युवा कवि ब्राह्मण आशीष उपाध्याय की कविता- गले से लगा लो
गले से लगा लो
मेरी उलझनें सुलझ जायें ग़र तुम गले से लगा लो।
ग़मों के बादल छट जायें ग़र तुम गले से लगा लो।।
यूँ तो हूँ मैं बहुत उदास किसी से करता नही बात।
करने लगूँगा फिर से बात ग़र तुम गले से लगा लो।।
घुट रहा हूँ एक अज़ीब सी कशमकश और घुटन में।
सारी घुटन से मिल जाये आराम ग़र तुम गले से लगा लो।।
दिल को पत्थर बना रही हैं शिकायतें और नाराज़गियां।
सब मोम की तरह पिघल जायें ग़र तुम गले से लगा लो।।
बैठे हैं गुमसुम से अरमानों को दिल में दबाये हुये।
सारे अरमान मचल जायें जाना ग़र तुम गले से लगा लो।।
है नाराज़गी थोड़ी और रूठा हूँ तुमसे सुन लो।
बिन कुछ कहे मान जाऊँगा ग़र तुम लगे से लगा लो।।
पूँछते हो क्यों हो उदास किन ग़मों ने तुमको घेरा है।
सच कहता हूँ ग़मो के मौसम बदल जायें ग़र तुम गले से लगा लो।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रुचि है। मोबाइल नंबर-75258 88880
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना???????