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November 22, 2024

ऐसे प्रकट होती है जमीन के भीतर से मूर्ति, लोग समझेंगे चमत्कार, इस प्रक्रिया में विज्ञान है आधार

जमीन पर तुलसी का पौधा रोपा जाता है। हर दिन उसमें पानी दिया जाता है। प्रवचन चलते हैं। पूजा होती है। दो तीन दिन में चमत्कार हो जाता है। जमीन से मूर्ति बाहर निकलने लगती है। ये चमत्कार नहीं है।

कभी आपने सुना होगा कि बाबा ने जमीन से मूर्ति प्रकट कर दी। बाबा का पंडाल लगा हुआ था। दो चार दिन तक वहां लोग पूजा करने पहुंचते हैं। जमीन पर तुलसी का पौधा रोपा जाता है। हर दिन उसमें पानी दिया जाता है। प्रवचन चलते हैं। पूजा होती है। दो तीन दिन में चमत्कार हो जाता है। जमीन से मूर्ति बाहर निकलने लगती है। ये चमत्कार नहीं है। इसमें विज्ञान की प्रक्रिया है। इसे करने के लिए पहले तैयारी की जाती है।
सामग्री और विधि
इस काम के लिए एक मूर्ति या शिवलिंग की जरूरत पड़ती है। मूर्ति के वजन से पांच गुना चने, तुलसी का पौधा, पानी। सबसे पहले हम उस स्थान पर जहां मिट्टी पथरीली न हो और नम हो, वहां मूर्ति के आकार का करीब 12 ईंच गहरा गड्ढा खोद लेते हैं। इस गड्ढे की चौड़ाई मूर्ति से ज्यादा न हो। ये इतनी होनी चाहिए कि मूर्ति सुविधाजनक रूप से खड़ी रह सके। अब गड्ढे में चने डाल देते हैं। ऊपर से मूर्ति को रखकर मिट्टी डालकर गड्ढा बंद कर देते हैं। यहां से खेल शुरू होता है। इस गड्ढ़े के निकट करीब छह ईंच की दूरी पर तुलसी का पौधा रोपित करते हैं। अब इसमें नियमित रूप से पानी देते रहते हैं। दो से तीन दिन के भीतर मूर्ति जमीन के ऊपर आ जाएगी।

तथ्य और सावधानियां
जब तुलसी के पौधे को पानी से सींचते हैं तो पानी चनों तक पहुंचता है। इससे चने फूलने लगते हैं। चनों के फूलने से जमीन पर दबाव बढ़ने लगता है। फलस्वरूप मूर्ति दो से तीन दिन के भीतर जमीन से बाहर निकलकर प्रकट हो जाती है। लोग इसे चमत्कार समझते हैं। इस प्रक्रिया के लिए सावधानी ये होनी चाहिए कि गड्ढा मूर्ति के आकार और चौड़ाई के मुताबिक होना चाहिए। तुलसी के पौधे को नियमित रूप से पानी देते रहना चाहिए। यदि तुलसी न हो तो पूजा पाठ के बहाने मूर्ति वाले स्थान पर पानी छिड़कते रहें।

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