कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-गूंणि बांदर
गूंणि बांदर
अछे ? रै-होला हम, गूंणि-बांदर पैलि कबि.
सची ? हमरि बि- क्य, पूंछ- रै-ह्वेलि कबि..
सैन्स कि खोज- बड़ि च, कि- हमरु इत्यास,
त्रेता युग-न बांदरौं, फौज बि- देख्वलि कबि..
तब-मन्ख्यूं बदला-काम, गूणि-बांदरौंन करीं,
राम दग्ड़ हनुमान बणि, ज्ञान पै-ह्वलि कबि..
राम जी की मैंमा- अपार, गूणि- बांदरौं तार,
मन्ख्यूं दग्ड़-मिलै, ऊंकि पूंछ हटै-ह्वलि कबि..
मन्खि- बांदरौं मेल रै, जन्म- जन्मान्तर बटि,
रावणा दरबार, हनुमान जी पूंछ-जऴि कबि..
गूणि- बांदरौं पूंछ दगड़ि, लगौ- सदन बटि रै,
कुछ मन्खि बड़ीं, कुछूं पूंछ-नि-निक्ऴि कबि..
‘दीन’ मानिग्यूं, हम रै ह्वला ! गूणि-बांदर कबि,
तबी त पौंछि जंदवां, यथ- वथ बिचऴि कबि..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।