युवा कवयित्री मिताली बिष्ट की कविता-बचपन का पिटारा

बचपन का पिटारा
आज सफाई करते पुराने कमरे की,
बचपन से भरा संदूक हाथ लगा एक,
काले रंग में रंगी वो छोटी पेटी
बचपन की यादें समेटे थी अनेक।
बीते कल की यादें
मानों मेरी आँखों के सामने रूप ले रही थी,
दादी की वो साड़ी थी उसमें,
जो उसने छोटी बुआ की शादी में पहनी थी।
सुलझी मिली एक मांझे की पुरानी डोर,
लगा जैसे सर्दियों के वो दिन वापस आ गये।
सुबह की हलकी धूप में पतंग के पीछे भागते हम
आँगन में चटाई बिछाए दादी सामने ही बैठी थी
और जाने कहां से मिला उलझा धागा
हम उनके हाथ थमा गए।
आसान था उनके लिए चीजे सुलझाना,
जब वो थीं तो रिश्ते भी सुलझाए रखती थी,
आसान सा था उनके लिए बिगड़ी बातें बनाना।
दादू का लाईटर मिला पुराना एक,
चांदी के रंग का जैसे हो कोई बूट छोटा,
और मिली चवन्नी एक उनकी जैकेट के जेब में,
रोने पर बुलाते थे कभी हमें सिक्का खोटा।
रेडिया था वहाँ एक न जाने चुप है जो कब से,
कैसेट एक अटकी थी उसमें,
संभाले रखी हो जैसे यादें उसने भी तबसे।
अपने बचपन से हुआ आज सामना,
दिखे वो खिलौने छोटे , बस्ता पुराना।
छुट्टियों के दिन और होमवर्क न होने पर माँ का ताना।
गुल्लक थी उसमें एक जो मामा ने भेजी थी
पैसे उसमे कितने जमा हुए पता नहीं,
यादों की मेरी तो पर वो तिजोरी थी,
छोटी पोटली निकली एक, उस बक्से से आज
नानी से ले आई थी मांगकर जो में साथ,
याद आऐ वो गर्मियों की छुट्टियों के दिन,
जब माँ के साथ एक पूरा पहाड़
लांग कर गाँव जाया जाता था,
नानी के हाथ के बने
घी माखन का क्या स्वाद आता था।
काले धागे में बंधी तावज़ को देखकर
माँ की आँखें भर आई,
नज़र का एक धागा था
जो नाना ने उसके गले में बांधा था.
उसने भी सब छोड़
इस तावीज़ सहारे अपना आँगन लाँघा था।
आज सफाई करते पुराने कमरे की लगा संदूक
एक हाथ, माँ बाब को देखकर लगा
हमारा भी तो बचपन जा रहा है उनके साथ।
फिर खो जाऐंगे शहरों की भीड़ में जाकर और
वो संदूक फिर सालों के लिए बंद हो जाऐगा
खोलेंगे उसे किसी साल फिर,
और वो बचपन का पिटारा,
हमारा बीता कल दिखाऐगा।
कवयित्री का परिचय
मिताली बिष्ट, देहरादून, उत्तराखंड।

Bhanu Prakash
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।