शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-पहचान

हाँ मेरी खुद से, मेरी पहचान
सचमुच मैं जानता नहीं
कहाँ खो गई है।
मैं सचमुच,
ना जाने क्यों आदि हो गया हूँ ?
स्वयं को दूसरों के नजरिये से देखने का।
खुद की नजरों में मैं क्या हूँ ?
देखने का वक्त ही नहीं है मेरे पास
पहचान,
हाँ मेरी खुद से, मेरी पहचान
सचमुच मैं जानता नहीं
कहाँ खो गई है।
सदा दूसरों के अनुरूप
एक अलग ही सांचे में ढ़लने का प्रयास ,
ज़िन्दगी को दोज़ख बना दिया मैंने।
पहचान,
हाँ मेरी खुद से, मेरी पहचान
सचमुच मैं जानता नहीं
कहाँ खो गई है।
कभी सबसे अच्छा बच्चा
कभी सबसे अच्छा शिष्य
तो अब एक अच्छा गुरु बनने की चाहत में
कभी अच्छा रिश्तेदार तो कभी अच्छा पड़ोसी
भूल गया मैं कि मेरी हकीकत वास्तव में है क्या ?
क्या है मेरी आत्मा की सच्चाई,
क्या है उसकी चाहत?
पहचान,
हाँ मेरी खुद से, मेरी पहचान
सचमुच मैं जानता नहीं
कहाँ खो गई है।
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।