शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-औकात

सुबह उठी इक तितली मचली
पर खोल देख निज रंगों को
फूलों फूलों पर है इतराती
कलियों को ताना सा देती
सूरज की किरण रुपहली से
बोल उठी देखो तो वो पगली
तेरी भी रंगत तो बस है मुझसे
वरना तुझमें भी कुछ बात कहाँ
किरणें बोली हाँ ठीक कहा तूने
मेरे बिन रात में जब इठलाना
समझेगी तू कि तेरी औकात कहाँ
केवल जुगनू ही जगमग चमकेंगें
तेरे रंगों में फिर वो बात कहाँ
समय ही सबसे बलवान यहाँ
कभी तेरा है ये, कभी मेरा यहाँ
अपनी औकात में ही रहना सब
केवल समय बड़ा बलवान यहाँ
समय से बढ़कर नहीं तेरी मेरी
किसी की भी होती औकात यहाँ ।
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून उत्तराखंड।