शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की कविता-सुख का शैल
सुख का शैल
हनुमान कौन बनेगा अब,
वैक्सिन संजीवन लाकर।
लगी कोरोना शक्ति विश्व को,
कौन तारेगा दुख सागर।
कौन वैद्य सुषेण बनेगा,
कौन भेद लगायेगा।
कहाँ मिलेगी वह संजीवन,
कौन आश बंँधाएगा।
देखो! जगत दुखी है भारी,
व्याधि निशा मुस्काती है।
नहीं किसी दिशा छोर से,
पहचान सुषेण की आती है।
पहले वैद्य सुषेण मिलेगा,
आकर दवा बताएगा।
फिर बनकर हनुमान कहीं कोई,
सुख का शैल उठायेगा।
फिर जायेगा नैराश्य भुवन का,
आश भानु मुस्कायेगा।
लौटेगी फिर चमक विश्व की,
कोरोना मर जायेगा।।
कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार
ब्लॉक भिलंगना, जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड