सेवानिवृत्त शिक्षक कालिका प्रसाद सेमवाल की कविता -जग तारिणी दुख हारिणी माँ गंगा

जग तारिणी दुख हारिणी माँ गंगा
गौमुख से मां गंगा निकलती है
पर्वतो से अठखेलियाँ करती,
मधुर मंगल गीत गाती
जग तारिणी दुख हारिणी मां गंगा ।
गौमुख से गंगा सागर तक,
अमृत जल लेकर बहती,
मानव के पापी मन को तुम,
मां निर्मल पवित्र कर देती हो।
धरती को हरा- भरा बनाती हो
पतित पावनी मां गंगा तुम,
नहीं माँगती कभी किसी से कुछ
सबको अपना अमृत जल देती हो।
जय जय जय माँ गंगा की
तेरे तटो पर गूंज यह रहती है,
मन भावन मनमोहक बन कर,
अतंस में ही विचरण करती है।
मां तेरे अमृतमय जल को
अब हमने गन्दला कर दिया,
इसीलिये तो बाजारों में अब,
पानी बोतलो में बिकता है।
आओ हम सब शपथ ले,
अब न करेगें ऐसी गलती,
कर्म और वचन से सब कहे,
मां गंगा को अब गंदा नहीं करेगें।
कवि का परिचय
कालिका प्रसाद सेमवाल
अवकाश प्राप्त प्रवक्ता, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान रतूड़ा।
निवास- मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
सुंदर रचना