कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-गाड-गदिनु

गाड-गदिनु
बसगाऴ- बोगदि गाड, गौंक छाल-छाल.
कन करद- स्वीस्याट, गौक छाल- छाल..
गदिनु- बड़ि जांद- गाड, रोलि नी- तरेंदि,
बगि जंदी माछ्यूं फाट, गौंक छाल-छाल..
मैतोड़ा आंदि नौनि, रै जांद- पलि छाल,
काम आंद ज्यूणु-लाठ, गौंक छाल-छाल..
ह्यूंद म आंद- क्वी बरात, रोलि का तीर,
बाजौं- सुड़ेंद घमघ्याट, गौंक छाल-छाल..
रूड़्यूंम ढ़ड-तलौ म, छपतोळा-छपतोळ,
छोटा-छ्वारौं लंगल्याट, गौंक छाल-छाल..
ग्वाद लगै- गैस जळै, माछा- पकड़ी रोज,
गड्याळ-माछौं भिभ्ल़ाट, गौंक छाल-छाल..
‘दीन’ तरि-दार माछौं म, भात-रोटि भिजै,
ददि-दाजी कु लबळाट, गौंक छाल-छाल..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।