समर्थ पोर्टल कॉलेजों और छात्रों के लिए बना जी का जंजालः डॉ सुनील अग्रवाल
डॉ. सुनील अग्रवाल
निजी कॉलेज एसोसिएशन उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने समर्थ पोर्टल को छात्रों और कॉलेजों के लिए जी का जंजाल बताया। समर्थ पोर्टल हर स्तर पर छात्रों और कॉलेजों के लिए हानिकारक साबित हुआ है। समर्थ पोर्टल खुलने और बंद होने के खेल में हजारों छात्र प्रवेश से वंचित रह गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक बयान में उन्होंने कहा कि कुछ छात्रों ने तो विभिन्न संस्थाओं में समर्थ पोर्टल में रजिस्ट्रेशन की प्रत्याशा में अनौपचारिक रूप से कक्षाएं भी शुरू कर दी थी। विगत 13 अक्टूबर के बाद समर्थ पोर्टल न खुलने के कारण अब उन छात्रों का भविष्य अधर में है। पिछले दिनों जब 10 से 13 अक्टूबर तक समर्थ पोर्टल खोला गया था, तो 10 तारीख से 12 तारीख तक तो छुट्टियां ही थी। इसके कारण अधिकांश छात्र जो सप्लीमेंट्री एग्जाम में पास हुए थे, समर्थ पोर्टल में रजिस्ट्रेशन नहीं कर पाए थे। अब ऐसे छात्र और कॉलेज दुविधा की स्थिति में है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉक्टर सुनील अग्रवाल ने स्पष्ट कहा कि विश्वविद्यालय और कॉलेजों का निर्माण छात्रों के लिए होता है। अगर कॉलेजों में सीट खाली रहे और छात्र प्रवेश के लिए भटकते रहें, तो ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या नीतियां छात्रों के हित के लिए बनाई जाती हैं। या छात्रों को अनावश्यक रूप से परेशान करने के लिए प्रदेश में समर्थ पोर्टल का उपयोग पूरी तरह से सिर्फ छात्रों और कॉलेजों को परेशान करने वाला साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व में भी जब-जब समर्थ पोर्टल खोला गया तो एहसान कर कर दो दिन तीन दिन के लिए खोला जाता था। फिर बंद कर दिया जाता था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यही स्थिति तकनीकी विश्वविद्यालय में भी रही। वहां भी तकनीकी विश्वविद्यालय का पोर्टल जल्दी बंद होने के कारण अधिकांश छात्र प्रवेश से वंचित रह गए। डॉक्टर अग्रवाल ने सवाल उठाया कि एक तरफ तो हमारे प्रदेश में किसी भी नीति को देश में सबसे पहले लागू करने की होड़ लगती है। जब यूजीसी ने वर्ष में दो बार प्रवेश की नीति बना दी है, तो उसको अभी तक प्रदेश के विश्वविद्यालय में इंप्लीमेंट क्यों नहीं किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में सीयूईटी और समर्थ पोर्टल में जारी छात्रों की असुविधा के संबंध में प्रधानमंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र भेजा जा रहा है। उनसे अनुरोध किया जा रहा है कि छात्रों और कॉलेजों को होने वाली असुविधाओं को देखते हुए प्रदेश में इन व्यवस्थाओं को समाप्त किया जाए। या इनको व्यावहारिक बनाया जाए।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।




