहा कि जो भी अवैध निर्माण थे, उसे उन्होंने खुद हटवाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई से किया इनकार
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी CPI(M)) ने दक्षिणी दिल्ली के शाहीन बाग सहित अन्य क्षेत्रों में चल रहे अतिक्रमण हटाने के अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसपर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इंकार कर दिया है। दरअसल CPI (M) के वकील ने आज सीजेआई (CJI) के समक्ष याचिका का उल्लेख करते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की है। CPI(M) की ओर से याचिका कल दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम शाहीन बाग में बुलडोजर चलाने की योजना बना रही है, जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में पहले ही कई बिल्डिंग गिराई जा चुकी हैं। याचिका में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम पर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि अतिक्रमण हटाने का कार्यक्रम अत्यधिक अवैध और अमानवीय है। याचिका के अनुसार एसडीएमसी और अन्य संबंधित अधिकारियों द्वारा यहां रहने वाले व काम करने वाले लोगों को कोई उचित कारण बताओ नोटिस या समय नहीं दिया गया था। एसडीएमसी की कार्रवाई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।