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October 28, 2025

कविता में पढ़िए राम बाली संवाद, भाग 1, कवि- प्रदीप मलासी

कविता में पढ़िए राम बाली संवाद, भाग 1, कवि- प्रदीप मलासी।

बाली को समझाने को।
उसे सदमार्ग पर लाने को।
राम किष्किंधा पर्वत आए।
क्या उनके वचन उसे भाए?

बोले बाली भूल ना कर।
उस प्रारब्ध से थोड़ा तो डर।
अपकर्म गठरी सर है लीनी।
अनुज भार्या..होती भगिनी।

बस अब तू इतना जान।
पापकर्म की ना टिकती शान।
कर उसे मुक्त… गलती मान।
मत कर तू इतना अभिमान।

हरि संदेशा ना समझ सका..
उल्टा हरी को समझाने लगा..

क्यों वन वन भटके फिरते हो।
कंटक कंकड़ क्यों सहते हो।
ये रीछ वानर क्या कर पाएंगे।
जानकी, कैद दशानन के..
क्या ये उन्हें मुक्त कर पाएंगे।

भाई सुग्रीव की बातों में..
समय नष्ट क्यों करते हो।
वो है कायर.. दुर्बल, अक्षम।
ऐसे संगी क्यों शीश धरते हो।

कहो अगर तो घसीट लाऊं।
उस रावण को मैं सबक सिखाऊं।
भानुअस्त होने से पहले..
तुम्हें अपना शौर्य दिखाऊं।

रावण बनता आज बड़ा बलशाली है।
भूला वह..अभी मौजूद एक बाली है।
हा! हा! उसने भी क्या कष्ट सहा।
छह माह मेरी कांख में दबा रहा।

हरि बोले-
मैं किंचित वंचित जनों का स्वामी।
तू अनुचित अधम मार्ग का गामी।
मैं लोकलाज का रखवाला।
तू चरित्र से गहरा काला।

तू कर्कश संगीत का है साज।
अधम तेरे मन पर करता राज।
तेरी मदद यदि लूं आज।
तो क्या स्वीकारेगा समाज।

यदि ना मुक्त किया रूमा को।
तो जी भर कर तू पछताएगा।
अवसर को पहचान मूर्ख।
ये मौका फिर ना आएगा।

कवि का परिचय
नाम-प्रदीप मलासी
शिक्षक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय बुरांसिधार घाट, जिला चमोली।
मूल निवासी- श्रीकोट मायापुर चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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