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June 22, 2025

देहरादून में आम लोगों के लिए खोला जाएगा राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति आशियाना

उत्तराखंड के देहरादून के राजपुर रोड पर स्थित एतिहासिक राष्ट्रपति आशियाना आगामी अप्रैल माह से आम लोगों के लिए खुल जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निर्देश पर शनिवार को राष्ट्रपति सचिवालय के अधिकारियों ने देहरादून पहुंचकर राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक की। इस मौके पर राष्ट्रपति आशियाना में जनता के लिए आवश्यक सुविधाएं जुटाने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रपति आशियाना में कई राष्ट्रपति देहरादून पहुंचने पर रहते थे। इनमें फ़ख़रुद्दीन अली अहमद करीब वर्ष 1976 में इस राष्ट्रपति आशियाना में आए और कुछ दिन रहे। आशियाना परिसर में उनके हाथों के रोपे गए आम और लीचे के पौधे भी उनकी याद को ताजा करते हैं, जो आज फलदार वृक्ष हैं। उनके बाद भी यहां भारत के कई राष्ट्रपति समय समय पर आशियाना आकर रात्रि विश्राम करते रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निर्देश पर अब देहरादून स्थित 186 साल पुराने राष्ट्रपति आशियाना को आम लोगों के लिए खोला जा रहा है। 21 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस परिसर का इस्तेमाल अभी राष्ट्रपति बाडीगॉर्ड (पीबीजी) की ओर से किया जा रहा है। परिसर को आम जन के लिए खोलने से पहले आवश्यक तैयारी के लिए शनिवार को आशियाना परिसर में राष्ट्रपति सचिवालय में अपर सचिव डॉ. राकेश गुप्ता ने उच्च स्तरीय बैठक मे उत्तराखंड सरकार के उच्चाधिकारियों के साथ विचार विमर्श किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

तय किया गया कि आम लोग परिसर के मुख्य भवन तक प्रवेश कर सकेंगे। इस दौरान लोगों को राष्ट्रपति आशियाना के साथ ही भारतीय सेना की 251 साल पुरानी रेजीमेंट पीबीजी के इतिहास और इसके 186 साल पुराने अस्तबल से रूवरू होने का भी मौका मिलेगा। राष्ट्रपति आशियाना में मौजूद अस्तबल में हर साल सर्दियो में मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी और गर्मियों में दिल्ली से राष्ट्रपति भवन के घोड़ों को लाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस आशियाना की सैर के मध्य लोग परिसर के खूबसूरत बाग, कैफेटिरिया का भी आनंद उठा सकेंगे। बैठक में परिसर को आम जन के लिए खोलने से पहले बिजली, पानी, पार्किंग की सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए। बैठक में पीबीजी के सीओ कर्नल अमित बेरवाल, ओएसडी स्वाति शाही के साथ ही उत्तराखंड शासन के सचिव शैलेश बगोली, सचिन कुर्वे, पंकज कुमार पांडे, डीएम देहरादून स्वीन बंसल सहित अन्य अधिकारी उपस्थित हुए। इससे पहले राष्ट्रपति के निर्देश पर हैदराबाद स्थित राष्ट्रपति नीलायम और मशहोबरा स्थित राष्ट्रपति निवास को भी आम लोगों के लिए खोला जा चुका है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

अब हमारी बात, कुछ पुरानी यादें
राष्ट्रपति आशियाना मैं बचपन में अक्सर जाता रहता था। तब पीबीजी दिल्ली राष्ट्रपति भवन से यहां आकर व्यवस्था देखते थे। हम आम और लीची खाने के लिए इस परिसर में घुसते थे। इस परिसर की देखभाल का जिम्मा एक जेसीओ पर होता है। उसे दफेदार भी कहा जाता था। वह हमें पेड़ से गिरे आम उठाने से मना नहीं करता था। साथ ही हर दो या तीन साल में जो भी दफेदार यहां आते थे, वे आसपास के लोगों से दोस्ताना व्यवहार करते थे। साथ ही एनआईवीएच के कर्मचारियों और बारीघाट मोहल्ले के लोगों से भी उनका व्यवहार काफी दोस्ताना रहता था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तब देहरादून के जाखन में बजरी होद से एक करीब ढाई फुट चौड़ी और एक फुट गहरी छोटी नहर राष्ट्रपति आशियाना के लिए जाती थी। करीब दो किलोमीटर लंबी ये नहर राष्ट्रपति आशियाना के सामने सड़क के दूसरी ओर डेयरी फार्म के खेत तक भी जाती थी। यही नहीं इस नहर का पानी एनआईवीएच से होते हुए राष्ट्रपति आशियाना के उस भूभाग पर भी जाता था, जो राष्ट्रपति आशियाना के परिसर से करीब पौन किलोमीटर दूर था। उस क्षेत्र को बार्डीगाड लाइन कहा जाता था।  (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

बार्डीगाड लाइन वाले  इस भूभाग में घोड़े के अस्तबल और कर्मचारियों के क्वार्टर थे। इनमें करीब 40 कमरों को किराए पर दिया गया था। कभी एक कमरे का किराया पांच रुपये होता था। धीरे धीरे किराया बढ़ता गया और पचास या सौ रुपये तक पहुंच गया। किराये की व्यवस्था करीब 50 या 60 साल तक चली, बाद में सारे कमरे खाली करा दिए गए। इन किराए के कमरों के अलावा कुछ कमरे खाली रखे गए थे।  हर साल एलबीएस अकादमी मसूरी के घोड़े भी लाए जाते थे। इस क्षेत्र में लाए जाते थे। इन कमरों में उनका स्टाफ रहता था।   इधर कभी हाथीखाना भी होता है। मैने बचपन में हाथीखाना में हाथी तो नहीं देखे, लेकिन वहां बड़े ऊंचे ऊंचे खंडहर जरूर देखे। साथ ही वहां गोशालाएं भी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नहर का मकसद पौधों, फसल आदि की सिंचाई था। अब शायद नहर भी ना हो। इसके साथ ही एक रोचक तथ्य ये है कि राष्ट्रपति आशियाना के परिसर में एक करीब सात फुट गहरा और काफी लंबा चौड़ा तालाब था। या कहें कि ये उस जमाने का स्वीमिंग पुल था। एक बार मैने और मेरे मित्र चंद्रवीर ने इस तालाब को साफ किया और उसमें पानी भरा। फिर हम दोनों हर दिन उसमें तैरने का अभ्यास करते थे। आज पता नहीं कि इनमें कितनी चीजें जीवित हैं और कितनों का निशान मिट चुका है। यहीं नहीं, वर्तमान में एनआईवीएच जिस जमीन पर है, उसके लिए भी  राष्ट्रपति आशियाना से जमीन दान दी गई थी। एनआईवीएच परिसर में एक मस्जिद भी है। इसमें करीब चालीस साल पहले मैं और कुछ मित्र कुंगफू का अभ्यास करते थे। तब जब नमाजी आते तो हम एक किनारे हो जाते। इसी तरह राष्ट्रपति आशिया की जमीन पर आज भी शिव मंदिर और गुरुद्वारा है।
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Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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