राजपुर विधानसभाः यदि कांग्रेस में मैं लड़की हूं का चला दांव, तो कमलेश को मिल सकता है मौका, बीजेपी में बबीता दमदार

राजपुर विधानसभा की स्थिति
2008 में परिसीमन के बाद राजपुर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई। इस सीट से वर्ष 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार 3070 की बढ़त से जीते, लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव में वह भाजपा के खजानदास से हार गए। ऐसे में अब वह कांग्रेस से टिकट के लिए फिर से मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। हालांकि जब वह विधायक बने तो उसके बाद लोगों में उनसे नाराजगी हो गई थी। उनसे अपने भी नाराज होने लगे थे। आरोप लगे कि विधायक बनने के बाद उन्होंने जमीन छोड़ दी। नतीजन, उन्हें हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस में टिकट के दूसरे दावेदारों का तर्क है कि राजकुमार चुनाव हार चुके हैं, ऐसे में पार्टी को नए दावेदार पर दाव लगाना चाहिए। वहीं वर्तमान में भाजपा विधायक खजानदास का टिकट भी संकट में दिखाई दे रहा है। उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट भी कमजोर नजर आ रही है। ऐसे में दोनों दलों में इस सीट पर दावेदारों की लंबी लाइन है।
वर्तमान विधायक के खिलाफ दिख रहा आक्रोश
राजपुर विधानसभा में वर्तमान विधायक के खिलाफ लोगों का आक्रोश भी दिख रहा है। इसी तरह पहले विधायक राजकुमार के खिलाफ भी आक्रोश देखा गया था। अब खजानदास के मीम्स सोशल मीडिया में शेयर किए जा रहे हैं। ऐसे ही एक में लिखा है कि-हमारे राजपुर के विधायक काफी समय से लापता हैं। कहीं मिले तो कृपया करके बताना। दुबारा तैयारी करनी है। इलेक्शन सिर पर हैं। कार्यकर्ता राजपुर विधानसभा। इसमें ये भी गौर करने वाली बात है कि चाहे राजकुमार हों या फिर खजानदास। दोनों के चुनाव का मुद्दा मलिन बस्तियां भी रहा। दोनों इन बस्तियों के लोगों को मालिकाना हक दिलाने की पैरवी करते रहे। जब कांग्रेस की सरकार थी, तब पूरे पांच साल में न तो राजकुमार ही मालिकाना हक दिला पाए। न ही उनके बाद खजानदास भी पूरे पांच साल में इस मुद्दे पर एक ईंच भी आगे नहीं बढ़ पाए।
कांग्रेस में दावेदार
कांग्रेस में राजपुर विधानसभा सीट के दावेदारों की बात करें तो इस समय पूर्व विधायक राजकुमार के साथ ही संजय कन्नोजिया, मदन लाल, कमलेश रमन, आशा टम्टा सहित कई लोग इस दावेदारी कर रहे हैं। हालांकि यदि पिछले कंडीडेट को मौका दिया जाता है तो राजकुमार का टिकट पक्का हो सकता है। वह कई बार नगर पालिका व नगर निगम देहरादून में पार्षद भी रह चुके हैं। साथ ही मलिन बस्तियों की समस्याओं को वह निरंतर उठाते रहे हैं। वहीं, कांग्रेस में महिला दावेदारों में कमलेश रमन भी 27 साल से कांग्रेस में जुड़ी हैं। वर्तमान में वह महानगर देहरादून महिला कांग्रेस की अध्यक्ष होने के साथ ही महिला कांग्रेस की प्रदेश महामंत्री भी हैं। उनका कमजोर पक्ष ये है कि जमीन से जुड़ी कार्यकर्ता होने के बावजूद वह धनबल में सभी दावेदारों से कमजोर हैं।
भाजपा में दावेदार
भाजपा में भी दावेदारों की लंबी लिस्ट है। इनमें सीटिंग विधायक खजानदास के साथ ही पूर्व विधायक राजकुमार भी इस सीट से दावेदारी कर रहे हैं। राजकुमार 2007 में सहसपुर सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन उनको हार का मुंह देखना पड़ा था। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मालचंद ने राजकुमार को हराया था और वह दूसरे नंबर पर रहे थे। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में राजकुमार कांग्रेस के टिकट पर पुरोला सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। तीन माह पूर्व उन्होंने फिर से भाजपा ज्वाइन की है। वहीं, राजपुर विधानसभा से वर्ष 2012 का चुनाव हार चुके भाजपा के वरिष्ठ नेता रविंद्र कटारिया भी प्रबल दावेदारों में एक हैं। इनके अलावा भगवत प्रसाद मकवाना, डॉ. बबीता सहोत्रा आनंद, जयपाल वाल्मीकि सहित कई दावेदारों की भाजपा में भी लाइन है।
कांग्रेस में मैं लड़की हूं चला तो
कांग्रेस में यदि प्रियंका गांधी का नारा-मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं, के तहत उत्तराखंड की राजपुर विधानसभा सीट से महिला प्रत्याशी को टिकट दिया गया तो राजकुमार सहित अन्य नेताओं की मेहनत में पानी फिर सकता है। ऐसे में महिला दावेदारों में कमलेश रमन का दावा मजबूत होता नजर आ रहा है। कोरोनाकाल में कमलेश रमन लगातार सक्रिय रहीं। या यूं कहें कि वर्ष वर्ष 2012 से लगातार राजपुर विधानसभा सीट से टिकट लेने की लड़ाई लड़ रही हैं। लगातार महिलाओं के बीच जानकर उनकी समस्याओं को उठाना। कोरोना की दूसरी लहर में भी जान की परवाह किए बगैर लोगों की मदद को वह तत्पर रहीं। वह जमीन से उठी कार्यकर्ता हैं। देहरादून की पहली मेयर मनोरमा शर्मा डोबरियाल (दिवंगत) से भी उन्होंने राजनीति के दाव पेच सीखे। उनके साथ वह पीआरओ की हैसियत से काफी समय तक जुड़ी रहीं।
भाजपा में महिला दावेदार
राजनीति में हर तरह की संभावनाएं होती हैं। यदि कांग्रेस महिला प्रत्याशी को टिकट देती है तो भाजपा भी महिला प्रत्याशी को टिकट देने पर विचार कर सकती है। ऐसे में भाजपा में महिला दावेदारों में बबीता सहोत्रा आनंद काफी मजबूत प्रत्याशी हैं। वह सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी नजर आती हैं। एमए, बीएड, पीएचडी (पॉलिटिकल साइंस) के साथ ही वह डीएवी इंटर कॉलेज में शिक्षिका हैं। बचपन में माता पिता का निधन होने के बावजूद सिलाई और कढ़ाई करके उन्होंने अपना खर्च चलाया और पढ़ाई की। राजनीति में आने पर वह दो बार नगर निगम की पार्षद भी रहीं। वर्ष 97 में उन्हें देहरादून में सबसे कम उम्र में पार्षद बनने का सौभाग्य मिला। वर्ष 2008 में सबसे ज्यादा वोटों की लीड लेकर जीतने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है।
भाजपा में वह वार्ड अध्यक्ष से लेकर महिला मोर्चा में पदाधिकारी रह चुकी हैं। बबीता सहोत्रा का तर्क है कि राजपुर विधानसभा में 22 वाल्मीकि बस्तियां हैं। वह भी वाल्मीकि हैं। लगातार वह बस्तियों में जाकर लोगों से जुड़ी हुई हैं। वहीं, उनका विवाह सिख परिवार में हुआ। ऐसे में उन्हें सिख समुदाय का भी निश्चित ही सहयोग मिलेगा। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में वह सक्रिय रहीं। आंदोलन के कारण उनके खिलाफ धारा 307 के तहत मुकदमा तक हुआ।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।