रिसर्चः कोवैक्सीन के भी साइड एफेक्ट्स, सांस का इन्फेक्शन, ब्लड क्लॉटिंग के मामले, लोगों ने की टीकों से तोबा
अभी तक कोरोना के टीके कोविशील्ड के साइड इफेक्ट की बातें सामने आ रही थी, वहीं कोवैक्सीन का टीका लगाने वाले राहत महसूस कर रहे थे। अब भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन- कोवैक्सिन को लेकर भी अच्छी खबर नहीं आ रही है। एक रिसर्च में कहा गया है कि इसके भी साइड इफेक्ट्स हैं। यह बात इकोनॉमिक टाइम्स ने साइंस जर्नल स्प्रिंगरलिंक में पब्लिश एक रिसर्च के हवाले से लिखी है। रिसर्च के मुताबिक, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में हुई स्टडी में हिस्सा लेने वाले लगभग एक तिहाई लोगों में कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हालांकि रिसर्च में कितनी सत्यता है, ये अन्य रिसर्च करने पर ही पता चलेगा, लेकिन ये भी सच है कि अब भारत के लोगों ने कोरोना के टीके लगाने से तौबा कर ली है। क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में अब कोरोना के टीकों का विवरण नहीं दिया जा रहा है। रिपोर्ट में अंतिम बार मंगलवार 14 मई के आंकड़े जारी किए गए हैं। इसके बाद से आंकड़े देने बंद कर दिए हैं। देशभर में अब तक कुल 220,68,94,241 वैक्सीनेशन हो चुका है। इनमें कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों के टीके शामिल हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ताजा रिसर्च में कहा गया कि कोवैक्सीन लगाने वाले लोगों में सांस संबंधी इन्फेक्शन, ब्लड क्लॉटिंग और स्किन से जुड़ी बीमारियां देखी गईं। शोधकर्ताओं ने पाया कि टीनएजर्स, खास तौर पर किशोरियों और किसी भी एलर्जी का सामना कर रहे लोगों को कोवैक्सिन से खतरा है। हालांकि कुछ दिन पहले कोवैक्सिन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने कहा था कि उनकी बनाई हुई वैक्सीन सुरक्षित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोवैक्सीन के दो डोज लगवाए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
926 प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययन में लगभग 50 प्रतिशत ने शोध की अवधि के दौरान भी संक्रमण की शिकायत की। कई लोगों में ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण देखे गए। इतना ही नहीं कोवाक्सिन ले चुके लगभग एक फीसदी लोगों में इसके गंभीर साइड-इफेक्ट्स भी देखे गए जिसके कारण लोगों ने स्ट्रोक और गुइलेन-बैरी सिंड्रोम जैसी समस्याओं की भी शिकायत की।
बढ़ रहा है सांस संबंधी इन्फेक्शन
स्टडी करने वाले शंख शुभ्रा चक्रवर्ती ने कहा कि हमने उन लोगों का डेटा कलेक्ट किया, जिन्हें वैक्सीन लगे एक साल हो गया था। 1,024 लोगों पर स्टडी हुई। इनमें से 635 किशोर और 291 वयस्क शामिल थे। स्टडी के मुताबिक, 304 (47.9%) किशोरों और 124 (42.6%) वयस्कों में सांस संबंधी इन्फेक्शन (अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) देखे गए। इससे लोगों में सर्दी, खांसी जैसी समस्याएं देखी गईं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्किन से जुड़ी समस्याएं आ रही सामने
स्टडी में पाया गया कि स्टडी में हिस्सा लेने वाले टीनएजर्स में स्किन से जुड़ी बीमारियां (10.5%), नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (4.7%) और जनरल डिसऑर्डर (10.2%) देखे गए। वहीं, वयस्कों में जनरल डिसऑर्डर (8.9%), मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़े डिसऑर्डर (5.8%) और नर्वस सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर (5.5%) देखे गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गुलियन बेरी सिंड्रोम का खतरा
कोवैक्सीन के साइड इफेक्ट्स पर हुई स्टडी में 4.6% किशोरियों में मासिक धर्म संबंधी असामान्यताएं (अनियमित पीरियड्स) देखी गईं। प्रतिभागियों में आंखों से जुड़ी असामान्यताएं (2.7%) और हाइपोथायरायडिज्म (0.6%) भी देखा गया। वहीं, 0.3% प्रतिभागियों में स्ट्रोक और 0.1% प्रतिभागियों में गुलियन बेरी सिंड्रोम (GBS) की पहचान भी हुई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गुलियन बेरी सिंड्रोम के बारे में
गुलियन बेरी सिंड्रोम (GBS) एक ऐसी बीमारी है जो लकवे की ही तरह शरीर के बड़े हिस्से को धीरे-धीरे निशक्त कर देती है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एंड स्ट्रोक (NINDS) के मुताबिक, गुलियन बेरी सिंड्रोम (GBS) एक रेयर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन लोगों को ज्यादा खतरा
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्टडी में हिस्सा लेने वाले जिन टीनएजर्स और महिला वयस्कों को पहले से कोई एलर्जी थी और जिन्हें वैक्सीनेशन के बाद टाइफाइड हुआ उन्हें खतरा ज्यादा था। वहीं, भारत बायोटेक ने कहा था कि कोवैक्सिन के चलते किसी बीमारी का केस सामने नहीं आया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत बायोटेक ने 2 मई को कहा था कि कोवैक्सीन की सुरक्षा का मूल्यांकन देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने किया था। कोवैक्सीन बनाने से लगाने तक लगातार इसकी सेफ्टी मॉनिटरिंग की गई थी। कोवैक्सीन के ट्रायल से जुड़ी सभी स्टडीज और सेफ्टी फॉलोअप एक्टिविटीज से कोवैक्सिन का बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड सामने आया है। अब तक कोवैक्सिन को लेकर ब्लड क्लॉटिंग, थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया, TTS, VITT, पेरिकार्डिटिस, मायोकार्डिटिस जैसी किसी भी बीमारी का कोई केस सामने नहीं आया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कंपनी ने कहा था कि अनुभवी इनोवेटर्स और प्रोडक्ट डेवलपर्स के तौर पर भारत बायोटेक की टीम यह जानती थी कि कोरोना वैक्सीन का प्रभाव कुछ समय के लिए हो सकता है, पर मरीज की सुरक्षा पर इसका असर जीवनभर रह सकता है। यही वजह है कि हमारी सभी वैक्सीन में सेफ्टी पर हमारा सबसे पहले फोकस रहता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोवीशील्ड को लेकर हुआ था विवाद
दरअसल, भारत में सबसे पहली कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड है। इसे पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया है। कोवीशील्ड फॉर्मूला ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका से लिया गया है। एस्ट्रेजेनेका ने अब ब्रिटिश अदालत में माना कि उनकी वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट्स हैं। इसे लगाने से कुछ केस में लोगों को थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। स्ट्रोक और हार्ट बीट थमने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। कंपनी से बाजार से अपनी वैक्सीन वापस मंगा ली हैं। वहीं, इस कंपनी को लेकर एक ये विवाद भी सामने आया कि कंपनी ने इलेक्टोरल बांड के जरिये बीजेपी को 52 करोड़ रुपये का चंदा दिया था।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।