युवा कवि ब्राह्मण आशीष उपाध्याय की कविता-मैं इंसान कैसा हूँ, इसका कोई भी मसला नहीं

गर्ज़ निकल जाए, तो फ़िर ख़ुदा भी भला नहीं।।
थोड़ा अड़ियल हूँ ज़िद्दी हूँ और मगरूर भी हूँ।
जैसा हूँ मैं वैसा हूँ, मुझमें बनावटी कला नहीं।।
आदत है मुझको काँटों में भी मुस्कुराने की।
क्योंकि तुम्हारी तरह मैं फूलों पर पला नहीं।।
मुकम्मल न हुई हैं साज़िशें मेरे क़त्ल की।
माँ की दुआ के आगे कोई छल चला नहीं।।
गुमान होगा मेरे माँ-बाप को अपने संस्कारों पर।
छला गया आशीष लेकिन किसी को छला नहीं।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रुचि है। मोबाइल नंबर-75258 88880
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।