शिक्षिका उषा सागर की कविता- मेरा घर
एक छोटा सा घर था मेरा
था मेरे लिए महल बड़ा
क्या बताऊं तुम्हें उसकी कहानी
आता है आज भी सपना तेरा
एक छोटा सा घर था मेरा—-
हुआ जन्म भी मेरा उसी घर में
पहुंच जाती रोज वहीं मैं सपनों में
पहाड़ी की तलहटी में
नदी किनारे गांव मेरा
एक छोटा सा घर था मेरा—-
सामने था एक पहाड़ बड़ा
पेड़ पौधों से सदा भरा हुआ
छटा उसकी अद्भुत निराली
पशुओं से जंगली भरा हुआ
था उसी की तलहटी में
ननिहाल भी मेरा
एक छोटा सा घर था मेरा——
अनुपम अनोखा था गांव
खेत खलिहानों से भरा हुआ
उसी के एक छोर पर था घर
मेरा, हरियाली से घिरा हुआ
इन वादियों की गोद में
बीत गया बचपन मेरा
एक छोटा सा घर था मेरा—–
खुशियों से बीता जहां बचपन
हर जगह थी लुभावनी
खेलते थे जिस जगह, किनारे पर
थी नदिया की वह धारा सुहानी
छूट गया वो दर इस तरह
जाना न हुआ फिर मेरा
एक छोटा सा घर था मेरा
था मेरे लिए महल बड़ा
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।