युवा कवयित्री किरन पुरोहित की आपदा को लेकर सचेत करती कविता-कह रहा हिमालय अब भी समय है
कह रहा हिमालय अब भी समय है
कह रहा हिमालय अब भी समय है, जागो – जागो देर न हो ।
मुझको भी जीवित रहने दो, व तुम भी जीवित रह लो ।।
कितने बांधो में बांध रहे हो, गंगा की कोमल धारा ।
मानव के विकास हेतु, गंगा विनाश ही मात्र सहारा ?।।
मत रोको गंगा – यमुना को, इनको अविरल बहने दो ।
छोटी-छोटी व उच्च घाटियों, में निर्बंधित रहने दो ।।
कह रहा हिमालय अब भी समय है
जागो जागो देर ना हो ——— ।
मैं उत्तरकाशी में आया कंपन, मैं केदार का जल प्रलय ।
मैं आज तपोवन का तांडव हूं, करता विकास को निज में लय ।।
मैं तब-तब फिर से आऊंगा , तुम जब-जब मुझको भूलोगे।
यदि अब भी तुम ना रुके, तो मौत के झूले झूलोगे ।।2।।
कह रहा हिमालय अब भी समय है
जागो जागो देर ना हो ———- ।
क्या गंगा की गति रोककर, कल विकास हो संभव है?
क्या श्रेष्ठ हिमालय की हानि कर, जीवित रहना संभव है ?
कबतक इस कच्चे विकास की, बाढ मे बहते जाओगे ?
कौन बहा? कैसे बहा?, ऊं शान्ति शान्ति कह जाओगे ?
कह रहा हिमालय अब भी समय है
जागो जागो देर ना हो ———- ।
कबतक पेड़ कटेंगे कबतक, जंगल जलते ही रहें ?
कबतक वन में मरें जीव, व बर्फ पिघलती ही रहें?
कबतक विकास की मैली गंगा, उल्टी बहे हिमालय में ।
जबतक की फिर तांडव ना हो, उत्तराखंड शिवालय में ।।
कह रहा हिमालय अब भी समय है ,
जागो जागो देर न हो ———–।
कवयित्री का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।