दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की कविता- सुशासन बाबू
ज्योति पाकर हीरा कोयलों से निकलता है।
दाग़ियों को छोड़ सुशासन बाबू चमकता है।।
महत्वाकांक्षी तम में भटक कोयलों से घिरा।
जनता की आवाज़ सुन घर वापस लौटता है।।
जिस तेज आँधी को ब्लोवर की हवा समझा था।
उस सच का पता जनमत की हवा से मिलता है।।
उड़ती चिड़िया के पर जग में जो नेता गिन सकता है।
हवा के रुख को वही नेता ठीक समझता है।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
साँपों के चंगुल से चंदन-सा नितीश छूटा।
क्या कभी सुना है चंदन तजता शीतलता है।।
भरम वश छूटे यार सच जान फिर मिल जाते हैं।
अच्छा वस्त्र फीका पड़कर भी कहाँ फटता है।।
विश्व सुंदरी-सा हाल होता है उस नेता का।
हर मन प्यारा जो भी सब का कंठ-हार बनता है।।
नहीं है स्थाई दोस्त और दुश्मन सियासत में।
रुपेला सत्ता के वास्ते ये खेल चलता है।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।