हवा में साधु बाबा ऐसे लगाते हैं समाधि, आप भी जानिए आखिर क्या है सच
सामग्री व विधि
इस कार्य के लिए लोहे के एक मजबूत रॉड की जरूरत पड़ती है। ये रॉड स्पेशल तौर पर तैयार की जाती है, जो काफी लंबी होती है। इसका ऊपरी सिरा बैसाखीनुमा होता है। नीचला सिरा नुकीला होता है। ऊपरी सिरे से कुछ नीचे इसमें एक दूसरी रॉड भी जुड़ी होती है। वहीं, एक और रॉड इसमें नीचे की तरफ जोड़ी जाती है। इसके अलावा इस काम के लिए एक मृगछाल या चादर का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही छोटे पाए का स्टूल चाहिए होता है।
अब हम लंबी रॉड को इस तरह जमीन पर गाड़ देते हैं कि इसके नीचे की तरफ क्षेतिज पर लगी रॉड भी जमीन के लेबल से कुछ इंच नीचे दब जाए। उस पर मिट्टी डाल दी जाती है। अब दूसरी ऊपर वाली राड की से सटाकर स्टूल ऐसे रखते हैं कि ये रॉड स्टूल के ऊपर रहे। इसके ऊपर मृगछाल बिछा दी जाती है। अब खेल दिखाने के लिए शुरू कर सकते हैं। मृगछाल के ऊपर बाबा पलाथी मारकर समाधि की मुद्रा में बैठ जाता है। वह अपना कंधे से आगे का बांह का हिस्का बैशाखी में फंसा देता है। ऐसे में बाबा ऊपर वाली रॉड पर बैठा होता है, जो किसी को नजर नहीं आती।
अब एक सहायक नीचे से स्टूल सरका देता है। इस पर भी बाबा हवा में लटका हुआ दिखाई देता है। मृगछाल या चादर हवा में लटक जाती है। इससे बाबा जिस रॉड पर बैठा होता है, वो किसी को नजर नहीं आती। सामने वाला देखकर अचंभे में पड़ जाता है। अंधविश्वासी इसे चमत्कार मान बैठते हैं। वहीं, हमने ऐसे खेल की सच्चाई बयां कर दी है।
तथ्य और सावधानी
असर में शरीर का पूरा भार साइड वाली दो रॉड पर टिका होता है। इसमें एक रॉड जमीन के नीचे दबी होती है, जबकि दूसरी पर व्यक्ति बैठा होता है। दोनों की रॉड सामने वाले को नजर नहीं आती हैं। इस खेल में विशिष्ट रॉड तैयारी की जाती है। स्टूल हटाते समय सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इस दौरान रॉड पर बैठा व्यक्ति हिलना नहीं चाहिए। इसके लिए निरंतर अभ्यास भी जरूरी है।