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June 18, 2025

पारंपरिक खेल और टेक्नोलॉजी के बीच संघर्ष से उठते सवाल, क्या आज भी मूल भावनाओं को समझना जरूरीः राकेश यादव

गांव और शहर के बीच अंतर अनेक तरह के होते हैं। शहर में रहने वाले लोगों के लिए अन्यथा समाज, रोजगार और फुर्सत के अलग-अलग अवसर होते हैं। वहीं गांवों में स्वास्थ्यवर्धक वातावरण, सामूहिक जीवन और खुशहाली वाला माहौल होता है। टेक्नोलॉजी का शहरीकरण भी गांवों को प्रभावित कर रहा है। इंटरनेट, मोबाइल और अन्य दूरसंचार सुविधाएं गांवों तक पहुंची हैं और उन्हें नए अवसर प्रदान कर रही हैं। यह गांवों की आर्थिक और सामाजिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

अरविंद ओझा फेलोशिप के दौरान मुझे नागौर स्थित उरमूल खेजड़ी धनजी से मिलने जाना था। उस दिन अपने मेंटर से मिलने के लिए अपने कार्यालय पहुंचा था। अपने सपनों और उद्देश्यों के बारे में बात करने का मौका मिला। साथ अपने अनुभवों को साझा करने के लिए तैयार था। उस दिन का अनुभव मेरे लिए अधिक महत्वपूर्ण बन गया, जब रात में अपने कार्यालय में रुका। अपने आसपास के माहौल में सुबह धनजी से बातचीत करने के बाद टीकूराम जी के साथ फील्ड डेह के लिए चला गया। वहाँ पहुँचकर स्टेकहोल्डर और महिलाओं के समूह से मिला। उनके जीवन के बारे में सुना। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

क्या टेक्नोलाजी छीन रही पारंपरिक खेल
उनके जीवन में खुशहाली की चीजें साथ संघर्ष भी है। जब में फिल्ड में महिलाओ के साथ संवाद कर रह था। वहाँ पर कुछ बच्चे भी खेल रहे थे। मैं बच्चों को देख रहा था और खुश हो रहा था। धीरे-धीरे मेने देखा कि दो बच्चे आपस में मोबाइल चला रहे थे और उनके बीच लड़ाई हो रही थी। देखा दोनों बच्चे बस एक दुसरे से मोबाईल को छिनने की कोशिश कर रहे है। पेड के निचे की खटिया से दृश्य को इन्जोय कर रहा था। तभी दूसरी तरफ मे कुछ बच्चे दूर कोई खेल-खेलते दिख रहे थे। वहीं दूसरी तरफ तो बच्चे लड़ाई और एक तरफ भागना, दौड़ना, चिल्लाना, लेकिन तभी मेरे मन मे एक सवाल चलने लगा। क्या ये टेक्नोलाजी हमसे हमारे पुराने खेलो को छिन रही है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

टेक्नोलॉजी निगल रही पुरानी परंपरा
ये टेक्नोलॉजी जो शहरीकरण हमारी गावों कि तरफ बड़ा है। हमारी पुरानी परम्परा को निगल रहा है, लेकिन जब दूसरी तरफ देखता हूँ तो लगता की मुझे भी कुछ गिने-चुने पुराने खेल याद है। आज के बच्चे जो इस टेक्नोलॉजी के साथ जन्मे हैं। समय से पहले ही हर चीज मिली है। वही तीसरी तरफ एक और सवाल मन मे आता है। पुराने जमाने मे या 20 वर्ष पहले जो खेल-खेले जाते थे, क्या आज वो बच्चों और दूरदराज के ग्रामों मे उपस्थित है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

जब खेलों कि बात करे तो क्रिकेट, फुटबाल, कब्बड़ी, हाकी इन्ही खेलों का जिक्र ज्यादा होता है। हमारे आस-पास कई पुराने व परंपरागत और एतिहासिक खेल ऐसे हैं। इनसे हम रूबरू नहीं हैं। शायद होंगे भी, लेकिन जब उन खेलों कि मूल भावना को आप समझने के लिए जायेगे, तो आपको अचंभित कर देने वाले तथ्य नजर आएंगे। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

पुराने विलुप्त हो रहे खेल संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा
हमारे समाज में कई पुराने और परंपरागत खेल हैं जिनका महत्व आज भी हमारी संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है। ये खेल ज्यादातर गांवों और शहरों में खेले जाते थे, लेकिन आज उनकी जगह आधुनिक खेल जैसे क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केटबॉल, टेनिस और बैडमिंटन ले रहे हैं। कुछ प्रमुख पुराने और परंपरागत खेल जैसे कि कबड्डी, खोखो, गुल्ली-दंडा, लट्टू, स्तम्भ लड़ाई, घुड़दौड़, संग्राम, मलखम्बा, तीरंदाजी, लठ्ठे व गुलदस्ता इत्यादि अभी भी खेले जाते हैं, लेकिन उनकी पॉपुलैरिटी कम हो गई है। ये खेल आज भी कुछ विशेष अवसरों पर खेले जाते हैं। जैसे कि स्पोर्ट्स डे, मेले व उत्सवों में। ये पुराने खेल आज भी अपनी महत्ता बरकरार रखते हैं, क्योंकि इन्हें खेलने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का अवसर
दुनिया में कई ऐसे पुराने और परंपरागत खेल हैं, जिनकी भावना और महत्व को हम नहीं समझ पाते हैं। ये खेल अक्सर दूरदराज गांवों और शहरों में खेले जाते थे और उन्हें एक सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व दिया जाता था। कुछ उल्लेखनीय और प्रसिद्ध परंपरागत खेल हैं, जैसे कि कबड्डी, खो-खो, गुलि-डंडा, साँप-सीढ़ी, लट्ठे, पिट्ठू, मुफ्त-मेंढक, चौपड़, दम्पी, सटोला, नागोले आदि। ये खेल अपनी विशेषताओं और नियमों के लिए जाने जाते हैं और उन्हें खेलने से अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का अवसर मिलता है। ये खेल आमतौर पर बच्चों और युवाओं के बीच खेले जाते थे लेकिन बड़े भी इन्हें खेल सकते थे। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

पुराने खेल और उनकी मूल भावनाओं को समझना
आज भी पुराने खेल और उनकी मूल भावनाओं को समझना जरूरी है। पुराने खेल हमारी संस्कृति और इतिहास का एक अहम हिस्सा हैं। इन खेलों के मूल भावनाएं जैसे कि टीमवर्क, स्वास्थ्य, अस्पृश्यता, स्वतंत्रता और धैर्य आज भी महत्वपूर्ण हैं। इन खेलों के खिलाड़ियों ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संकटों का सामना करने के लिए अपनी बलिदानी प्रेरणा और दृढ़ता का परिचय दिया है।इसके अलावा, वर्तमान समय में भी, टेक्नोलॉजी से जुड़े खेलों के साथ-साथ, पुराने और परंपरागत खेल भी बच्चों और युवाओं को उनकी विरासत के साथ जोड़ते हैं। इन खेलों को खेलने से हम अपनी संस्कृति को समझते हैं, और यह भी सीखते हैं कि आज की तकनीक से जुड़े खेलों के साथ समय बिताने के बीच भी पुराने खेलों की जगह हमेशा रहेगी। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

पुराने खेल मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा 
उनके साथ मानवीय मूल्यों का अटूट रिश्ता है। ये खेल हमें सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से संबंधित भावनाओं को समझने और संवेदनशील होने में मदद करते हैं। इन खेलों में सामाजिक संबंधों, टीमवर्क, नैतिकता, धैर्य और सामंजस्य जैसे मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व होता है। इन खेलों को खेलने के दौरान, हम सीखते हैं कि कैसे अपने दोस्तों और दूसरों के साथ सहयोग करें। कैसे अपनी सीमाओं के बाहर निकलें। कैसे निष्ठावान रहें और कैसे दूसरों की समझ करें। इन खेलों के माध्यम से हम एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं और एक समूह में मिलकर कुछ नया करने की प्रेरणा लेते हैं। ये खेल हमें समूह दुख-सुख, समझौता, समय और श्रम के मूल्य को समझाते हैं जो कि हमारे जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण होते हैं। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

नैतिकता और समरसता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाने में भी सक्षम
पुराने खेल हमें मानवीय जीवन में स्पर्श, नैतिकता, समरसता, सामंजस्य, निर्णय लेने में सक्रिय, न्याय और अनुसासन के लिए तैयार करते हैं। ये खेल हमें सामूहिकता, सहयोग और विरोधाभास के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझने में मदद करते हैं। उनमें खेलने की आदत और सबूत की मांग जैसी गुणवत्ता भी शामिल होती है। इन खेलों में जीत या हार, समझौता, नैतिकता, सामंजस्य और निष्ठा के सिद्धांतों को समझाया जाता है। इन्हें खेलने से लोगों में समरसता और संघर्ष के समय निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित होती है।इसलिए, हमें ये पुराने खेल सदैव स्मरण रखने चाहिए जो हमें न केवल मनोरंजन देते हैं, बल्कि नैतिकता और समरसता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाने में भी सक्षम बनाते हैं। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

पुराने खेलो का मानवीय जीवन मे महत्व
पुराने खेल जो हमारे पूर्वजों द्वारा खेले जाते थे और जो आज भी खेले जाते हैं, मानवीय जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन खेलों के खेलने से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को फायदा मिलता है और हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में भी मदद मिलती है। इन खेलों को खेलने के दौरान हम संयम, अनुशासन, सामंजस्य, सहनशीलता और समानता के गुणों को सीखते हैं। इन खेलों के द्वारा हम दूसरों के साथ बेहतर संवाद और अधिक समानता को ध्यान में रख सकते हैं। इसलिए, पुराने खेल हमारे मानवीय मूल्यों के साथ गहरा रिश्ता रखते हैं जो हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमें इन खेलों का महत्व समझना चाहिए। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

पुराने खेलो के विलुप्त होने से सांस्कृतिक क्षति
जब एक समुदाय के साथ जुड़ा हुआ होता है तो उसके साथ जुड़े खेल उस समुदाय की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा होते हैं। इसलिए, जब ये खेल विलुप्त होते हैं, तो समुदाय की सांस्कृतिक क्षति होती है।
शारीरिक अस्वस्थता
खेल खेलने से हमारा शारीर स्वस्थ बनता है और हमें फिट रखता है। लेकिन अगर खेल विलुप्त होते हैं, तो इससे लोगों को शारीरिक अस्वस्थता का सामना करना पड़ सकता है।
सामाजिक लाभों का नुकसान
कुछ खेल लोगों को एक साथ लाने और सामाजिक रूप से उन्हें जोड़ने का एक माध्यम होते हैं। जब ये खेल विलुप्त होते हैं, तो इससे सामाजिक लाभों का नुकशान हो सकता है।
दर्शकों की रुचि में कमी
जब खेलों में रुचि नहीं होती, तब उन्हें लाभदायक नहीं माना जाता है और उन्हें बंद कर दिया जाता है।
खेलों में तकनीकी अभाव
कुछ खेल ऐसे होते हैं जो खेलने के लिए विशेष तकनीक या उपकरणों की आवश्यकता होती है। यदि ये तकनीक या उपकरण अनुपलब्ध होते हैं, तो उन खेलों को खेला नहीं जा सकता है।
सामाजिक बदलाव – समाज में होने वाले संशोधनों के साथ, लोगों की पसंद और रुचि भी बदलती रहती है। कुछ खेल वे नहीं होते हैं जो आधुनिक जीवनशैली के साथ नहीं मिलते है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

चलो-आओ थोडा संवाद करें
मुझे मालूम है आपको पता है की पुराने खेल हमें हमारी संस्कृति, अदाकारी, और सामाजिक मूल्यों के बारे में जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। खेल न केवल एक मनोरंजन के साधन होते हैं, बल्कि वे हमारे संवाद, सहयोग, उत्साह और जीवन कौशलों को भी सुधारते हैं। अपने सूना होगा न बचपन की कहानियो में या बचपन में खेले होंगे खेल बिल्लियाँ और साँप सीढ़ी, स्थान बदले, पिचल पक्षी, गुल्ली-दंडा, स्तम्भ और लट्ठाखेल, जो हमारी संस्कृति, अदाकारी और सामाजिक मूल्यों के साथ जुड़े हुए हैं। इन खेलों के माध्यम से हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों और जातियों के लोगों के बीच एकता, सहयोग और समझौता बढ़ता है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

अपने इन खेलों को खेलने के दौरान अपने दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताने का भी मौका प्राप्त किया हैं। याद करो ये खेल आपके अपने अन्दर व हमारे समाज में समानता और गौरव को बढ़ाते हैं और हमारी संस्कृति को संजोये रखते हैं। इसके अलावा, खेल हमें अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और हमारे मनोवैज्ञानिक स्तर को भी सुधारते हैं। इसलिए, हमें अपने पुराने खेलों का महत्व समझना चाहिए और उन्हें संजोये रखने का प्रयास करना चाहिए। इससे हम अपनी संस्कृति को जीवंत रख सकते हैं और आगे चलकर अपनी अदाकारी और सामाजिक जिम्मेदारी,सक्रीयनागरिक के रूप में पूरी कर सकते है। मुझे बताना आपने अपने कौन-कौन से खेल-खेले है और आपको उनसे जीवन जीने के तरीके में क्या सीखने को मिला । (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

मेरे बारे में
राकेश यादव (डेसर्ट फेलो) बज्जू बीकानेर राजस्थान
मोबाईल नंबर- 8251028291
मेल – rakesh.kumar@ourdeserts.org
“कला के माध्यम से सामाजिक बदलाव की कहानी: एक कलाकार के रूप में मेरा अनुभव”
मेरा नाम राकेश यादव है। मैं होशंगाबाद नर्मदापुरम संभाग मध्यप्रदेश से हूँ। मैंने पिछले 8 साल से सामाजिक क्षेत्र में बच्चों और युवाओं के साथ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का हिस्सा बना हुआ हूँ। इसके साथ ही, पिछले 5 साल से, कला के माध्यम से कलाकारों के साथ काम कर रहा हूँ जो सामाजिक बदलाव की कहानी को कला से जोड़कर देख रहे हैं। मुझे लगता है कि कला एक ऐसा माध्यम है जो हमें सामाजिक बदलाव की कहानियों को सुनाने और उन्हें समझाने में मदद करता है।मेरे द्वारा किए गए कार्य में, मैं वर्तमान में राजस्थान में अरविंद ओझा फेलोशिप उरमूल सीमांत समिति बज्जू बीकानेर में एक वर्ष की फेलोशिप कर रहा हूँ। यहाँ मैं घुमंतू पशुपालक और पशुपालन पर कहानियां लिख रहा हूँ। साथ ही डेजर्ट और इंसानों के बीच जो संघर्ष है,जो सुबह की पहली किरण से रात चांदनी के सफर तक का होता है। उस पर कहनिया लिख रह हूं और उससे सीख रहा हूँ।

Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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