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August 3, 2025

पुलिस बोली बेटा गैंगवार में मारा गया, पिता बोला- सबसे बड़ी खुशी का दिन, मीट भात खाऊंगा

एक मोहल्ले के सार्वजनिक नल पर पानी भरने को करीब तीस लोगों की भीड़ थी। नल से पानी भी पतली धार के रूप में टपक रहा था। सुबह-सुबह ही पुलिस के जरिये मोहल्ले में रामू की आपसी गोलीबारी में मौत की खबर पहुंची थी।

घटना करीब 1974 की। बात हो रही है देहरादून जिले की। सुबह करीब सात बजे का समय। एक मोहल्ले के सार्वजनिक नल पर पानी भरने को करीब तीस लोगों की भीड़ थी। नल से पानी भी पतली धार के रूप में टपक रहा था। सुबह-सुबह ही पुलिस के जरिये मोहल्ले में रामू की आपसी गोलीबारी में मौत की खबर पहुंची थी। ऐसे में नल के आसपास के माहौल में सन्नाटा पसरा हुआ था। आपस में लोग रामू की मौत के बारे में कानाफूसी के रूप में चर्चा कर रहे थे। तभी एकाएक रामू के पिता शोभराज पर सभी की नजर पड़ी। वह भी बाल्टी लेकर नल पर पानी भरने पहुंचे थे। शोभराज को देखते ही सभी चुप हो गए।
इस सन्नाटे को शोभराज ने ही तोड़ा। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-आखिर मर ही गया। मेरी औलाद थी, पर समझाने के बाद भी नाक में दम कर रखा था। शहर का बदमाश था। मैं कहता था कि बदमाशी छोड़ दे, पर मानता नहीं था। अब मार दिया ना बदमाशों ने। कर्म ऐसे थे, कि उसे मरना ही था। यदि बदमाश नहीं मारते तो पुलिस की गोली से मरता। अब मैं काफी खुश हूं। मिल गया ऐसी औलाद से छुटकारा। आज शाम को मैं मीट भात पकाकर खाऊंगा।
देहरादून में उन दिनों दून में बदमाशों के दो गैंग के बीच गैंगवार छिड़ी थी। भरतू और बारू नाम के कहने को तो ये बदमाश थे, लेकिन अपने मोहल्ले में ये किसी हीरो से कम नहीं थे। एक गिरोह के सदस्य दूसरे गिरोह के सदस्यों से भले ही कितनी दुश्मनी कर लें, लेकिन अपने मोहल्ले में उनका व्यवहार सभी से काफी अच्छा रहता था। ऐसे ही एक गिरोह का सक्रिय सदस्य शोभराज का बेटा रामू था। देहरादून की राजपुर रोड से सटे मोहल्ले में शोभराज रहता था। वह एक सरकारी महकमें में कुक था। तीन बेटियों में रामू उसका एकलौता बेटा था। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही रामू व उसके साथियों का दूसरे गुट के छात्रों के साथ अक्सर झगड़ा हो जाता था। विवाद बढ़ता गया और वह युवाओं में हीरो बनता गया। फिर शहर में दो बड़े गिरोह बन गए। एक भरतू का और दूसरा बारू का। रामू भरतू का दोस्त था। पहले रामू खुखरी लेकर चलता था, बाद में रिवाल्वर व अन्य हथियार उसके खिलौने हो गए। दोनों गिरोह एक दूसरे के जानी दुश्मन हो गए।
उन दिनों बदमाश दो चीजों से डरते थे। एक खाकी वर्दी और दूसरे अपने दुश्मन से। पुलिस व दुश्मन की नजर से बचने के लिए वह हमेशा सतर्क रहते। शोभराज ने बेटे को समझाया कि बदमाशी छोड़ दे। पर कोई फायदा नहीं हुआ। नतीजन शहर में कोई भी घटना होती, तो उसमें रामू का नाम भी जुड़ जाता। ऐसे में पुलिस शोभराज के घर धमक जाती। हालांकि रामू और भरतू गिरोह का कोई सदस्य चोरी, डकैती आदि नहीं करता था। वे नेताओं व कुछ सेठों के इशारे पर ही दबाव बनाने का काम करते थे। कहीं किसी को ठेका दिलाना हो, या फिर किसी के पैसों को वसूलना हो, ऐसे कामों के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता था।
रामू को पकड़ने जब भी पुलिस मोहल्ले में आती तो रामू अपने साथियों सहित आसपास के किसी खंडहर या जंगल में छिप जाता। पुलिस से ज्यादा सक्रिय रामू का सूचना तंत्र था। मोहल्ले के बच्चे-बच्चे रामू को बता देते ही फलां स्थान पर पुलिस नजर आई। पुलिस मोहल्ले में रामू के संभावित ठिकानों को तलाशती और अधिकतर खाली हाथ लौटने लगती। कई बार तो भरतू और अन्य उसके साथी भी उसके मोहल्ले में ही शरण लेते थे।
जब पुलिस उन्हें तलाशने में नाकाम होती तो कई मर्तबा शोभराज ने ही रामू के ठिकानों का पता पुलिस को बता देता और उसे पकड़वा दिया करता था। शोभराज ने जब देखा कि रामू समझाने पर भी नहीं समझ रहा है। तब उसने सोचा कि रामू की शादी कर दी जाए। हो सकता है परिवार की जिम्मेदारी सिर पर आते ही वह सुधर जाएगा। शादी हुई, एक बेटे व तीन बेटियों का बाप बना, लेकिन रामू की आदत नहीं बदली। या तो वह रात को मोहल्ले में किसी ऐसे व्यक्ति के यहां सोता, जहां पुलिस को शक न हो। या फिर उसकी रात व दिन जेल में कटते। या यूं कहें कि जेल में आना जाना उसका लगा रहता था।
रामू की मौत का समाचार जब मोहल्ले में मिला, तो पुलिस ने यही बताया कि हरिद्वार में आपसी संघर्ष में वह मारा गया। रामू की मां, बहने, पत्नी आदि का रो-रोकर बुरा हाल था। वहीं, शोभराज सभी को खुश नजर आ रहा था। पिताजी का हाथ पकड़कर मैं शाम के समय शोभराज के घर पहुंचा। पिताजी ने शोभराज को सांत्वना दी। सुबह जो शोभराज पत्थर दिल बाप के रूप में कठोर नजर आ रहा था, शाम के समय तक वह टूट चुका था। मीट भात खाने की बात करने वाले शोभराज के घर चूल्हा तक नहीं जला। छोटे बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। शोभराज कमरे के कोने में चुपचाप बैठा था। वह कुछ बोल नहीं रहा था। उसकी आंखों से अश्रु धारा लगातार निकल रही थी।
उन दिनों टेलीफोन दूर की कौड़ी थी। लोग किसी से संपर्क या तो चिट्ठी पत्री से करते थे, या फिर व्यक्तिगत रूप एक-दूसरे के पास जाकर। करीब तीन दिन बाद अचानक रामू मोहल्ले में नजर आया। उसे तो लोग मरा समझ रहे थे। तब रामू ने बताया कि उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने चाल चली थी। चाल यह थी कि मरने की सूचना पर कोई उससे संपर्क करेगा और पुलिस उसे पकड़ लेगी।
एक रात शोभराज रामू के बेटे के साथ घर में बिस्तर पर लेटा था। तभी दो नकाबपोश घर में घुसे और बिस्तर पर लेटे शोभराज को रामू समझकर फायर कर भाग गए। गोली शोभराज के पेट में लगी। करीब बीस दिन तक वह अस्पताल में रहा और उसने दम तोड़ दिया। बेटे की करनी का फल भुगतते-भुगतते आखरी सांस तक शोभराज बेटे को यही समझाता रहा कि बदमाशी छोड़ दे। समय तेजी से बदला। शोभराज की जगह रामू की पत्नी को सरकारी नौकरी मिल गई। गिरोह के सदस्य या तो आपसी गोलीबारी में मारे गए। या कई बीमारी से चल बसे।
बाप के जीते जी रामू ने उसका कहना नहीं माना, लेकिन पिता के मरने के बाद उसके जीवन में बदलाव आ गया। रामू ने बदमाशी से तौबा कर ली। उसका बेटा व बेटियों का अपना-अपना घर बस गया। इसके बाद वह भी बच्चों को यही उपदेश देता है कि कभी बदमाशी मत करना। उसका पश्चाताप ही उसके पिता की आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि है। आज इस दुनिया में ना तो रामू है और ना ही गिरोह के ज्यादातर सदस्य। रामू भी करीब पैंसठ साल की उम्र में चल बसा। अब जिंदा है तो सिर्फ पुराने लोगों के बीच एक यादें। बदमाशों के गैंगवार की कई घटनाएं। साथ ही एक सच्चाई कि बदमाशी का अंत कभी भी सुखदायी नहीं होता। आज भी वो मोहल्ला है। वहां लोग रहते हैं, लेकिन नई पीढ़ी में शायद ही कोई जानता हो कि ये मोहल्ला कभी ऐसे बदमाशों की शरणस्थली था, जहां दुश्मन को देखते ही उस दौर में स्टेनगन से गोलियों की बौछार होती थी। रात को लोगों को पहले ही सचेत कर दिया जाता था कि लोग घरों से बाहर ना सोएं। रात को सड़क पर गोलियों की होली खेली जाएगी। (पुरानी याददाश्त पर आधारित। अगली कड़ी लिखने का जल्द होगा प्रयास)
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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