सहायता प्राप्त अशासकीय कॉलेजों में पदोन्नति प्रकरण, संगठनों ने भेजा तीसरा पत्र, सरकार चुप, शिक्षकों में मायूसी
उत्तराखंड के राजकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षकों की पदोन्नति पर लगी रोक को हटाने की मांग की गई। इस संबंध में तीन शिक्षक संगठनों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के साथ ही उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत को भी पत्र लिखा है। कहा गया है कि शिक्षकों की यूजीसी करियर एडवांसमेंट स्कीम 2010, 2018 तथा 2001 के अनुसार सभी प्रकार की नई और पुरानी पदोन्नति पर रोक को हटाने के शासनादेश जारी किए जाएं। इस संबंध में शिक्षक संगठन पहले भी दो पत्र भेज चुका है, लेकिन अभी तक किसी भी पत्र को शासन ने संज्ञान में नहीं किया। इससे शिक्षकों में मायूसी है।
सीएम को भेजे गए ज्ञापन में कहा गया है कि उच्च शिक्षा निदेशक के 24 मई 2021 के पत्र का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि गया है कि प्रशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में करियर एडवांसमेंट योजना के अंतर्गत रेगुलेशन 2018 के अनुसार प्रोन्नति की प्रक्रिया पर रोक लगाई गई थी।
तकनीकी रूप से गलत है रोक
अब ऐसी स्थिति में पूर्व की तिथि 19 जनवरी 2000 के पत्र के माध्यम से लगी रोक का हवाला देना तकनीकी रूप से गलत है। किसी भी समान मुद्दे के लिए जारी दो पत्रों में से नवीनतम/ बाद की तिथि के आदेश ही प्रभावी होते हैं। ना कि पूर्व की तिथि के लागू होते हैं।
शिक्षक संगठनों के मुताबिक डीएवी महाविद्यालय, देहरादून के शिक्षकों के प्रोन्नति प्रस्तावों के संदर्भित पत्र 24 मई 2021 में वर्णित किया गया है कि करियर एडवांसमेंट योजना के लाभ के लिए सभी शिक्षक दिनांक 19 जनवरी 2021 से पूर्व अह हो चुके हैं। जिनकी देयता की तिथि 26 अक्टूबर 2020 से पूर्व की है। इसके बावजूद उच्च शिक्षा निदेशक दवारा जारी पत्र दिनांक 7 अप्रैल 2021 में लिखा गया है कि “यह भी अवगत कराना है कि वर्तमान में कैरियर एडवांसमेंट स्कीम योजना 2010 व 2018 पर रोक है। अतः तक विषयक वित्तीय लाभ रोक हटने के पश्चात दिया जाएगा।
नहीं किया जा रहा समान व्यवहार
उन्होंने कहा कि निदेशालय की ओर से इस और बाद की तिथि के पत्र के अनुसार करियर एडवांसमेंट योजना 2010 व 2018 दोनों के ही द्वारा भविष्य में तथा इसके साथ पूर्व में हुई पदोन्नतिओं पर भी रोक लगा दी गई। इससे स्पष्ट है कि निदेशालय सभी महाविद्यालयों के साथ एक जैसा समानता का व्यवहार नहीं कर रहा है। क्योंकि महिला महाविद्यालय, हरिद्वार में नवंबर 2020 में हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में भी 24 मार्च 2021 के पत्र के रोके जाने के हवाले से पदोन्नति प्रक्रिया को अनुमत करने से मना कर दिया गया था।
पत्रों में उलझ रहा प्रकरण
सभी अशासकीय महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा रोके गए पदोन्नति की प्रक्रियाओं के दौरान ही दिनांक 22 मई 2021 को शिक्षकों की दिसंबर माह में हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के आधार पर मिली स्वीकृति को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि 7 अप्रैल 2021 के पत्र में वर्णित संयुक्त (पूर्व तथा भविष्य) दोनों प्रकार की पदोन्नतिओं पर से रोक विधिवत रूप से हटा ली गई है, अन्यथा संदर्भित पत्र दिनांक 22 तथा 24 मई, 2021 जारी ही नहीं हो पाते।
दिया ये तर्क
ज्ञापन में कहा गया है कि अतः समानता के दृष्टिकोण को दृष्टिगत रखते हुए उच्च शिक्षा निदेशालय, उत्तराखंड को प्रदेश के सभी अशासकीय महाविद्यालयों के साथ-साथ शासकीय महाविद्यालयों में भी प्रमोशन की प्रक्रिया यूजीसी रेगुलेशन 2010, 2018 तथा 2001 के अनुसार अनुमत किया जाना समुचित होगा, क्योंकि किसी भी आदेश, पर या शासनादेश में ऐसी व्याख्या नहीं है कि प्रमोशन की प्रक्रिया का एक भाग मान्य हो और एक भाग मान्य ना हो।
आदेश जारी करे सरकार
ज्ञापन में कहा गया है कि सभी प्रकार की पदोन्नतिओं की संपूर्ण प्रक्रिया, इसमें पूर्व में हुए प्रमोशन तथा भविष्य में होने वाले प्रमोशन भी शामिल हो, को एक साथ औपचारिक रूप से लिखित आदेश जारी कर अनुमति/ स्वीकृति प्रदान करने का करें तथा इनका आयोजन, प्रयोजन तथा चयन समिति की बैठक/ स्क्रीनिंग समिति की बैठक भी विधिवत रूप से यथाशीघ्र निर्धारित अंतिम तिथि 17 जुलाई 2021 से पूर्व, रेगुलेशन 2010 की दशा में पूर्णतया संपादित हो सकें। इसके संबंध में आदेश निर्गत किए जाने जरूरी हैं।
पहले भी दिए गए हैं दो पत्र
शिक्षक संगठनों के मुताबिक पूर्व में भी दो पत्र दिनांक 10 मई 2021 तथा 26 मई 2021 को प्रेषित किए गए थे। ये पत्र सभी प्रकार के प्रमोशन, जिनकी दिनांक 24 मार्च 2021 के पूर्व उनकी स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक हो चुकी थी तथा भविष्य में 25 मार्च 2021 तथा आगे संपादित की जानी थी, पर लगी रोक को हटाने हटने के औपचारिक आदेशों को निर्गत करने से संबंधित थे। इसके बावजूद अभी तक कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए हैं।
ये की गई थी मांग
-यूजीसी रैगुलेशन 2010 के अनुसार सभी एजीपी की लंबित पदोन्नतियों की शुरुआत की जाए, जिनकी अंतिम तिथि 17 जुलाई 2021 है। ये मामले 16 वर्षों से अधिक लंबित हैं।
-यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अनुसार सभी पे मैट्रिक्स की लंबित पदोन्नतियों की शुरुआत की जाए। ये मामले 3 वर्ष से अधिक लंबित हैं।
-यूजीसी रेगुलेशन 2001, 2010 तथा 2018 के अनुसार स्क्रीनिंग कमेटियों द्वारा
अग्रसारित विभिन्न अशासकीय महाविद्यालयों की लंबित पदोन्नतियों की स्वीकृति की जाए।
-पदोन्नतियों के संबंध में नए शासनादेश को जारी किया जाए। ताकि सभी अह शिक्षकों को देय तिथि से 1 वर्ष के भीतर प्रोन्नति प्रक्रिया पूरी होकर वित्तीय लाभ मिल सके।
दोनों पत्रों का नहीं मिला कोई जवाब
शिक्षक संगठनों के मुताबिक उक्त दोनों पत्रों का ना ही कोई जवाब ही मिला और ना ही किसी प्रकार की कार्यवाही शुरू की गई। वहीं, शिक्षक लंबे समय से लंबित पदोन्नति प्रकरणों के निराकरण की बहुत उम्मीद लगाए हुए हैं।
सरकार से की गई अपेक्षा
शिक्षक संगठनों सरकार से अपेक्षा की है कि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के पत्रांक दिनांक 24 जुलाई 2020 के अनुसार शैक्षणिक सत्र 2021-22 जो कि की 1 जुलाई 2021 से लागू होगा, से संबद्धता मात्र पहले वर्ष की कक्षाओं पर लागू होगा और वह भी माननीय उच्च न्यायालय, उत्तराखंड, नैनीताल में विचाराधीन है। 30 जून 2021 तक इस वर्तमान सत्र को हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल (कंट्रीय) विश्वविद्यालय से संचालित किया जाना वैसे ही आवश्यक हो जाता है, जिसमें प्रथम वर्ष की शिक्षा पढ़ाई जारी रखी जानी है। ऐसे में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय से ही सत्र को संचालित किया जाए।
संबद्धता को लेकर उठाए सवाल
कहा गया कि कोविड-19 के कारण शैक्षणिक सत्र 2020-21 के विषम सेमेस्टर की स्नातक व परास्नातक कक्षाओं की परीक्षाएं दिसंबर 2020-21 में ही हो जानी चाहिए थी। अभी तक तक नहीं हो पाई है। हेमवती नंदनव बहुगुणा गढ़वाल (केंद्रीय) विश्वविद्यालय से ही समस्त सेमेस्टर की परीक्षाएं भी भविष्य में कोविड-19 की स्थिति के सामान्य होने के बाद ही संपादित हो पाएंगी।
ऐसी परिस्थितियों में प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के शासनादेश/ आदेशों के कारण महाविद्यालयो/विश्वविद्यालयों के वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2020-21 के समापन से पहले तथा नए शैक्षणिक सत्र 2021-22 में शुरुआत से ही गंभीर अनिश्चितता दृष्टिगोचर होगी। साथ ही कहा गया है कि हेमवती नंदन बहुगुणा बहुगुणा गढ़वाल (केंद्रीय विश्वविद्यालय एक्ट 2009 की धारा 41 में संबद्धता जारी रखने का तो संवैधानिक प्रावधान है, किंतु कहीं भी असंबद्धता के बारे में किसी भी अध्याय या धारा में किसी भी प्रकार का कोई वर्णन या उल्लेख नहीं है। इस प्रकार यह कैसे संभव है कि बिना केंद्रीय विश्वविद्यालय से मिली संबद्धता को महाविद्यालय अपने स्तर पर समाप्त किए बिना श्रीदेव सुमन (राज्य) विश्वविद्यालय से जुड़ जाएं।
असंबद्धता का एक्ट में नहीं है उल्लेख
अब जबकि केंद्रीय विश्वविद्यालय के एक्ट में असंबद्धता का ना तो कोई उल्लेख या प्रावधान ही नहीं है, तब ऐसे में बिना असंबद्धता के राज्य के किसी भी अन्य विश्वविद्यालय से संबद्धता बनाने/ लेने/ जोड़ने की प्रक्रिया विधि सम्मत ही नहीं होगी। यह भी संज्ञान में लाया गया है कि तत्कालीन (2009) प्रदेश सरकार/शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश के सभी अशासकीय महाविद्यालयों (जो हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल राज्य विश्वविद्यालय जुड़े थे) को नवसृजित/रूपांतरित केंद्रीय विश्वविद्यालय (हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल (केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर) से जुड़ने की औपचारिक सहमति उत्तराखंड सरकार/ शासन स्तर पर देने के कारण सभी अशासकीय महाविद्यालय, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल (केंद्रीय) विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त कर शिक्षण कार्य में जुटे हुए हैं।
भुगतान और प्रमोशन प्रक्रिया से ना जोड़ा जाए
ऐसे में केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्धता समाप्त करने तथा राज्य विश्वविद्यालय से संबद्धता लेने की वैधानिक प्रक्रिया महाविद्यालयों पर डालने के स्थान पर या तो प्रदेशसरकार/शासन का उच्च शिक्षा विभाग, केंद्रीय सरकार के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा से केंद्रीय विश्वविद्यालय एक्ट 2009 में उसके शिक्षा मंत्रालय की सहायता से
संशोधन द्वारा असंबद्धता की धारा/ अध्याय जुड़वाएं अथवा केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्धता लगातार बनाए रखें एवं बहाल रखें। प्रत्येक दशा में संबधता को शिक्षकों के वेतन भुगतान तथा प्रमोशन प्रक्रिया से बिल्कुल भी नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
शिक्षकों का तर्क
यहां यह तथ्य भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि कैरियर एडवांसमेंट स्कीम के अंतर्गत प्रोन्नति हेतु महाविद्यालय के शिक्षकों के निष्पादन का मूल्यांकन, जिन मापदंडों पर आधारित है। उसमें शिक्षण, ज्ञानार्जन और मूल्यांकन सहित शिक्षण और शोध कार्यकलापों से संबंधित व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ प्रशासनिक सहायता और छात्र सह-पाठ्यक्रम और पाठ्यतर कार्यक्रमों व कार्यकलापों में भागीदारी भी शामिल है। प्रोन्नति शिक्षक के व्यक्तिगत प्रयासों का निर्धारित अवधि के अंतर्गत किए हुए कुल कार्यों व गतिविधियों का परिणाम होता है, जिसके अंतर्गत किसी भी शिक्षक को मूल्यांकन के आधार पर उन्नति के लिए अर्ह मानते हुए चयन समिति द्वारा निर्धारित ए.जी.पी. अथवा पे मैट्रिक्स में प्रोन्नति के लिए संस्तुति की जाती है।
अतः शिक्षक की प्रोन्नति को महाविद्यालय की विश्वविद्यालय से संबद्धता विषय से जोड़ा जाना तथा इस आधार पर प्रोन्नति का रोका जाना या उस पर रोक लगाना तकनीकी रूप से बिल्कुल भी सही नहीं है। ऐसे में सरकार से उम्मीद की गई कि शीघ्र इस संबंध में आदेश जारी किए जाएं। कहा गया कि सरकार के सकारात्मक कदम से प्रदेश के उच्च शिक्षा से जुड़े सभी शिक्षकों में उत्साह का संचार होगा तथा उनकी कार्य कुशलता व दक्षता में वृद्धि भी दृष्टिगोचर होगी।
ज्ञापन देने वालों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. कौशल कुमार, गढ़वाल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ग्रूटा के सचिव डॉ. डीके त्यागी, राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. प्रशांत सिंह शामिल हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।