अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर पढ़िए ये सुंदर गजल-मैं सब को रखता हूं खुशहाल घर में
मैं सब को रखता हूँ खुशहाल घर में।
मगर रह जाता हूँ बदहाल घर में।।
मैं करता सब को मालामाल घर में।
मुझे करते हैं सब कंगाल घर में।।
मैं मालिक हूँ खजांची भी हूँ घर का।
हुआ खर्चे से खस्ता हाल घर में।।
दिलाकर सूट साड़ी ढेर कपड़े।
मुझे मिल पाया बस रूमाल घर में।।
वे जूते कपड़े लेते हर महीने।
मुझे तरसाते हैं दो साल घर में।।
आते मेहमान बेड पर चढ़ सोते सब।
ज़मीं पर सोता मैं बेहाल घर में।।
पीजा बरगर उड़ाते बच्चे दिखते।
खिलाते मुझको रोटी दाल घर में।।
परौंठे बच्चे खाते भरवाँ हर दिन।
देते रोटी नमक कुछ डाल घर में।।
मैं फ़रमाइश पूरी करता हूँ सब की।
अकेले मैं ही हूँ टकसाल घर में।।
अधूरी फ़रमाइश रहती है मेरी।
करूँ जिद तो आए भूचाल घर में।।
वो खोई रहती बच्चों में है हरदम।
मैं होता बोर हूँ फ़िलहाल घर में।।
तरस कुछ यार तो खाते हैं मुझपर।
मेरा पर कौन सुनता हाल घर में।।
सहेली संग वो बाज़ार फिरती।
हुई है धीमी मेरी चाल घर में।।
सुरीले गीत गाते मस्त हैं सब।
मैं पढ़ता मरसिया बिन ताल घर में।।
सुनो यमराज मेरी एक बिनती।
मेरा अब जल्द आए काल घर में।।
नहीं परवाह घरवाले की होती।
नहीं है उसकी कोई ढाल घर में।।
रुपेला पूछ लेना हाल सबका।
नहीं तो होगा बंटा ढाल घर में।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।