युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-कुछ रिश्ते जुड़ जाते हैं खुद ब खुद

कुछ रिश्ते जुड़ जाते हैं खुद ब खुद।
इन्हें जोड़ने के लिए नहीं करनी पड़ती कोई कोशिश…
नही बनानी पड़ती कोई योजना…
नही बदलना पड़ता कोई किरदार….
कुछ रिश्ते अपनाते हैं तुम्हें हू ब हू।
कुछ आँसू निकल पड़ते है बेवक्त खुद ब खुद।
इनमे नही होती किसी तरह की मिलावट….
नही होता कुछ झूठा दिखावा…
ये टपकते हैं मन में कोई ब्यथा हो जैसे हू ब हू।
प्रेम नही होता किसी योजना का मोहताज ये हो जाता है खुद ब खुद।
प्रेम नही मांगता कोई इज्जाजत तुमसे…
न ही ये रुकता है किसी बाधा से….
प्रेम दर्शता है तुम्हे कोई सांचे में ढली मूर्त जैसे हू ब हू।
कोरे कागज पर जज्बात बिखर जाते है खुद ब खुद।
जज़्बातों को अल्फाज़ो में पिरोने के लिए नही सोचना पड़ता कुछ अतिरिक्त….
ये उकेर दिए जाते है मन का दर्पण हो जैसे हू ब हू।
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (तृतीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।