युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-मैं एक नारी हूँ
मैं एक नारी हूँ
अपने हालतों पर भारी हूँ
जलायी गई हूँ कई बार आग में
फिर भी न हुई राख मैं
मैं सहमी नही हूँ अब
मैं धधकती ज्वाला हूँ
ढल रही हूँ अब एक नए आकार में
पंख आ रहे हैं मेरे क़िरदार में
उड़ने को हूँ तैयार मैं……
हाँ मैं एक नारी हूँ
बिंदिया झुमका कंगन चूड़ी पायल बिछियां
ये मात्र अलंकार मेरे
तुम जंजीरो में जकड़ी जागीर न समझना
सौम्य रूप देखा मेरा वक्त पर प्रचंड रूप भी धरूंगी
मैं नारी हूँ
अपना मान बढ़ाने के लिए नाम दिया देवी का
इसकी न मैं कोई आभारी हूँ
मैं इंसान हूँ पहले इंसानियत सा तो ढंग रखो
देवी महज नाम नहीं चाहिए पहले इंसानियत सा मान रखो
मै नारी हूं
अब मैं बदल रही हूं
हार कर संभल रही हूं
सौर्य कूट कूट कर भरा मुझमे
अब ज्यादा असरदार हूँ
रोशनी की रफ्तार मैं हूँ
सीख रही हूं कोना छोड़ अपने हक के लिए आगे आना
हर किसी से आँख मिलाकर बाते करना
अपनी राय हर मुद्दे पर रखना
मै कोई लाचार नही हूं
किसी की हमदर्दी की मोहताज नही हूँ
घूँघट छोड़ सर उठा रही हूं
जीवन मे एक ज्योत जला रही हूँ
अब चेहरे पर मुस्कान हैं
मेरा अपना वजूद है मेरा अपना आत्मसम्मान हैं
करोगे और कितना तंग नही रहती हूं अब दंग मैं
आग है मेरे अंग अंग में
बन गयी विचारो से स्वछन्द मैं
एक नए सांचे में ढल रही हूं
एक सुखद कल का स्वपन लिख रही हूँ
विचारो में परिवर्तन ला रही हूँ
आकाश में उड़ने को तैयार मैं
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (द्वितीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर?