कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-नौछमि-नारैंण
नौछमि-नारैंण
नौछमि नारैंण छु मीं, जन्म ल्यूंलु आज.
मना मंसा पूरि करलु, मंग्यूं- द्यूंलु आज..
मिंछु दगड़्यूं-कु दगड़्या, मिन-दग्ड़ु निभै,
दै-नौंण नि मीलि त, च्या-पांणि प्यूंलु आज..
पूरि रात जग्दा रैला, मेरु जल्म तुम मनैला,
तुम दगड़म जग्यूं रौंलू, मीं नी-स्यूलु आज..
सब्यूं दिल म- बस्यूं रैंदु, ग्वाऴ – बाऴु छूं,
घरम जैकी हरेका, ज्यू भितर ज्यूंलु आज..
राधा दग्ड़म-गोपि मेरि, बाटु-देख्णा ह्वाला,
सब्यूं मिललु गाऴा भेंटी, खूब रूंलु आज..
गाऴ-द्वारौं रास-रचलु, इकेकैरी सब्यूं भेंटलु,
गाड-गधेरौं-छ्वाया-पंदेरौं, मुक धूलु आज..
‘दीन’ ! मीं बि सारा लग्यूं, हे कनैया त्यारा,
त्वे थैं देखी- मन म सोची, धन्य हूंलु आज..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।