पढ़िए युवा कवयित्री किरन पुरोहित की खूबसूरत रचना, मैं खोल कर बंधन चली
मैं खोल कर बंधन चली
मैं खोल कर बंधन चली ,
मैं तोड़ हर बंधन चली ।
दम है तो आओ रोकने ,
मेरी प्रगति को टोकने ।
पग मे पड़ी हैं बेडियां ,
कांटो भरे हैं रास्ते ।
चलती रहूँ बढ़तीे रहूं मै ,
मंजिलों के वास्ते ।
यदि शक्ति है तो रोक लो ,
छूने गगन को मैं चली ।
मैं खोल हर बंधन चली ,
मैं तोड़ हर बंधन चली ।।
मुझको न रोके भावना ,
करने चलूं जो साधना ।
प्रतिपल सदा होता रहा ,
मेरा शत्रुओं से सामना ।
संकल्प है तो रोक लो ,
बदलाव लाने मैं चली ।
मैं खोल हर बंधन चली ,
मैं तोड हर बंधन चली ।
तुम प्रश्न लिख दो सामने ,
प्रतिभा को मेरी मापने ।
देख लो अंकुश लगा ,
दुनिया लगे तब कांपने ।
चुप्पी मेरी उत्तर बनी ,
नव काव्य रचने मैं चली ।
मैं खोल हर बंधन चली ,
मैं तोड़ हर बंधन चली ।।
….किरन पुरोहित हिमपुत्री
लेखिका का परिचय —
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता – श्री दीपेंद्र पुरोहित
माता – श्रीमती दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
आयु – 17 वर्ष
अध्ययनरत – कक्षा 12वीं उत्तीर्ण
निवास, कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड
मेरे भाव को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद लोक साक्ष्य