युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-तो प्रेम जटिल नही सरल होता
कभी-कभी लगता है प्रेम जैसी सरल भावना को
कितना जटिल बना दिया गया है।
जिसने भी प्रेम में पहले मरने की बात कही
उनको करनी थी पहले साथ जीने की बात।
जो खुशी मे साथ मुस्कराए,
उनको रोना था दुःख मे पहले साथ।
जिसने भी अपनी महबूबा के नयन,
केश और होंठो पर कविता लिखी
उसको पहले पढ़ना था उसके मन को
पढ़ने थे वो पन्ने सारे जो लिख कर उसने काट दिए।
जिसने भी पहले गीत लिखे उसके देह पर
होना तो यूं था कि वो बैठता साथ उसके
झांकता देह से परे उसके मन में
हटाता बरसों से जमी धूल को और साफ करता
उस तस्वीर को जो असल में वो है।
जिसने भी सबसे पहले चाह की प्रेमिका के तन की
खोले उसके केश
उसको उससे पहले खोलनी चाहिए थी
उसकी मन की गांठे।
जिसने भी प्रेमी से मांग की
सबसे पहले महंगे तोहफो की
उसको पहले मांगना था उसका सारा दुःख।
रोने देना था उसको सर रख कंधे पर
कह लेने देना था उसको अपना सारा दुःख।
तो प्रेम जटिल नही सरल होता।
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।