पढ़िए कवयित्री अनुराधा कश्यप की ये शानदार रचना-ठूंठ
ठूँठ
हाँ मै हूँ एक टूटा दरख़्त,
अकेला गुमनाम एक ठूँठ।
पर मायूस नहीं हूंँ,
न मन मलीन है मेरा।
वर्षा ऋतु की न कोई चाह,
न शाख पर किसी पंछी का बसेरा।
बहारों में खिलते नहीं फूल मुझ पर,
न गुंँजयमान होती हैं मेरी शाखाएँ।
टहनियों पर पत्ते नहीं,
न झूला झुलाती हैं मुझे हवाएँ।
चिड़ियों का कलरव नहीं,
न बच्चों का शोर है।
तेज धूप में तपता पथिक,
आता नहीं अब मेरी ओर है।
भूल कर निज पीड़ा को,
हर पल खुशी से जीता हूँ।
पर उपकार पर हित के लिए
हर बार खुशी से सहता हूँ।
हाँ मैं हूँ एक टूटा दरख़्त
अकेला गुमनाम एक ठूँठ।
कवयित्री का परिचय
अनुराधा कश्यप (जेबीटी)
राजकीय प्राथमिक पाठशाला, हाजल,
शिक्षाखंड- सुन्नी, जिला- शिमला,
हिमाचल प्रदेश
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।