पढ़िए कवयित्री सन्नू नेगी की ये सुंदर रचनाः दर्पण बता बचपन कहां
अपने अंदर छुपा दिया,या जाने कहाँ गुमा दिया,
तू वैसा का वैसा फिर मुझको क्यों बदल दिया।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
वो नटखट सा जीवन,बेपरवाही का आलम।
सूखे में सावन, बादल था बालम।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
परियों की कहानी में आसमां तक जाना।
बादलों के पंख लगा,हवा में इतराना।
दर्पण बता वो बचपन कहाँ?
गुड़िया की बारात और सजना सँवरना।
मिट्टी के ठेर पर महल, तोड़ना बनाना।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
अनगिनत तारों को गिनना,चाँद के संग चलना।
जुगनू पकड़-पकड़ मुट्ठी भर अंधियारा मिटाना।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
तितलियों संग फूल-फूल पर इठलाना,
मस्त पवन के संग गीत गुनगुनाना।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
प्रकृति की गोद में स्वछंद घूमना,
माँ का आंचल सुकून का पालना।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
बात बात पर झगड़ना फिर एक हो जाना,
हाथ पकड़ खिल खिलाकर हंसना।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
सर्द मौसम में बहारों को ताकना।
हवा के पीठ पर बैठ गोते लगाना।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
बचपन हवा का झोंका,एक बार बढ़ा, आगे बढ़ा।
किसी ने न रोका,फिर कभी न वापस हुआ खड़ा।
दर्पण बता बचपन कहाँ?
कवयित्री का परिचय
सन्नू नेगी
सहायक अध्यापिका
राजकीय कन्या जूनियर हाईस्कूल सिदोली
कर्णप्रयाग, चमोली उत्तराखंड।