दून के घंटाघर के निकट हवेली (प्रीतम कैसल) बयां करती है एक परिवार की नेकनीयती की कहानी
प्रीतम कैसल में रहने वाले परिवार की छवीं पीढ़ी के संदीप जैन (अमन) बताते हैं कि करीब वर्ष 1856 में सहारनपुर के देवबंद से उनके परदादा लाला भगवान दास देहरादून आए। तब घंटाघर से चकराता रोड की तरफ जंगल हुआ करता था। यहां आकर उन्होंने घंटाघर के निकट प्रीतम कैसल भवन का निर्माण कराया। महलनुमा इस भवन के निर्माण में पूरे पंद्रह साल लगे। इसमें कई कमरों सहित कई बड़े हाल हैं। वहीं पूरी इमारत का एरिया लगभग 65000 स्क्वायर फुट है।
पहले कभी इस पुरानी इमारत में पुरुषों व महिलाओं के लिए मर्दाना व जनाना का अलग-अलग हिस्सा हुआ करता था। इमारत की दीवारें भी करीब ढाई फुट मोटी हैं। लाला भगवानदास ने यहां आकर बैंकिंग का काम शुरू किया। इसकी शाखाएं देहरादून, बरेली, मसूरी के लंढौर, बिजनौर सहित विभिन्न स्थानों में फैल गई। आज भी देहरादून में इस इलाके को भगवानदास बैंक के नाम से भी जाना जाता है। इनके बेटे मनसुमरथ दास और जुगमंदर दास थे। दोनों ने जमीनें दान देकर देहरादून शहर को बसाने में योगदान दिया। इसके बाद मनसुमरथ दास के बेटे लाला नेमीदास ने परिवार के इस काम को आगे बढ़ाया। बैंक 1939 में पीएनबी की ओर से अधिग्रहित किए जाने तक सफलतापूर्वक संचालित हुआ।
इस परिवार ने जुगमंदर हाल (टाउनहाल) की स्थापना की, जो नगर निगम में स्थित है। जहां सामाजिक व विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन होता है। इस परिवार के नाम पर भगवानदास बैंक दून शहर में पहला भारतीय बैंक था। इस बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष लाला नेमीदास ने टाउनहाल के साथ ही महिला अस्पताल बिंग और शहर के एकमात्र स्पोर्ट्स पवेलियन बनाया।
लाला मनसुमरथ दास पैवेलियन मैदान में संदीप जैन के दादा लाला नेमीदास ने सन 1941 में ऑल इंडिया फुटबॉल लीग शुरु कराई। जो आज भी लाला नेमीदास फुटबॉल लीग के नाम से कराई जाती है। दून अस्पताल का महिला अस्पताल भी इस परिवार की देन है। जो आज जिला महिला अस्पताल है। इसके अलावा डीएवी पीडी कालेज में जुगमंदर दास ब्लॉक (साइंस ब्लॉक), डालनवाला स्टेट, नेमी रोड, इंदर रोड, मोहनी रोड, प्रीतम रोड और अमन मार्केट का नाम इस परिवार के सदस्यों के नाम से है।
आज घंटाघर में यहां पीएनबी और एचडीएफसी बैंक है, वहां कभी भगवानदास बैंक होता था। इस बैंक के कर्मचारियों के लिए निकट ही भगवानदास क्वाटर्स बनाए गए। जो बाद में वहां रहने वाले कर्मचारियों को ही दे दिए गए। यही नहीं वर्ष 1920 में लाला नेमीदास ने सहारनपुर में इलेक्ट्रीसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी खोली। इस कंपनी को 51 साल का लाइसेंस मिला था, जो आसपास से क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति करती थी।
लाला नेमीदास के बेटे विजय किशन ने भी परिवार के कार्यों को आगे बढ़ाया। वह विभिन्न सामाजिक मुहिमों से जुड़े थे और लाला नेमीदास फुटबाल गीग के प्रमुख भी थे। अब विजय किशन के बेटे संदीप जैन पुरखों के कार्यों को जारी रखने का प्रयास कर रहे हैं। पुरखों से मिली सीख और दरियादिली इस परिवार के हर सदस्यों की सांसों में समाई है। शिक्षा की बात हो या फिर खेल की। स्वास्थ्य की बात हो या फिर सामाजिक विकास। ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों में इस परिवार के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है।
डालनवाला स्टेट में करीब साढ़े चार सौ बीघा की टाउनशिप डेवलप करने वाला यह परिवार भले ही आज प्रीतम कैसल की चाहरदीवारी तक सिमट गया हो, लेकिन इतिहास गवाह है कि कभी इमारत बुलंद थी। मोहिनी रोड, प्रीतम रोड, नेमी रोड जैसे प्रतीक इस परिवार की नेकनीयती के प्रतिविंब हैं।
तारीख के आइने में देखें तो म्यूनिसपिल्टी बिल्डिंग और जुगमंदर हाल (1938), लाला मनसुमरथ दास मेमोरियल पवेलियन ग्राउंड (1939), श्रीमती श्योति देवी एंड छिमा देवी वूमंस हास्पिटल (1940), श्री दिगंबर जैन धर्मशाला के कुछ भवन (1936), भगवानदास क्वार्टर्स (1937) सामाजिक सरोकारों के प्रति भगवानदास परिवार की प्रतिबद्धता के गवाह हैं। यही नहीं डेढ़ सौ साल से अधिक समय से खड़ी भगवानदास परिवार की हवेली प्रीतम कैसल स्वयं में ऐतिहासिक धरोहर है। लाला भगवानदास के परपौते संदीप जैन (अमन) बताते हैं कि हवेली में आज भी पचास से अधिक सदस्यों का संयुक्त परिवार रहता है।
संदीप जैन का परिचय
सभी जानकारी प्रीतम कैसल में रहने वाले संदीप जैन की ओर से दी गई है। संदीप जैन तकनीकी आधारित व्यवसाय करते हैं। उनका व्यवसाय पेयजल सेक्टर से संबंधित है। वह बिजनेस मैनेजमेंट में स्नाातकोत्तर हैं। वर्तमान में वह आटोमाइजेशन सिस्टम के प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। यह समाज के लिए भी उपयोगी है। बिजनेस के क्षेत्र में उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। राष्ट्रीय उद्योग प्रतिभा सम्मान, बिजनेस एक्सीलेंट एंड ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड, राष्ट्रीय उद्योग गोल्ड अवार्ड, उत्तराखंड रत्न सम्मान हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।