शिक्षिका एवं कवयित्री डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता- ये कैसी कोरोना की हवा चली
ये कैसी करोना की हवा चली,
इक भय बिखरा है गली गली।
जब चारों ओर मरण का तांडव
फिर बसंत आया या नहीं
गीत कवि श्रृंगार का गाए तो कैसे
जब करुणा बिखरी गली गली
बौर आम की क्या महके जब
समिधा हो गई सब अमराई भली
कोयल कूके तो क्या बोले
जब चील गिद्ध की टोली मचली
गीत कवि ऋतुराज का गाए तो कैसे,
जब रुदन मचल उठा गली -गली
खाली घर , बाजार है सूना।
अस्पताल शमशान का बना नमूना।
मधुवन रूठा ,पनघट सूखा
संसार बना शमशान यहाँ
शमशान भरे ज्यों मधुशाला
एक गुपचुप खामोशी है
स्वर सन्नाटे का पसरा है।
मरण मनाता त्यौहार यहाँ
जीवन पर मृत्यु का पहरा।
कवि मौन … शब्द गायब .. भावों पर चुप चुप …
परेशान हर शख्स यहाँ।
बेबशी मौत की व्यापक है
और उस पर चुप चुप का पहरा है
रुक गई डगर जीवन की
छुप छुप कर घर में ठहरा है..
गरीबी,
बेरोजगारी
और लाचारी
बेबसी देखो इन की
जब तन को भूख सताई है
तब निकल पड़े और मौत से आँख मिलाई है
गीत कवि मन का गाए तो कैसे
जब हर दुसरा मरने वाला भाई है
गीत कवि श्रृंगार का गाए तो कैसे
बसंत ही रूठा चुप पुरवाई है
बागवाँ है मौन,
कली कली सहमी सहमी सी
फूल बनने से भी कतराई है।
ये कैसी करोना की हवा चली,
कोहराम मचा है गली गली
संवेदनाएँ मर रही अब
भावना का गला घोट जब
कोई आसूँ पोंछ न पाता
रिश्ते भी अब कोई निभाने न आता
मौत से वो कैसे जोड़े नाता
बिखरे सब नाते रिश्ते गली गली
ये कैसी करोना की हवा चली ….
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रो. एवं विभागाध्यक्ष
डीएवी (पीजी ) कालेज देहरादून, उत्तराखंड। (लेखिका देहरादून में डीएवी छात्रसंघ के पूर्व लोकप्रिय अध्यक्ष एवं भाजपा नेता विवेकानंद खंण्डूरी की धर्म पत्नी हैं। कविता और साहित्य लेखन उनकी रुचि है)