अकेले राहुल नहीं जिता पाएंगे कांग्रेस को, अब बड़े बदलाव की तैयारी, 72 साल से ऊपर के नेता जाएंगे मार्गदर्शक मंडल में, युवाओं को मिलेगा मौका
अब कांग्रेस के पता चल गया कि अकेले राहुल गांधी के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता है। या कहें तो चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है। जातिगत जनगणना हो या फिर रोजगार और महंगाई का मुद्दा। सांप्रदायिक सौहार्द या अन्य मुद्दे। जब तक ग्राउंड लेविल पर एक एक कार्यकर्ता खड़ा नहीं होगा तो इन मुद्दों को वोट में बदलना मुश्किल है। बात यदि संगठन की हो तो कांग्रेस में ऐसे स्लीपर सैल हैं, जो कांग्रेस की ही मटियामेट करने में तुले रहते हैं। ऐसे स्लीपर सेल की वजह से उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ हरियाणा और इसके बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस को हार का सामना देखना पड़ा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आपस में ही लड़ते रहे कांग्रेसी
पहले उत्तराखंड में भी कांग्रेसी आपस में लड़ते रहे, तो हरियाणा में भी यही स्थिति रही। चुनाव जीते नहीं और मुख्यमंत्री के सपने कई नेता देखने लगे। इन नेताओं में भी वे नेता थे, जो वर्षों से मठाधीश बने हुए हैं। यहीं नहीं, बीजेपी से लड़ने की बजाय कांग्रेस नेता आपस में ही उलझते रहे हैं। राजस्थान का उदाहरण सबके सामने है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राहुल के विपरीत व्यवहार
एक तरफ राहुल गांधी कारपोरेट और सरकार के गठबंधन को लेकर हर दिन हमलावर रहते हैं। वहीं, कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता तक इन मुद्दों पर चुप रहे। बड़े नेताओं पर तो अडानी के साथ साफ्ट कार्नर के आरोप लगते रहे। चाहे राजस्थान हो या फिर छत्तीसगढ़ या फिर अन्य राज्य। ऐसे में कांग्रेस आपसी विवाद में ही उलझी रही और राहुल गांधी जो नरेटिव फिक्स करते रहे, उसे कांग्रेस के नेताओं ने ही पलीता लगाने का काम किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सोशल मीडिया तक सीमित नेता
कांग्रेस में अधिकांश नेता जनता के बीच जाने की बजाय सोशल मीडिया तक ही सीमित हैं। अब इस बात पर गौर किया जा रहा है। सोशल मीडिया में आक्रमक हों, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि जनता से जुड़े मुद्दों के लेकर जनता के बीच नहीं जाएं। ऐसे नेता पूरे पांच साल सोए रहते हैं। जब भी चुनाव आते हैं, वे सक्रीय हो जाते हैं। तब कुछ दिन धरने और प्रदर्शन का ड्रामा करते हैं। चुनाव हारने के बाद भी अगले पांच साल का इंतजार करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिक्कत पुराने नेताओं से
सूत्र तो ये बताते हैं कि पिछले कई साल से किसी भी राज्य में कांग्रेस में ऐसे नेता उभरकर सामने नहीं आ पाए, जो पार्टी संगठन में बड़ा रोल अदा कर सकें। या फिर उन्हें कमान दी जाए। पुराने नेताओं में युवाओं को आगे बढ़ने नहीं दिया। ऐसे में पार्टी में नए नेताओं की कमी खल रही है। हवाबाज नेताओं की भीड़ तो है, लेकिन ऐसे नेता बहुत कम हैं, जो ग्राउंड पर जाकर मेहनत करे और पार्टी को मजबूत करें। या कहें कि लोकल मुद्दों को घर घर जनता तक ले जाएं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आरोप लगाने आसान, लेकिन खुद कुछ नहीं करते
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस में चुनाव हार के बाद नेता मतदाता सूची में गड़बड़ी या ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाकर अपने ऊपर हार का तमगा लेने से बचते रहे हैं। ऐसे में उन पर सवाल उठता है कि वे खुद ऐसे मामलों में कितना सक्रिय रहे। क्या घर घर जाकर नए मतदाताओं को मतदाता सूची से जोड़ने, मतदाता सूची पर निगाह रखने, चुनाव के दौरान मतदाताओं को उनकी पर्ची देने की पंरपरा तक कांग्रेस भूल चुकी है। इन मुद्दों पर अब कांग्रेस मनन और चिंतन कर रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राज्य इकाइयों में किए जा सकते हैं बड़े बदलाव
कांग्रेस पार्टी 28 दिसंबर को 140वां स्थापना दिवस मनाने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के की ओर से राज्य इकाइयों में बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। हाल ही में हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अपनी संगठनात्मक संरचना को मजबूत करने के लिए नए कदम उठाने की योजना बना रही है। इन बदलावों के तहत कई राज्य इकाइयों को भंग कर नई नियुक्तियां की जा सकती हैं, जिससे पार्टी की आगामी चुनावों के लिए तैयारियों को और बेहतर बनाया जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कई राज्यों में बदलाव की तैयारी
सूत्रों के मुताबिक, 28 दिसंबर से पहले उत्तर प्रदेश की तरह कई अन्य राज्यों की इकाइयों को भंग कर नए नेतृत्व की नियुक्ति की जा सकती है। इन बदलावों में महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और कई समितियों को भंग कर नई नियुक्तियां की जा सकती हैं। यह फैसला पार्टी की संगठनात्मक ताकत को बढ़ाने और आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए लिया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मार्गदर्शक मंडल में डाले जा सकते हैं कई नेता
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस में अब कुछ अपवाद को छोड़कर 72 साल से अधिक उम्र के नेता मार्गदर्शक मंडल में डाले जा सकते हैं। साथ ही उन युवाओं को आगे बढ़ाया जा सकता है, जो ग्राउंड लेविल पर सक्रिय हैं। बार बार चुनाव के लिए टिकट हासिल करके भी अच्छे नतीजे नहीं देने वालों पर भी कड़ा निर्णय लिया जा सकता है। साथ ही 50 साल के कम की आयु के नेताओं को आगे बढ़ाने पर जल्द फैसला हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राहुल गांधी और सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी इस पर मनन कर रहे हैं। वहीं, कहा ये भी जा रहा है कि सबसे पहले केसी बेणुगोपाल को जब तक पद से नहीं हटाया गया, तब तक कांग्रेस की स्थिति मजबूत नहीं हो सकती है। कारण ये है कि वह संगठन को मजबूत करने की बजाय राहुल गांधी से चिपके रहते हैं। इसे लेकर अब प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी भी नाराज हैं। क्योंकि कई राज्यों में कांग्रेस की हार का कारण गलत टिकटों का वितरण भी माना गया है। केसी वेणुगोपाल की भूमिका पर भी संदेह उठ रहा है। वहीं, कुछ ऐसे स्लीपर सेल हैं, जो विभिन्न राज्यों में कांग्रेस प्रभारी रहे, लेकिन टिकट आवंटन में मोटी रकम लेने का उन पर आरोप है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इंडिया गठबंधन की बजाय खुद को मजबूत करने पर जोर
भले ही कांग्रेस इस समय इंडिया गठबंधन को लीड कर रही है, लेकिन सच्चाई ये भी है कि इस गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय क्षत्रप कभी नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस मजबूत हो। इस बातों से भी कांग्रेस भली भांति परिचित है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य के चुनाव में इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस को एक भी सीट से लड़ने के लिए समझौता नहीं किया। अब वह इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की जुगत में है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसी तरह यूपी में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने उपचुनाव में कांग्रेस के किनारा किया और परिणाम सबके सामने हैं। या फिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल। हरियाणा में अकेले लड़े और क्या हश्र हुआ। फिर बिहार में तेजस्वी यादव, उनकी गलतफहमी भी दूर हो गई होगी। ये सभी नेता जब राज्य के चुनाव आते हैं तो कांग्रेस से ही बलिदान करने की बात पर जोर देते हैं। ऐसे में कांग्रेस की नीति है कि अब अपने बल पर ही संगठन को मजबूत किया जाए। संगठन मजबूत होगा तो चुनाव भी मजबूती से लड़ा जा सकेगा। क्षेत्रीय दलों को डर है कि यदि कांग्रेस मजबूत होगी तो क्षेत्रीय दल कमजोर हो सकते हैं। ऐसें में कोई नहीं चाहेगा कि कांग्रेस मजबूत हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्थापना दिवस के बारे में
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्थापना दिवस 28 दिसंबर को है। 140वां स्थापना दिवस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है। 1885 में एओ ह्यूम, दादाभाई नौरोजी और दिनशा वाचा जैसे नेताओं की अगुवाई में स्थापित कांग्रेस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल जैसे दिग्गजों के नेतृत्व में भारत को स्वतंत्रता दिलाई। इस दौरान कांग्रेस ने देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव में अहम भूमिका निभाई, लेकिन आजादी के बाद पार्टी को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बिलकुल कांग्रेस पार्टी की समीचीन प्रतीत लगती है पुराने व जुझारू नेताओ को मौका ही नही मिला और उत्तरप्रदेश मे जब मुलायम सिंह जी को समर्थन दिया तभी से कमजोर हुई कांग्रेस जबकि मैने मना किया था